बुधवार, 13 जुलाई 2011

हमारी बुद्धि कल्याणकारिणी हो।

1) हम अपनी बुद्धि से गीता को नहीं समझ सकते। अतः गीता की शरण हो जाना चाहिये।
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2) हम अपनी भावनायें पाप, घृणा और निन्दा में डुबायें रखने की अपेक्षा सद्विचारों में लगाये।
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3) हम अपने राष्ट्र में सदा जागरुक रहे और राष्ट्र रक्षा के काम में सदा अग्रणी रहे।
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4) हम असीम क्यों न बने ? असीमता का आनन्द क्यों न ले ? सीमा ही बन्धन हैं, असीमता में मुक्ति का तत्व भरा हैं। जिसका इन्द्रियों में ही सुख सीमित हैं, वह बेचारा क्षुद्र प्राणी, इस असीम परमात्मा के असीम विश्व में भरे हुए असीम आनन्द का भला कैसे अनुभव कर सकेगा ? जीव तुम असीम हो, आत्मा का असीम विस्तार कर सर्वत्र आनन्द ही आनन्द बिखरा पडा हैं। उसे अनुभव कर और अमर हो जा।
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5) हमारी 24 लक्ष महापुरश्चरण की साधना गायत्री उपासना को इतना महत्व नहीं दिया जाना चाहिए जितना कि मानसिक परिष्कार और भावनात्मक उत्कृष्टता के अभिवर्द्धन के प्रयत्नों को। परमपूज्यगुरुदेव
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6) हमारी ईश्वर भक्ति, पूजा उपासना से आरम्भ होती हैं और प्राणिमात्र को अपनी ही आत्मा के समान अनुभव करने और अपनी ही शरीर के अंग अवयवो की तरह अपनेपन की भावना रखते हुए अनन्य श्रद्धा चरितार्थ करने तक व्यापक होती चली जाती है।
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7) हमारी बुद्धि कल्याणकारिणी हो।
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8) हमारी मानसिक अशान्ति, उद्विग्नता, क्षोभ, नैराश्य, क्लेश और दुःखादि के मूल में हैं हमारे द्वारा लोकहित का बाधित होना।
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9) हमारा मन उपजाउ खेत हैं, जैसा बोयेंगे, वैसा ही काटेंगे।
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10) हमारा परिधान सभी को इस बात की सूचना दे सके कि हम राजनीतिक रुप से ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक रुप से भी स्वतंत्र हैं और हमारी भारतीय जीवन मूल्यों में आस्था है।
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11) हमारे विचार ही हमारा भाग्य लिखते हैं। ईश्वर की यह सनातन व्यवस्था है।
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12) हमारे पवित्र विचारों का मन्दिर मौन है।
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13) हमें मनुष्य शरीर में आकर दो काम करने है-सेवा करना और भगवान् को याद रखना है।
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14) हमें नियमित रुप से सद्ग्रन्थो का अवलोकन करना चाहिये, उत्तम पुस्तको का स्वाध्याय जीवन का आवश्यक कर्तव्य बना लेना चाहिये।
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15) हमें परमार्थ के पथ पर चलाने वाली परिष्कृत बुद्धि को प्रज्ञा कहते हैं।
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16) हमें अपने मस्तक पर प्रभु का हाथ समझ कर सदा आनन्दित रहना चाहिये।
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17) हीन भावना वाले लोग भार ढोते हैं, भार रहते है, और भार बढाते है।
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18) हर क्षण में एक अनोखी सम्भावना छिपी हैं, पर ये साकार तभी हो सकती हैं जब इसका सुनियोजन सर्वोच्च स्तर पर हो।
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19) हर कठिनाई में शुभ अवसर, खोजे आशावादी। अवसर में कठिनाई खोजे घोर निराशावादी।
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20) हर काम को पूरी लगन से करेंगे तो कभी पछताना नहीं पड़ेगा।
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21) हर महान् व्यक्तित्व को प्रकृति ने आपदाओ और विषमताओं की छेनी-हथौडी से उन्हे गढा-निखारा और सॅवारा है।
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22) हर रोग कुदरत के किसी अज्ञात कानून भंग का ही परिणाम है।
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23) हर व्यक्ति की विशेषताओं को देखे और अपनी कमजोरियों को दूर करे।
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24) हाथ की शोभा कंगन से नहीं, दान से है।

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