शुक्रवार, 10 जून 2011

अखण्ड ज्योति जनवरी 1980

1. प्रगति और विपत्ति में सभी सहयोगी

2. ज्ञान प्राप्ति का मार्ग

3. तो क्या यह संसार झूठ हैं ?

4. सुन्दर अनुपम सुन्दर यह सृष्टि

5. अपना स्वर्ग स्वयं ही बनायें

6. दिव्य शक्तियों की उपलब्धि, सम्भावना ओर दर्शन

7. उपलब्धियों से अधिक महत्वपूर्ण उनका उपयोग

8. मृत्यु-जीवन का अन्त या नये जीवन की तैयारी

9. बाह्य जगत अन्तर्जगत का प्रतिबिम्ब

10. भावनाओं में घुला हुआ विष और अमृत

11. सेवा-साधना मे जीवन की सार्थकता

12. सहयोग, सद्भाव भरी उदार दिव्य आत्माएँ

13. सत्प्रयत्न संयुक्त रूप से किये जायें

14. यह संसार केवल मनुष्य के लिए ही नहीं हैं

15. संस्कृति के तीन आधार-काय् वाक् एवं चित्त संस्कार

16. शरीर से पहले मन का उपचार करें

17. समूचे व्यक्तित्व को ही सम्मोहक बनाये

18. हरिद्वार कुम्भ पर्व पर प्रगतिशील जातीय सम्मेलनों की धूम

19. सन् 81 के सौर स्फोट और उनका धरती पर प्रभाव

20. निकट भविष्य की अशुभ सम्भावनाएँ

21. नियति के परिवर्तन में अध्यात्म शक्ति का उपयोग

22. आज में जो जिया सो जिया-कविता

अखण्ड ज्योति दिसम्बर 1979

1. दूरदर्शिता का दुहरा लाभ

2. किस पुण्य का कितना मूल्य

3. आस्तिकता अनुभूतिगम्य हैं

4. देव सत्तायें चैतन्य ऊर्जायें

5. जीवन के प्रति घटती आस्था-कारण और निवारण

6. दुःख नकारात्मक भाव के सिवा कुछ नहीं

7. इन आश्चर्यो का क्या कोई कारण हैं ?

8. ज्ञान न विज्ञान, फिर भी निर्वाध आदान-प्रदान

9. मनोबलः बलं बलः

10. अतीन्द्रिय क्षमताएँ कल्पना नहीं, विज्ञान सम्मत

11. जो कुछ चाहें, वह सब पायें

12. निश्चित रूप से आपने आत्महत्या करना चाहा

13. अध्यात्म ज्ञान से ही मुक्ति हैं !

14. दुःखों की जननी आसक्ति

15. सम्पत्ति के दर्प का दुःखद अन्त

16. ऐसा मद भूल न पीवई जे बहुरि पछताई

17. युग चिन्तन को उभारने के लिए मनीषा का आह्वान

18. सन् 82 की डरावनी सम्भावनाएँ

19. साधना से सिद्धि के सिद्धान्त और प्रयोग

20. इष्टदेव का वरण निर्धारण

21. अद्भुत क्षमताओं से सम्पन्न मानवी मस्तिष्क

22. मुस्कान सुख की खान

23. कुछ आवश्यक ज्ञातव्य

24. उद्बोधन-कविता

अखण्ड ज्योति नवम्बर 1979

1. समृद्धि और प्रगति का आधार बाहर नहीं भीतर

2. उपासना से आत्म शोधन और एवं आत्म परिष्कार

3. क्या प्रमाण हैं कि ईश्वर नहीं हैं ?

4. स्थूल से भी अधिक चिरंजीवी सूक्ष्म

5. धर्म का मंदिर आस्था की ज्योति

6. मानवी व्यक्तित्व में अन्तर्निहित समग्रता

7. जो माँगेगा उसे दिया जायेगा

8. सच्ची बहादुरी

9. वैज्ञानिक मान्यतायें या तीन तुक्का ?

