लोकमान्य तिलक कांग्रेस अधिवेशन में भाग लेने के लिए लखनऊ आए। लखनऊ कांग्रेस में कार्यक्रम अत्यन्त व्यस्त था, क्योंकि इसके दौरान विभिन्न दलों और गुटो में एकता स्थापित करने के लिए लोकमान्य बहुत तड़के से व्यस्त रहे और दोपहर तक एक क्षण के लिए भी विश्राम ना पा सके। बड़ी कठिनाई से उन्हें भोजन के लिए उठाया जा सका। भोजन के समय परोसने वाले स्वयंसेवक ने कहा-``महाराज ! आज तो आपको बिना पूजा किए ही भोजन करना पड़ा।´´ लोकमान्य गंभीर हो गए। बोले- ``अभी तक जो हम कर रहें थे, क्या वह पूजा नही थी ? क्या घंटी-शंख बजाना और चदंन घिसना ही पूजा है ? समाज सेवा से बढ़कर और कौनसी पूजा हो सकती है ?´´
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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