शनिवार, 13 फ़रवरी 2010

"धन्य हैं वे"



धन्य हैं वे धडकने, सतनाम गुरु का जो जपें।
धन्य हैं वे लेखनी, गुणगान गुरु का जो लिखें।।

प्राण में गुरुतत्त्व की, गुरुता मचलती ही रहे।
कर्म में सदगुरु की, गरिमा उछलती ही रहें।।
आचरण वे धन्य, गुरु आदर्श जो धारण करें।
धन्य हैं वे धडकने, सतनाम गुरु का जो जपें।

ज्ञान के हैं सिन्धु सदगुरु, ज्ञान के हम बिन्दु हों।
चंद्र से हैं सौम्य सद्गुरु, शान्ति के हम इंदु हों।।
ज्ञान का आलोक बांटे , हम सुधा जैसा झरें।
धन्य हैं वे धडकने, सतनाम गुरु का जो जपें।

छलछलाता भाव-संवेदन, भरे हैं सदगुरु।
दुखी जन पर, द्रवित करुणा-सा झरे हैं सदगुरु।।
भाव-मरहम लगा, रिसते घाव दुखियों के भरे।
धन्य हैं वे धडकने, सतनाम गुरु का जो जपें।

मनुजता पीड़ित हुई हैं, मनुज के व्यवहार से।
सतत उठती जा रही संवेदना, संसार से।।
मानवीय संवेदना का, स्वर्ग हम सर्जित करें।
धन्य हैं वे धडकने, सतनाम गुरु का जो जपें।

मंगलविजय ‘विजयवर्गीय’
अखण्ड ज्योति नवम्बर २००५

कोई टिप्पणी नहीं:

LinkWithin

Blog Widget by LinkWithin