मंगलवार, 12 जुलाई 2011

जिससे एक अक्षर भी सीखा हो, उसका आदर करो।

1) जिस व्यक्ति को समय का मूल्य नहीं मालूम, वह जीवन में क्या कर सकता है।
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2) जिस वक्त जो मिल जाये उसे ईश्वर की प्रसन्नता के निमित्त किया जाये तो आप आसानी से उन्नत हो जाओगे।
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3) जिस तरह हर अक्षर एक मन्त्र हैं उसी तरह हर वृक्ष एक औषधि है।
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4) जिस तरह प्रकाश को जानने के लिये नेत्रों की आवश्यकता हैं, उसी तरह तत्व ज्ञान प्राप्त करने के लिये ज्ञान और विवेक की आवश्यकता हैं, जिसके बिना हमारा जीवन व्यर्थ है।
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5) जिस गुण को आप अपने में लाना चाहते हैं, उस गुण वाले का संग करो। यह बहुत बढिया उपाय है।
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6) जिसकी दिनचर्या अस्त-व्यस्त हैं वह अपने जीवन में भी भूला-भटका रहता है।
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7) जिसकी दृष्टि वश में नहीं हैं , उसे कुमार्ग पर जाना पडता है।
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8) जिसकी अंतरात्मा में विश्वमानव की सेवा करने, इस संसार को अधिक सुन्दर-सुव्यवस्थित एवं सुखी बनाने की भावनाए उठती रहती हैं और इस मार्ग में चलने की प्रबल प्रेरणायें होती हैं, वस्तुतः सच्चा परमार्थी और ईश्वरभक्त वही है।
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9) जिसका मन और वाणी सदैव शुद्ध और संयत रहती हैं, वह वेदान्त शास्त्र के सब फलों को प्राप्त कर लेता हैं।
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10) जिसका पहनावा जिस ढंग का हैं, उसके मन में कहीं-न-कहीं उन्ही सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति आस्था भी छिपी होगी।
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11) जिसका प्रत्येक कर्म भगवान को-आदर्शो को समर्पित होता हैं, वही सबसे बडा योगी है।
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12) जिसका स्वभाव बडो को प्रणाम करने, वृद्धजनों की सेवा करने का हैं, ऐसे मनुष्य के चार पदार्थ बढते हैं - आयु, विद्या, यश और बल।
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13) जिसका स्वामी घट-घट वासी, वह सेवक कैसे हो पापी।
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14) जिसका उद्धेश्य ऊँचा हैं, उसे आरामतलबी से बचना चाहिये।
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15) जिसका अपनापन जितना संकुचित हैं, वह आत्मिक दृष्टि से उतना ही छोटा है।
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16) जिसके घर में माता न हों, और स्त्री अप्रिय बोलने वाली हों, उसे वन में चले जाना चाहिये, उसके लिये घर और वन दोनो समान है।
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17) जिसके विचार उत्तम हैं, वह उत्तम कार्य करेगा, जिसके कार्य उत्तम होंगे उसके चरणों तले सुख-शान्ति लोटती रहेगी।
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18) जिसके चित्त में कभी क्रोध नहीं आता, और जिसके हृदय में सर्वदा परमेश्वर विराजमान रहते हैं वह भक्त ईश्वर तुल्य है।
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19) जिसके भीतर अभिमान होता हैं, उसपर अच्छी शिक्षा का भी उलटा असर पडता है।
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20) जिसके पास अच्छे मित्र हैं, उसे दर्पण की जरुरत नहीं होती।
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21) जिसके साथ सत्य हैं वह अकेला होते हुए भी बहुमत में है।
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22) जिसमे सन्मार्ग पर चलने का साहस हैं, उसका कभी पतन-पराभव नही होता है।
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23) जिसमें प्रेम-भावना नहीं, वह न तो आस्तिक हैं और न ईश्वर भक्त, न भजन जानता हैं न पूजन। निष्ठुर, नीरस , निर्दय , सूखे , तीखे, स्वार्थी, संकीर्ण, कडुए, कर्कश, निन्दक प्रवृत्ति के मनुष्यों को आत्मिक दृष्टि से नास्तिक एवं अनात्मवादी ही कहा जायेगा, भले ही वे घण्टो पूजा-पाठ करते हो अथवा व्रत-उपासना, स्नान-ध्यान, तीर्थ-पूजन, कथा-कीर्तन करने में घण्टो लगाते रहे हो।
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24) जिससे एक अक्षर भी सीखा हो, उसका आदर करो।

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