सोमवार, 9 अगस्त 2010

जन्म शताब्दी वर्ष २०११ के कार्यक्रमों का स्वरूप समझें-तैयारी करें


पूर्व समीक्षा 
युगऋषि से युगशिल्पियों का स्नेह सामयिक नहीं, जन्म-जन्मान्तरों से पल रहा है । इसलिए उनके लिए कुछ कर गुजरने की व्याकुलता मन-मस्तिष्क में सहज ही उभरती रहती है । उनकी जन्म शताब्दी को लेकर एक अनुपम उत्साह सभी के हृदयों में हिलोरें ले रहा है । इन कथनों में न कोई बनावट है और न कोई अतिशयोक्ति । 

उक्त सच्चाइयों के साथ ही हमें यह सच्चाई भी ध्यान में रखनी चाहिए कि उक्त सम्बन्धों के नाते युगऋषि-युगचेतना कुछ विशेष आशाएँ-उम्मीदें लगाये हुए हैं । समय सीमा में कुछ अनिवार्य कार्य करने, युग निर्माण के लिए अनुकूल एवं प्रभावपूर्ण वातावरण बनाने की चुनौतियाँ भी हमारे सामने खड़ी हैं । हम उन्हें नकार नहीं सकते । अपने जन्म-जन्मांतरों की प्रतिष्ठा की रक्षा और अपने नैतिक दायित्वों की पूर्ति करना हमारे अस्तित्वों को बनाये रखने के लिए जरूरी है ।

हमारे लिए यही उचित है कि हम अपनी-अपनी भूमिकाओं को समझदारी के साथ निर्धारित कर लें, ईमानदारी से उनकी पूर्ति के लिए अपने समय, प्रभाव, ज्ञान, पुरुषार्थ एवं धन का उपयुक्त अंश लगाते रहें, जिम्मेदारी के साथ परस्पर सहयोगपूर्वक आगे बढ़ें तथा बहादुरी के साथ मार्ग की बाधाओं-विषमताओं को चीरते हुए निर्धारित लक्ष्य तक आंदोलन को पहुँचायें । इन्हीं सब चरणों को पूरा करने के लिए 'उल्टी गिनती' के मुहावरे का प्रयोग पत्रिकाओं के पृष्ठों पर किया जाता रहा है । 

प्रसन्नता की बात है कि लगभग सभी क्षेत्रों के परिजनों ने प्रयाज वर्ष (२०१०-११) में जन्मशती तक के लिए कुछ सुनिश्चित लक्ष्य बना लिए हैं । कुछ बना रहे हैं अथवा लक्ष्यों का पुनर्निधारण कर रहे हैं । कार्यक्रम की तिथियाँ और उनका स्वरूप स्पष्ट हो जाने पर श्रेष्ठतर लक्ष्य निर्धारित करने और उन तक पहुँचने के उनके उत्साह में निश्चित रूप से बढ़ोत्तरी होगी । 

निर्धारित चार कार्यक्रम 
पूज्य गुरुदेव की जन्मशती के लिए वसंत पर्व २०११ से वसंत पर्व २०१२ तक का समय निश्चित किया गया है । इस अवधि में ४ कार्यक्रमों को प्राणवान ढंग से करने का निर्णय किया गया है । उनमें से दो कार्यक्रम केन्द्रीय स्तर पर होंगे तथा दो कार्यक्रम क्षेत्रीय स्तर पर विकेन्द्रित सुनियोजित रूप से किये जाएँगे । 

केन्द्रीय कार्यक्रमों के अंतर्गत पहला कार्यक्रम २० फरवरी को दिल्ली के किसी स्टेडियम में किया जायेगा । इस कार्यक्रम का प्रारूप महापूर्णाहुति के क्रम में दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में हुए कार्यक्रम के ढंग का होगा । 

दूसरा कार्यक्रम ७ से ११ नवम्बर की तिथियों में हरिद्वार में किया जायेगा । इसका प्रारूप सन् २००० में युगसंधि महापुरश्चरण की पूर्णाहुति के ढंग का होगा । 

