शनिवार, 10 सितंबर 2011

संकल्प वह हैं जिसके आगे कोई विकल्प नही।

1) संकल्प यानि सम्पूर्ण कल्पना।
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2) संकल्प में समायी शक्ति का मूलस्वरुप आध्यात्मिक है।
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3) संकल्प शक्ति असंभव को भी संभव बना देती है।
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4) संकल्प वह हैं जिसके आगे कोई विकल्प नही।
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5) संकल्पवान ही आत्म तत्व को जान पाते है।
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6) सम्पत्ति को अपने अधिकार में रखो, स्वयं सम्पत्ति के अधिकार में मत हो जाओ।
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7) संपूर्ण विकास के लिए प्रसन्नता के क्षण जितने जरुरी हैं, विषाद के क्षणो की भी उतनी ही आवश्यकता हैं। दोनो ही स्थितियों में हमारे विवेक की परीक्षा होती है।
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8) संस्कार ही संस्कृति का निर्माण करते है।
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9) संस्कारो को उद्बुद्ध करने के उद्धेश्य से हित तथा पथ्य की बात का बार बार उपदेश करने में कोई दोष नहीं है।
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10) संसार एक कारावास हैं। यहा कोई आवश्यकताओं का बन्धक हैं तो कोई महत्वाकांक्षाओं का दास।
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11) संसार की सर्वोत्कृष्ट विभूति सद्बुद्धि एवं सत्प्रवृत्ति हैं उसे प्राप्त किये बिना किसी का जीवन सफल नहीं हो सकता है।
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12) संसार की अधिकांश प्रतिभायें पुस्तकों से निकली है।
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13) संसार का आश्रय छोडने से जो सुख मिलता है, जो ताजगी मिलती हैं, जो काम करने की शक्ति का संचय होता हैं, वह संसार का आश्रय लेते हुए नहीं होता है। शक्ति का संचय तो दूर रहा, उलटे शक्ति खर्च होती है।
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14) संसार के बडे-से-बडे पराक्रम-पुरुषार्थ एवं उपार्जन की तुलना में तप-साधना का मूल्य अत्यधिक हैं। जौहरी काँच को फेंक कर रत्न की साज-सम्भाल करता है। हमने भी भौतिक सुखों को लात मारकर यदि तप की सम्पत्ति एकत्रित करने का निश्चय किया हैं तो उससे मोहग्रस्त परिजन भले ही खिन्न होते रहे, वस्तुतः उस निश्चय में दूरदर्शिता और बुद्धिमता ही ओत-प्रोत है।
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15) संसार के लिये उपयोगी होना कर्मयोग, अपने लिये उपयोगी होना ज्ञानयोग, और भगवान के लिये उपयोगी होना भक्तियोग है।
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16) संसार में कृपालु न्याय नहीं कर सकता और न्यायकारी कृपा नहीं कर सकता। परन्तु भगवान् में न्याय और कृपा-दोनो पूरे-के-पूरे है।
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17) संसार में किसी भी व्यक्ति की बाहरी क्रिया को देखकर कृपया निर्णय मत करना वरना तुम उस व्यक्ति के अपराधी बन जाओगे।
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18) संसार में रहो, लेकिन संसारी न बनो।
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19) संसार में सबसे बडे अधिकार सेवा और त्याग से ही मिलते हैं।
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20) संसार में सबसे शक्तिशाली मनुष्य वही हैं जो आत्मावलम्बी है।
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21) संसार विचार भिन्नता से भरा पडा हैं उनमें से मात्र उन्हे ही स्वीकार करो जो विवेक की कसौटी पर खरे उतरे।
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22) संसार भव बन्धन नहीं हैं और न ही माया जाल है। वह सृष्टा की सर्वोत्तम कला कृति है।
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23) संसार से सुख चाहने वाला दुःख से कभी बच सकता ही नही।
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24) संवेदना भावुकता की विकसित अवस्था है।

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