10. स्वप्नों के माध्यम से अन्तःस्थिति के दर्शन

11. झूठ बोलना एक छोटी किन्तु बहुत बुरी आदत

12. प्रकृति की अबूझ पहेली जीवन के विचित्र नियम

13. सहकारिता और आदान-प्रदान एक ब्रह्माण्ड व्यापी सत्य

14. शान्ति के बीज अन्तःभूमि में उगते है

15. कितने समझदार हैं यह नासमझ प्राणी

16. सुख के आधार

17. परिस्थितियों का निर्माण अपने हाथ

18. जीवन की सार्थकता समृद्धि से नहीं हैं

19. तेज और तेज नहीं-थोड़ा धीरे भी

20. रोगों की जड़ शरीर में नहीं मन में

21. प्रस्तुत शोध प्रबन्ध में परिजनो से अपेक्षायें

22. अपनो से अपनी बात-परिवार निर्माण पर नये सिरे से ध्यान दिया जाय

23. आवश्यक साधन जुटाने ही होंगे

24. महत्वपूर्ण प्रकाशन

25. युगान्तर चित्रण-कविता


अखण्ड ज्योति अक्टूबर 1979

1. जीवन लक्ष्य की प्राप्ति में तीन प्रमुख व्यवधान

2. न तेषु रमते बुधः

3. परम पिता के अजस्र अनुदान

4. प्रार्थना अर्थात् विनम्र पुरूषार्थ

5. प्रेय के साथ श्रेय भी जुड़ा हैं

6. जीवन यात्रा की भीषण दुर्घटना

7. जीवात्मा की अकूत शक्ति

8. अन्तःशक्ति की विलक्षणता के तथ्य प्रमाण

9. रहस्यों की पिटारी-पीनियल ग्रन्थि

10. सिद्धियाँ देखिये, जानिये

11. मृत्यु से अधिक निश्चित कुछ भी नहीं

12. वायु मण्डल और वातावरण बदला जाय

13. पुण्य की प्रतिष्ठा

14. समय के सदुपयोग बिना आत्म सन्तोष असम्भव

15. मानवेतर सृष्टि कम आकर्षक नहीं

16. हाथ में घड़ी चाल में सुस्ती

17. मानसिक तनाव बुरा तो हैं ही, उपयोगी भी

18. जल्दी पढ़ने की तकनीक

19. परम्परा की कसोटी-विवेक

20. अभीष्ट सफलता के लिए आवश्यक मनोजय

21. मुक्त कण्ठ से हँसिये, जी भरकर रोइये

22. श्रद्धया सत्यमाप्यते

23. सहयोग भावना से स्वर्गीय वातावरण का सृजन

24. अपनो से अपनी बात

25. साधन सम्पन्न और बुद्धिजीवियों से सहयोग का आह्वान

26. फूल भी शूल

अखण्ड ज्योति सितम्बर 1979

1. आवरण बन्धनों का विस्फोट

2. ज्ञान शक्ति की गौरव गरिमा

3. आत्म-ज्ञान मानव जीवन की सर्वोपरि उपलब्धि

4. संयम बरतें-स्वस्थ रहें

5. अनन्त ईश्वर की समीपता से अनन्त सामर्थ्य की प्राप्ति

6. ईश्वरीय अनुग्रह सबके लिए सहज सुगम

7. गतिशील-जीवन प्रवाह

8. चलो ! मरण त्यौंहार मनाये

9. कल्पना और सत्य मात्र संयोग या तथ्य

10. कृतज्ञता का पाठ न भूलें

11. भूत व भविष्य दोनो को वर्तमान में देखा जा सकता हैं

12. पशु-पक्षी भी सम्वेदना शून्य नहीं

13. विनाश की विभीषिकायें और सृजन की सम्भावनायें

14. मृत्यु को सामने रखकर चलें

15. स्काई लेब तो मर गया पर प्रेत शान्ति अभी भी शेष हैं

16. स्वाध्याय करें भी, कराये भी

17. संगीत मात्र मनोरंजन के लिए ही नहीं

18. धनोपार्जन की कला भी धर्मनिष्ठ बने

19. सतत् शिक्षा का सिद्धान्त लागू किया जाय

20. यह विष थोड़ा कम करें

21. अपनो से अपनी बात-युग परिवर्तन, प्रज्ञावतार, गायत्री शक्ति पीठ की श्रंखला

22. समर्पित फूल-कविता

अखण्ड ज्योति अगस्त 1979

1. प्रज्ञावतार की पुण्य वेला

2. सृष्टि क्रम में सृष्टा की अवतरण प्रक्रिया

3. अवतार का प्रयोजन और स्वरूप

4. अवतार के प्रकटीकरण और प्रमाण

5. युगान्तरीय चेतना का अवतरण सुनिश्चित

6. आस्था संकट की विभीषिका और उससे निवृति

7. समस्याओं के समाधान और भविष्य निर्धारण का सुनिश्चित आधार

8. युग अवतार प्रज्ञावतार

9. युग शक्ति का अवतरण श्रद्धा और विवेक का संगम

10. नवयुग का आधार अश्रद्धा का उन्मूलन और श्रद्धा का सम्वर्धन

11. नवयुग की सुनिश्चित सम्भावना में श्रद्धा तत्व की भूमिका

12. जाग्रत आत्माओं द्वारा आस्थाओं का उन्नयन

13. धर्म श्रद्धा का सृजनात्मक सदुपयोग

14. युग देवता की दो प्रत्यक्ष प्रेरणायें

15. प्रज्ञावतार का स्वरूप और क्रिया-कलाप

16. कार्य क्षेत्र का विस्तार और प्रबन्ध

17. कलंक और आक्रमण से निष्कलंक की सुरक्षा

18. उद्दात अनुदानो के लिए युग चेतना का आह्वान

19. सुरक्षा साधना का समर्थ ब्रह्मास्त्र

20. गायत्री नगर में तीर्थ सेवन की नई व्यवस्था

21. कुछ सामयिक सूचनाएं और अपेक्षाएं

22. युग निर्माताओं से

अखण्ड ज्योति जुलाई 1979

1. साधना से सिद्धि का तत्वदर्शन

2. शम्भवाय च मयोभवाय च

3. क्या जगत वस्तुतः मिथ्या ही हैं ?