उक्त दोनों कार्यक्रमों की तिथियाँ तो निश्चित कर ली गई हैं, उनके सुनिश्चित प्रारूप तथा उनमें क्षेत्रीय परिजनों की भागीदारी के विविध अनुशासन-आयाम समय रहते निश्चित करके प्रसारित कर दिये जायेंगे । इनसे संबंधित विविध व्यवस्थाओं की जिम्मेदारियाँ भी पहले की तरह क्षेत्र की प्रामाणिक-अनुशासित संगठित इकाइयों को समय रहते सौंप दी जायेगी । 

क्षेत्रीय कार्यक्रमों के प्रारूप गुरुवर की आकांक्षा के अनुरूप श्रद्धा साधनापरक बनाये गये हैं । गुरुदेव की हीरक जयंती के समय वे सूक्ष्मीकरण साधना में थे । वन्दनीया माताजी ने उनकी इच्छानुसार हीरक जयंती कार्यक्रम की रूपरेखा एक पुस्तिका के रूप में प्रसारित की थी । उसमें उसे सृजनशील साधनामय बनाने का आग्रह था । 

क्षेत्रीय दोनों कार्यक्रमों के प्रारूप इस प्रकार हैं- 
१- जन्मशती उत्सव- पूज्य गुरुदेव वसंत पंचमी को ही अपना जन्मदिन मनाते रहे हैं, इसलिए इस उत्सव का आरंभिक कार्यक्रम २०११ के वसंत पर्व ८ फरवरी को होगा । सामान्य रूप से यह तीन दिन चलेगा । इसे अपने संगठन की सभी छोटी-बड़ी इकाइयाँ एक साथ, एक अनुशासन के साथ सम्पन्न करेंगी । विकेन्दि्रत कार्यक्रम का लाभ यह होगा कि हर क्षेत्र के परिजन और श्रद्धालु इनमें सहजता से भाग ले सकेंगे । 

* प्रभात फेरियाँ - दिनांक ६ फरवरी रविवार को सभी जगह-प्रभात फेरियाँ अथवा शोभा यात्राएँ, कलश यात्राएँ निकाली जायेंगी । नगरों में प्रातः अनेक प्रभात फेरियाँ मोहल्ले-मोहल्ले में निकाली जा सकती हैं । दोपहर बाद एक शोभायात्रा-कलशयात्रा, झाँकियों सहित संयुक्त रूप से निकाली जानी चाहिए । 

* अखण्ड जप - दिनांक ७ को प्रातःकाल ६ बजे से ८ तारीख को प्रातः ६ बजे तक के लिए अखण्ड जप रखा जायेगा । इसे नगरों, ग्रामों में अपनी संगठित इकाइयों के स्तर पर जगह-जगह चलाया जाना चाहिए । साधना स्थल पर कलश, दीपक, मशाल, ऋषियुग्म सहित देव मंच स्थापित हो । बाहर द्वार पर 'युगऋषि जन्मशती उत्सव' का तथा देवमंच पर 'सबके लिए सद्बुद्धि-सबके लिए उज्ज्वल भविष्य' का बैनर रहे । गायत्री परिजनों के अतिरिक्त अन्य श्रद्धालुओं को भी इस हेतु सामूहिक जप के लिए आमंत्रित किया जाय । वे गायत्री मंत्र जपें, तो सबसे उत्तम अन्यथा उन्हें बैनर में अंकित भावना के साथ अपने इच्छित मंत्र या नाम के जप की छूट दी जा सकती है । जप के लिए परिजनों की टोलियाँ सुनिश्चित रहें । अन्य श्रद्धालु सुविधानुसार समय पर आते-जाते रह सकते हैं । 

* नवयुग स्वागत दीपदान- दिनांक ७ को ही शाम को सूर्यास्त के बाद नगर-ग्राम के सभी घरों में नवयुग स्वागत के भाव से कम से कम ५-५ दीपक प्रज्वलित किए जाएँ । इसके लिए पहले से ही जन-जन को प्रेरित-संकल्पित कराया जाय । 

* यज्ञ-श्रद्धांजलि - दिनांक ८ को प्रातः ६ बजे जप समाप्त कर दिया जाय । वहीं ७ बजे से सामूहिक यज्ञ-श्रद्धांजलि का क्रम चलाया जाय । यह क्रम सभी जगह प्रातः ७ से १० बजे के बीच होगा । यज्ञकुण्ड अथवा वेदियों की संख्या भागीदारों की संख्या के अनुसार १ से ९ तक रखी जा सकती है । 

