शनिवार, 11 जून 2011

अखण्ड ज्योति नवम्बर 1980

1. जीवन एक प्रत्यक्ष कल्पवृक्ष

2. भूदेव की आराधना

3. ब्रह्माण्ड में ओत-प्रोत ब्रह्म सत्ता

4. ‘सर्व खिल्विद ब्रह्म’ अब अधिक प्रत्यक्ष

5. सापेक्षवाद एवं पूर्वाग्रहरहित सत्यान्वेषण

6. धर्म तर्क के न्यायालय में

7. जीवन और मरण की अविच्छिन्न श्रंखला

8. त्याग का अन्धानुकरण न किया जाय

9. मनुष्य और प्रेतों की मध्यवर्ती श्रंखला

10. जीवन की सभी विषमताओं से संघर्ष सम्भव

11. आप करे, आपुई फल पावे

12. निंदक नियरे राखिये

13. समस्त सफलताओं का मूल-मन

14. अन्तर्मन का परिष्कार योग साधना से

15. प्रतिभाओं की खेती रक्त बीज तैयार करेगी

16. उद्दण्डता नहीं, सौम्य सज्जनता ही श्रेयस्कर

17. हृदय रोग के तीन कारण-मानसिक तनाव, शारीरिक बढ़ाव और रक्त का दबाव

18. प्राणशक्ति का चिकित्सा उपचार में प्रयोग

19. न कहीं संयोग हैं, न कोई सर्वज्ञ

20. मन की विलक्षण क्षमता

21. शिक्षा का उद्देश्य-व्यक्तित्व का विकास

22. तोप के गोल जब फूल से बन गये

23. शीत ऋतु में प्रज्ञा पुत्रों के लिए अनुदान सत्र

24. अपनो से अपनी बात

25. आत्म-आवरण

अखण्ड ज्योति अक्टूबर 1980

1. परितर्वन असुविधाजनक होते हुए भी अपरिहार्य हैं

2. विनाश की व्यापक विभीषिकाओं का एकमात्र समाधान

3. युग परिवर्तन की पृष्ठभूमि और आधार

4. युग सन्धि में विषम बेला में जाग्रत आत्माओं का आह्वान

5. यह सुयोग गँवा देने वाले पछतायेंगे

6. पवन पुत्र हनुमान का आदर्श अपनायें

7. शालीनता की सीता को ढूँढ निकाला जाय

8. जागृतों की अन्तरात्मा में इस उषा का उदय इन्हीं दिनों

9. जागृत आत्माओं से अग्रगामी बनने का आह्वान

10. यह नवरात्रियाँ असामान्य है

11. नवरात्रि अनुशासन का तत्व दर्शन

12. नवरात्रि पर्व पर भाव श्रद्धा की परिणति उदार अनुदानों में हैं

13. छोटे शुभारंभो में निहित महान् सम्भावनाएँ

14. युग साधना में निष्ठा का समावेश

15. भावना के साथ सेवा भावना का समन्वय

16. चरणपीठों के सम्बन्ध में ज्ञातव्य एवं स्पष्टीकरण

17. प्रज्ञा संस्थानों की सफलता के आधार

18. प्रज्ञापुत्र अपनी प्रोढ़ता का परिचय दे

19. नवरात्रि की पूर्णाहुति इस प्रकार सम्पन्न हो

20. न्यूनतम कार्यक्रम जो सभी परिजनों को पूरे करने है

21. जिन्दगी एक पड़ाव नहीं

अखण्ड ज्योति सितम्बर 1980

1. परिष्कृत जीवन प्रत्यक्ष कल्प वृक्ष

2. सफलता के लिए समग्र पुरूषार्थ

3. ईश्वर क्षमा कर दे तो भी पाप दण्ड नहीं मिटेगा

4. सीश दिए जो गुरू मिले तो भी सस्ता जान

5. श्रद्धावान होने का अर्थ अन्ध श्रद्धा नहीं हैं

6. श्रमनिष्ठा और उसकी परिणति

7. आँख भी सच कहाँ देखती हैं ?

8. मनोबल ही जीवन शक्ति हैं

9. नियन्त्रण भावनाओं का भी किया जाय

10. मस्तिष्क को सृजन प्रयोजनो में लगाये

11. दूसरों के कामों में दिलचस्पी लेना

12. पूज्य गुरूदेव का विशेष लेख-संदेश-सामयिक पाँच पुण्य प्रयोजन जो प्रज्ञा पुत्रों को इन्ही दिनों पूरे करने हैं

13. प्रकृति द्वारा निद्रा का उपयोग स्वप्न

14. दोष जाने और हटाये बिना स्वयं को शुद्ध न मान ले

15. प्राकृतिक जीवन जिए-नीरोग रहे

16. भविष्य में मनुष्य कैसा होगा ?

