गुरुवार, 5 अगस्त 2010

आत्मा की भूख

स्वामी विवेकानंद उन दिनों अमेरिका प्रवास में थे. वे अपना भोजन अधिकतर स्वयं ही पकाते थे. एक दिन उन्होंने अपना भोजन बनाकर तैयार किया. इतने में ही कुछ भूखे बालक उधर आ निकले . स्वामी जी ने सारा भोजन उन बालकों में बांट दिया और इससे उन्हें बडी प्रसन्नता हुई.

उनके समीप ही एक अमेरिकन महिला खडी थी. उसने पूछा,”स्वामी जी! आपने बिना कुछ खाए ही सारा भोजन इन बालकों में क्यों बांट दिया ?” 

विवेकानंद बोले,”माता जी ! आत्मा की भूख पेट की भूख से बडी होती है और आत्मा के तृप्त होने पर जीवन की समस्त क्षुधाएं एक बार में ही शांत हो जाती हैं . मैंने अपनी आत्मिक भूख को शांत करने के लिए ही भोजन बच्चों में बांट दिया ।”

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