कब आओगे ? कृष्ण कन्हाई ।
फिर से श्याम घटा घिर आई ।।1।।
भोगवाद की सघन-घटायें।
भादों के घन-सी मंडराएँ॥
कैसी अन्धियारी घिर आई।
कब आओगे ? कृष्ण कन्हाई।।2।।
क्रूर-कंस से बौराए।
देवसंस्कृति पर मँडराए॥
देखो ! दानवता इतराई।
कब आओगे ? कृष्ण कन्हाई।।3।।
पतन-पाप-पूतना विषैली
दुष्प्रवृत्तियों हैं जहरीली।।
मानवता सहमी, सकुचाई।
कब आओगे ? कृष्ण कन्हाई।।4।।
उगल रहा विष काम-कालिया।
कब नाथोगे रे ! सॉंवलिया।।
जन-जीवन-जमना अकुलाई।
कब आओगे ? कृष्ण कन्हाई।।5।।
हैं धृतराष्ट्र -मोह के अन्धे।
दुयॉधन के धोखे-धन्धे।।
दु:शासन के बेशरामाई
कब आओगे ? कृष्ण कन्हाई।।6।।
बढ़ते हैं कुकृत्य, कौरव से।
पाण्डव वंचित हैं गौरव से।।
भीष्म, द्रोण पर जड़ता छाई।
कब आओगे ? कृष्ण कन्हाई।।7।।
पान्चजन्य में फिर स्वर फूँको
कहो पार्थ से अरे न चूको।।
गीता की फूँको तरूणाई।
कब आओगे ? कृष्ण कन्हाई।।8।।
देवसंस्कृति बुला रही हैं।
करो दिग्विजय, समय यही हैं।।
परिवर्तन की वेला आई।
कब आओगे ? कृष्ण कन्हाई।।9।।
मंगल विजय `विजयवर्गीय`
अखण्ड ज्योति जनवरी १९९८
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