17. जीव जगत का संकट आगे मनुष्य जाति पर आयेगा

18. संकट के लिए बचत आवश्यक

19. अनैतिकता छिपाये नहीं छिपती

20. बड़प्पन सादगी और शालीनता में है

21. तृतीय विश्वयुद्ध के गहराते बादल

22. अपनो से अपनी बात

23, जीवन साधना

अखण्ड ज्योति अगस्त 1980

1. देवत्व पर विजय

2. यात्रा शून्य नगर से भविष्य नगर की

3. यह अलभ्य अवसर यों ही न चला जाय

4. कृतज्ञ नहीं वह मनुष्य नहीं

5. आत्मिक प्रगति का मूल आधार श्रद्धा

6. सारी पृथ्वी साबुन न बन जाये

7. संकटों के निराकरण में आस्तिकता का योगदान

8. अविज्ञात सृष्टि के अविज्ञात रहस्य

9. प्रकृति का गला न घोंट दिया जाय

10. शरीराणि विहाय जीर्णानि अन्यानि संयाति नवानि देहि

11. तात्कालिक नहीं दूरवर्ती हितों का प्रश्रय मिले

12. दोष मत दीजिए, कैच ठीक करिए

13. ग्रहों के प्रभाव का लाभ उठाये

14. यन्त्र मानवों की गुलामी के लिए तैयार रहें

15. शिक्षा का आदर्श क्या होना चाहिए ?

16. परम्परायें नहीं, उनकी प्रासंगिकता महत्वपूर्ण हैं

17. भोजन ही नहीं शोधन भी

18. तीसरे विश्वयुद्ध की सर्वनाशी विभीषिका

19. मृत्यु पर्यन्त चिर युवा कैसे रहें ?

20. वृद्धावस्था अर्थात् अमृत आनन्द

21. अपनो से अपनी बात

22. गायत्री चरण पीठें और नव सृजन की सम्भावनाएँ

अखण्ड ज्योति जुलाई 1980

1. चरणपीठों की स्थापना प्रत्येक गांव में हो

2. तीन असाधारण सौभाग्य

3. महामानवों से सम्बद्ध उपकरण

4. भवबन्धनों से मुक्ति के लिए सम्बन्धों का पुनर्निर्धारण

5. क्या मनुष्य सर्वतः स्वतन्त्र हैं ?

6. बुद्धिमान होने के कारण मनुष्य सर्वश्रेष्ठ नहीं हैं

7. दैवी प्रकोपों में मानवी दुष्कृत भी सहयोगी

8. समग्र सफलतओं का मूलभूत आधार

9. आत्मिक विकास के लिए स्वप्नो का उपयोग

10. परावलम्बन अमरबेल की तरह

11. इच्छित दिशा में जीवधारियों का विकास

12. क्या मानवी प्रतिभा ध्वंस में ही लगनी चाहिए

13. अन्तरिक्ष के प्रचण्ड ऊर्जा स्त्रोत

14. जीवन से भागिए नहीं, उसे स्वीकार कीजिए

15. सत्यनिष्ठा के अनुकरणीय प्रसंग

16. जिनसे मौत भी डर गई

17. अनीति के दूरगामी दुष्परिणाम

18. प्रकाश की अपराजेयता

19. वृद्धावस्था शरीर का नहीं मन का रोग

20. आत्मिक प्रगति के तीन सुनिश्चित आधार अवलम्बन

21. दिव्य अनुदान दिव्य प्रयोजनों के लिए

22. अब सभी जाग्रत परिजनों को यह लाभ मिलेगा

23. आत्म श्रेय और दैवी अनुग्रह पाने का दुहरा सुयोग

24. दिव्य अनुदानों का सुयोग सौभाग्य

25. ध्यान मुद्रा साधक का निजी पुरूषार्थ

26. अनुदानों का ग्रहण अभ्यास

27. आदमी की आह

अखण्ड ज्योति जून 1980

1. सत् को समझे, सत् को पकड़े

2. नियति के अन्तराल का सूक्ष्म प्रवेश-अध्यात्म

3. उपासना की मनोवैज्ञानिक पृष्ठभूमि

4. स्थूल से असंख्य गुना समर्थ सूक्ष्म

5. विश्व शक्ति का उद्गम प्रति पदार्थ और प्रति व्यक्तित्व

6. चेतना जगत के अदृश्य सन्देशवाहक

7. मृत्यु भय का कारण और निवारण

8. ब्रह्माण्ड में विद्यमान, विकसित सभ्यताएँ

9. अति विलक्षण अचेतन की माया

10. प्रकृति विध्वंस का आयोजन भी करती है

11. वास्तुकला विशेषज्ञ-ये नन्हे प्राणी

12. परिस्थितियाँ भौतिक, कारण आत्मिक

13. मस्तिष्क पगलाता क्यों हैं ?