देवपूजन के बाद अग्नि स्थापन के पहले गुरुसत्ता को व्यक्तिगत एवं सामूहिक श्रद्धांजलियाँ अर्पित की जायें । सामूहिक रूप से प्रयाज वर्ष में जो विभिन्न लक्ष्य बनाये गये थे, उनमें सफलता की रिपोर्ट पढ़ी जाय । हर साधक-परिजन ने प्रयाज वर्ष में अपनी ईश उपासना, जीवन साधना तथा लोक आराधना में क्या प्रगति की तथा अनुयाज वर्ष के लिए क्या निर्धारण किया? इसे पहले से नोट करके रखें । एक प्रति स्मृति पत्र के रूप में अपनी पूजा स्थली पर रखें तथा एक प्रति श्रद्धांजलि रूप अर्पित करें । 

इसके बाद अग्नि स्थापन करके यज्ञ किया जाय । साधकों की संख्या के अनुसार एक या अधिक पारियाँ चलाई जायें । बाद में आरती-पुष्पांजलि करके यज्ञ का समापन करें । 

प्रसाद में युगऋषि की इच्छा के अनुरूप अमृताशन की ही व्यवस्था रखी जाय । 

* युग निर्माण सम्मेलन दीपयज्ञ - उसी दिन शाम को ५ से ७ या ६ से ८ बजे के बीच ग्राम, नगर के अथवा शक्तिपीठों के स्तर पर युग निर्माण सम्मेलन एवं दीपयज्ञ का आयोजन किया जाय । नगर के तमाम श्रद्धालुओं, प्रबुद्धों, विभिन्न संगठनों के सूत्र पुरुषों को उसमें आमंत्रित किया जाय । 

मंच से युग संगीत के बाद गुरुसत्ता के क्रांतिदर्शी-युगऋषि वाले स्वरूप को खोला जाय । विभिन्न संगठनों-सम्प्रदायों के प्रगतिशील विचार के प्रतिनिधियों को भी वक्ता के रूप में बुलाया जाय । उन्हें युग निर्माण योजना तथा सत्संकल्प के सूत्र विभिन्न भाषाओं में पहले से दे दिये जायें तथा उस संदर्भ में उन्हें विचार व्यक्त करने को कहा जाय । 

अंत में युग निर्माण के सूत्रों को जीवन में धारण करने की अपील के साथ प्रतीकात्मक दीपयज्ञ कराया जाय । जिन अन्य संगठनों के साथ विभिन्न आन्दोलनों को गति देने की सहमति बने, उसकी घोषणा की जाय तथा आभार प्रदर्शन के साथ आरती करके कार्यक्रम सम्पन्न किया जाय । 

२ सृजन साधना महापुरश्चरण की पूर्णाहुति - युगऋषि की जन्म शताब्दी के दो वर्ष पूर्व से परिजनों को 'सृजन साधना महापुरश्चरण' चलाने के लिए संकल्पित कराया जा चुका है । उसके अंदर जप और व्रत के अनुशासन इस प्रकार रहे हैं - 

जप - प्रातः ६ से ६.३०, दोपहर १.३० से २.०० तथा शाम ६.०० से ६.३० बजे तक कम से कम किसी एक अवधि में सामूहिक सृजन चेतना जागरण के भाव से सामूहिक जप में भाग लेना । 

व्रत - सामान्य साधक युग निर्माण सत्संकल्प के सूत्रों को कसौटी मानकर अपने व्यक्तित्व को परिष्कृत-उन्नत बनाने के सुनिश्चित व्रत लें । व्रतधारी साधक युग निर्माण सत्संकल्प के साथ 'अपने अंग-अवयवों से' नामक पत्रक के र्निदेशों को भी अपनी जीवन साधना की कसौटी मानें । दोनों ही वर्ग गहन आत्म समीक्षा करते हुए आत्म शोधन, आत्म निर्माण एवं आत्म विकास की उच्चतर सीढ़ियों पर आगे बढ़ें ।