4. मरणोत्तर जीवन एक सचाई: एक तथ्य

5. अन्तःप्रकाश का दर्शन-आन्तरिक शुद्धि से

6. पूर्व जन्म के संचित संस्कार, विलक्षण प्रतिभा के उपहार

7. धर्मो विश्वस्य जगतः प्रतिष्ठा

8. मन को सन्तुलित और सुव्यवस्थित रखा जाय

9. हीनाचार परीतात्मा

10. सृजन और ध्वंस का अविराम क्रम

11. इच्छा-शक्ति का साधना से अदृश्य दर्शन

12. ज्ञान का उद्देश्य-पीड़ा और पतन निवारण

13. अन्तःकरण की सुन्दरता साधना से बढ़ती है

14. स्वल्प साधनों में सौभाग्य

15. सिद्धियाँ न तो आवश्यक हैं न लाभप्रद

16. स्वास्थ्य-नदी का प्रवाह

17. मौत इस तरह आगे धकेली जा सकती हैं

18. धन का संग्रह नहीं, सदुपयोग किया जाय

19. एक बहुत बुरी खबर

20. सामूहिक प्रार्थना की विशिष्ट प्रतिक्रिया

21. नवयुग का अरूणोदय-युगशक्ति का अवतरण

22. संगति से गुण होत हैं-संगति ले गुण जाहिं

23. अपनो से अपनी बात

अखण्ड ज्योति जून 1979

1. मनुष्य जीवन का सुनिश्चित कल्प वृक्ष

2. साधना का प्रथम चरण

3. परमात्म-सत्ता के अकाट्य प्रमाण

4. तथ्यों और मान्यताओं का अन्तर समझा जाय

5. वासांसि जीर्णानि यथा विहाय

6. ‘‘श्रेयात् सिद्धि’’

7. यह जीवन भी कोई जीवन हैं

8. महामानव अर्थात् चरित्र-निष्ठा

9. प्रकृति के बन्धनों से मुक्ति मानवी चेतना

10. निर्भयता-श्रेयस् की जननी

11. अवांछनीय अभिवृति के दुष्परिणाम

12. अपनी इच्छा ही नहीं दूसरों का हित भी देंखे

13. पूर्वाग्रह छोड़े, प्रगतिशीलता अपनाये

14. अदृश्य शक्तियों का परोक्ष सहयोग

15. उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः

16. सृजन की ओर बढ़े, ध्वंस को रोके

17. संकल्प शक्ति का सदुपयोग किया जाय

18. मन्त्र विद्या-ध्वनि शक्ति का उच्चस्तरीय उपयोग

19. स्वस्थ जीवन की कुन्जी

20. मस्तिष्क की प्रसुप्त क्षमतायें और उनकी जाग्रति

21. सर्व चिन्ता परित्यागो निश्चिन्तो योग उच्यते

22. क्रोध के सर्वनाशी आवेग से बचें

23. शक्ति के दुरूपयोग की विभीषिका

24. वैज्ञानिक दृष्टि से अध्यात्म का प्रतिपादन साहित्य

25. फसल उगाना है

अखण्ड ज्योति मई 1979

1. तीर्थ परम्परा पावन यज्ञ

2. धर्म धारणा के आलोक केन्द्र-तीर्थ

3. तीर्थ स्थापना का प्रयोजन और स्वरूप

4. तीर्थों का निर्माण और तीर्थ यात्रा का पुण्य प्रयोजन

5. व्यक्ति और समाज के उत्थान में तीर्थ प्रक्रिया का योगदान

6. तीर्थ परम्परा के पीछे सन्निहित उद्देश्य और आदर्श

7. तीर्थों की सुव्यवस्था हर दृष्टि से श्रेयस्कर

8. तीर्थों का कलेवर ही नहीं, प्राण भी बना रहे

9. तीर्थ प्रक्रिया को पुर्नजीवित करने की आवश्यकता

10. तीर्थ परम्परा में गायत्री शक्तिपीठों की नई श्रंखला

11. गायत्री तीर्थों के घोषित स्थानो की पृष्ठभूमि

12. तीर्थ संचालन के लिए पाँच परिव्राजक

13. शक्तिपीठ का भवन और उसका स्वरूप

14. शक्तिपीठों का संचालन परिव्राजकों द्वारा

15. शक्तिपीठों के लिए प्राणवान परिव्राजक चाहिए

16. जाग्रत आत्माओं का अंशदान अपेक्षित

17. छोटे शक्तिपीठ जो हर जगह बनने और चलने चाहिए

18. शक्तिपीठों के निर्माण का विकास विस्तार

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