14. प्रगति के लिए न अधीर हो, न आतुर

15. अभिवर्द्धन ही नहीं, परिशोधन भी

16. आत्महीनता की महाव्याधि और उससे छुटकारा

17. मनोभावों का स्वास्थ्य पर प्रभाव

18. रोग से ज्यादा, रोगी की शत्रु औषधियाँ

19. कविरा जिह्वा बावरी, ताते नास-बिनास

20. अपनो से अपनी बात-नवयुग के अभिनव निर्झर-प्रज्ञा संस्थान

21. गायत्री आरण्यक का क्षेत्र विस्तार

22. प्रगति-पत्रक (कविता)

अखण्ड ज्योति अप्रेल 1980

1. प्रगति तो हो, पर उत्कृष्टता की दिशा में

2. अन्धकार अस्थिर, प्रकाश शाश्वत

3. ईश्वर की सत्ता और महत्ता

4. आत्मा का अस्तित्व, इन्कारा नहीं जा सकता

5. मानवी सत्ता में सन्निहित, महान् सम्भावनाएँ

6. सौन्दर्य बोध, अनुभूति पर आधारित

7. हमारी उपासना कितनी खरी कितनी खोटी ?

8. मरणोत्तर जीवन की अनुभूतियाँ

9. अवगति का कारण अभाव नहीं, अनुत्साह

10. अभिमान का विश्लेषण

11. विक्षोभ मरने के बाद भी पीछा नहीं छोड़ता

12. विलक्षणताओं की विभूतियों का भण्डार मनुष्य

13. जाति, आयु और भोग-त्रिविध कर्म-विपाक

14. परिस्थितियों के साथ मनःस्थिति का तालमेल

15. जीवन का परम पुरूषार्थ-मुक्ति

16. जीव-जन्तुओं में अतीन्द्रिय क्षमता

17. गायत्री नगर में देव परिवार बसेगा

18. शेष मंजिल पूरी करने का नया उपक्रम

19. गायत्री नगर-स्वर्ग और देवत्व के अवतरण की प्रयोगशाला

20. कौन आवेंगे ? क्या करेंगे ?

21. यह सौभाग्य, हर विवेकवान को मिल सकता हैं

22. आत्मोत्कर्ष का अलभ्य अवसर

23. जिन्हें आना हो, समय रहते स्वीकृति प्राप्त करें

अखण्ड ज्योति मार्च 1980

1. परिवर्तन में प्रगति और जीवन

2. युग सन्धि की विषम बेला और जागरूकों का कर्तव्य निर्धारण

3. युग परिवर्तन का यही उपयुक्त समय

4. मूर्धन्य विश्व विचारकों का अभिमत

5. अन्तर्ग्रही परिस्थितियों की प्रभावी प्रतिक्रिया

6. मनुष्य जाति पर गहराते संकट के बादल

7. युद्ध लिप्सा कितनी घातक हो सकती है

8. युग सन्धि का आरम्भ, मध्य और अन्त-प्रसिद्ध ज्योतिर्विदों की दृष्टि में

9. सूर्य ग्रहणों की असाधारण श्रंखला और उनकी अवांछनीय प्रतिक्रिया

10. खग्रास ग्रहण से व्यापक उथल पुथल की सम्भावना

11. सौर-मण्डल का असन्तुलन और उसकी प्रतिक्रिया

12. सूर्य स्फोटों का अपनी पृथ्वी पर प्रभाव

13. विश्व विख्यात कुछ अदृश्य दर्शियों के भविष्य कथन

14. ईसाई धर्म साहित्य में भावी संकट के संकेत

15. युग परिवर्तन में अन्तरिक्ष विज्ञान का उपयोग

16. आर्ष ज्योतिर्विज्ञान का पुनर्जीवन-नई वेधशाला

17. नये चरण इस प्रकार उठाने हैं

अखण्ड ज्योति फरवरी 1980

1. कर्म ही सर्वोपरि

2. जीवन-अनुसन्धान

3. मायापति विष्णु और उनकी योगमाया

4. मरण न डरावना हैं न कष्टदायक

5. तर्क ही नहीं श्रद्धा विश्वास भी

6. आज मिल पाया नहीं, तो कल मिलेगा

7. अध्यात्म सिद्धान्त उपयोगी भी, प्रामाणिक भी

8. प्रत्यक्ष जगत पर अदृश्य जगत का प्रभाव

9. समर्थता ही नहीं, सहृदयता भी

10. वशीकरण एक मन्त्र हैं

11. जीवन साधना की सिद्धि के रहस्य

12. कामोल्लास की सृजनात्मक शक्ति

13. परहित सरिस धर्म नहि भाई

14. दिव्य ध्वनियों के श्रवण की सिद्धि

15. सज्जनता का परिचय शिष्टाचार से

16. सच्चरित्रता-मानव जीवन की सर्वोपरि सम्पदा

17. स्वप्नों में निहित आत्म सत्ता के प्रमाण

18. आहार के त्रिविध स्तर, त्रिविध प्रयोजन

19. क्रोध अपने लिए घातक

20. विशिष्ट प्रयोजन के लिए विशिष्ट आत्माओं की विशिष्ट खोज

21. महामानवों के अवतरण की नई पृष्ठभूमि

22. जन्म समय के आधार पर परिजनों के स्तर का पर्यवेक्षण

23. कर दो प्रयाण अब प्राणवान

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