निर्धारित नियमों के अनुसार नैष्ठिक परिजनों ने जगह-जगह सामूहिक साधना का क्रम चलाया भी है । इस साधना में भाग लेने वाले सभी साधक साधना की पूर्णाहुति चैत्र नवरात्रि की पूर्णाहुति के साथ (रामनवमी १२ अप्रैल) को करेंगे । यह पूर्णाहुति भी सभी छोटी-बड़ी संगठित इकाइयों में एक साथ प्रातः ७ से १० तक सम्पन्न की जायेगी ।

सृजन साधना महापुरश्चरण के जो साधक नवरात्रि साधना में शामिल होंगे, वे तो सहज ही पूर्णाहुति में भाग ले लेंगे । जो किसी कारण नवरात्रि साधना में भाग न ले सकें, वे साधना स्थल पर निर्धारित समयों में से किसी एक अवधि में आधा घंटे के जप में शामिल रहें तथा अंतिम दिन पूर्णाहुति में भागीदार बनें । 

प्रयाज को प्राणवान बनायें 
युगऋषि की जन्म शताब्दी पर उन्हें प्रसन्न करने के प्रयाज के लक्ष्यों को श्रेष्ठतर तथा प्रयासों को प्राणवान बनाने के लिए प्राणपण से पुरुषार्थ किये जायें । उन सूत्रों को पुनः स्मरण करके उन्हें निर्धारित लक्ष्य तक पहुँचाने की व्यवस्था बनाई जानी चाहिए । मुख्य सूत्र इस प्रकार हैं- 

-जो उन्होंने मुँह खोलकर माँगा, वह हम दिल खोलकर कर दें ।

- प्रज्ञा परिजन कम से कम दो करोड़ (क्षेत्र की कुल आबादी का दो प्रतिशत) 

- प्रज्ञापुत्र-अग्रदूत कम से कम दो लाख । 

- युग निर्माण के लिए हमारे (युगऋषि के) विचारों को जन-जन तक पहुँचायें । युग निर्माण सभी के लिए है, सभी सृजनशील संगठनों और सृजनशील प्रतिभाओं की उसमें सुनिश्चित भागीदारी हो । 

उक्त प्रयोजनों की पूर्ति के लिए दो जेबी पुस्तिकाएँ- 'दीक्षित-नैष्ठिक परिजन चढ़ायें एक सार्थक श्रद्धांजलि' तथा 'युगऋषि एवं उनकी योजना को समझें-समझाएँ, लाभ उठायें' । यह दोनों पुस्तिकाओं के आधार पर उक्त आन्दोलनों को व्यापक बनाया जा सकता है । 

दो छोटे व्यापक कार्यक्रम - 

१- गायत्री महामंत्र सद्बुद्धि दाता है । सभी लोग उसे अपना सकते हैं । घर-घर पूजा स्थल पर गायत्री मंत्र तथा घर के मुख्य कक्ष में गायत्री मंत्र के भावार्थ की स्थापना कराई जाय । इसके लिए प्रेरणा पत्र पाक्षिक प्रज्ञा अभियान के १६ जून २०१० के अंक में संपादकीय पृष्ठ पर छपा है । शांतिकुन्ज में गायत्री जयंती तथा गुरु पूर्णिमा पर वितरित भी किया गया है ।

२- उज्ज्वल भविष्य तक पहुँचाने वाले युग निर्माण सत्संकल्प के सूत्र तथा युगशक्ति की प्रतीक मशाल का व्याख्या वाला चित्र युगऋषि की ऐसी सार्वभौम कृतियाँ हैं, जिन्हें कोई नकार नहीं सकता । इनकी स्थापना घर-घर, कार्यालयों, विद्यालयों, सार्वजनिक स्थलों पर कराने का प्रखर अभियान चलाया जाय । 

- संगठन को समर्थ बनाकर उसके माध्यम से सप्त आन्दोलनों को गतिशील बनाना, नये क्षेत्रों में युग संदेश पहुँचाना, तपःपूत प्रशिक्षण द्वारा परिजनों के व्यक्तित्वों को ऊँचा उठाने का क्रम बनाना; इन सभी को यथाशक्ति सुनिश्चित बनाने की अपील समय-समय पर की जाती रही है । परिजन शताब्दी समारोह तक इनको बेहतर-श्रेष्ठतर लक्ष्य तक पहुँचाएँ, ऐसी अपेक्षा है ।

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