मंगलवार, 22 फ़रवरी 2011

शिखा - सूत्र और गायत्री मंत्र सभी के लिए

शिखा और सूत्र हिंदूधर्म के प्रतीकचिहृ् हैं- ईसाइयों के क्रूस और मुसलमानों के चाँद-तारे की तरह । सृष्टि के आरंभ में ॐकार, ॐकार से तीन व्याहृतियों के रूप में तीन तत्त्व या तीन गुण, तीन प्राण । इसके बाद अनेकानेक तत्त्वदर्शन और साधना-विज्ञान के पक्षों का विस्तरण । सृष्टि के साथ जुड़े हुए अनेक भौतिक रहस्य भी उसी क्रम-उपक्रम के साथ जुड़े समझे जा सकते हैं । अंत में भी जो एक शेष रह जाएगा, वह गायत्री का बीजमंत्र ॐकार ही है ।
 
समझदारी का उदय होते ही हर हिंदू बालक को द्विजत्व की दीक्षा दी जाती है । उसके सिर पर गायत्री का ध्वाजारोहण शिखा के रूप में किया जाता है । सूत्र अर्थात् यज्ञोपवीत । उसका धारण नर-पशु से नर-देव के जीवन में प्रवेश करना है । द्विजत्व अर्थात् जीवनचर्या को आदर्शों के अनुशासन में बाँधना । यह स्मरण प्रतीक-रूप में हृदय, कंधे, पीठ आदि शरीर के प्रमुख अंगों पर हर घड़ी सवार रहे, इसलिए नौ महान सद्गुणों -पाँच क्रियापरक और चार भावनापरक, (1-श्रमशीलता 2- शिष्टता 3- मितव्ययिता 4- सुव्यस्था 5- उदार सहकारिता 6- समझदारी 7- ईमानदारी 8- जिम्मेदारी 9- बहादुरी)  का प्रतीक -उपनयन हर वयस्क को पहनाया जाता है । 
मध्यकाल के सांमतवादी अंधकार-युग में विकृतियाँ हर क्षेत्र में घुस पड़ी । उनने संस्कृतिपरक भाव-संवेदनाओं और प्रतीकों को भी अछूता नहीं छोड़ा । कहा जाने लगा-गायत्री मात्र ब्राह्राण-वंश के लिए है, अन्य जातियाँ उसे धारण न करे, स्त्रियाँ भी गायत्री से संबंध न रखें, उसे सामूहिक रूप से इस प्रकार न दिया जाए कि दूसरे लोग उसे सुन या सीख सकें । ऐसे मनगढ़ंत प्रतिबंध क्यों लगाए गए होंगे, इसका कारण खोजने पर एक ही बात समझ में आती है कि मध्यकाल में अनेकानेक मत-संप्रदाय जब बरसाती मेंढकों की तरह उबल पड़े तो उनने अपनी-अपनी अलग-अलग विधि-व्यवस्था, प्रथा-परंपरा, भक्ति-साधना आदि के अपने-अपने ढ़ग के प्रसंग गढ़े होंगे । उनके मार्ग में अनादि मान्यता गायत्री से बाधा पड़ती होगी, दाल न गलती होगी, ऐसी दशा में उन सबने सोचा होगा कि अनादि मान्यता के प्रति अनेक संदेह पैदा किए जाएँ, जिसके चलते लोगों का ध्यान शाश्वत प्रतिष्ठापना की ओर से विरत किया जा सके ।
 
कलियुग में गायत्री फलित नहीं होती, यह कथन भी ऐसे ही लोगों का है । इन लोगों को बताया जा सकता है कि युग निर्माण योजना ने किस प्रकार गायत्री महामंत्र के माध्यम से समस्त संसार के नर-नारियों का इस दिशाधारा के साथ जोड़ा है और उनमें उसे उन सभी को उल्लास भरे प्रतिफल किस प्रकार मिले हैं । यदि उन लोगों के प्रतिपादन सही होते तो गायत्री की अनुपयोगिता के पक्ष में लोकमत हो गया होता, जबकि विवेचना से प्रतीत होता है कि इन्हीं दिनों उसका विश्वव्यापी विस्तार हुआ है और अनुभव के आधार पर सभी ने यह पाया है कि 'सद्बुद्धि' की उपासना ही समय की पुकार और श्रेष्ठत्तम उपासना है । 
इस सन्दर्भ में नर और नारी का भी अंतर नहीं स्वीकारा जा सकता है । गायत्री स्वयं मातृरूपा है । माता की गोद में उनकी पुत्रियों को न बैठने दिया जाए, कहाँ का न्याय है! भगवान के साथ रिश्ते जोड़ते हुए उसे 'त्वमेव माता च पिता त्वमेव' जैसे श्लोकों में परमात्मा को सर्वप्रथम माता बाद में पिता, मित्र, सखा, गुरु आदि के रूप में बताया गया है । गायत्री को नारी-रूप में मान्यता देने के पीछे एक प्रयोजन यह भी है कि मातृशक्ति के प्रति इन दिनों जो अवहेलना व अवज्ञा का भाव अपनाया जा रहा है, उसे निरस्त किया जा सके । अगली शताब्दी नारी-शताब्दी है । अब तक हर प्रयोजन के लिए नर को प्रमुख और नारी को गौण ही नहीं, हेय-वंचित रखे जाने योग्य माना जाता रहा है । अगले दिनों यह मान्यता सर्वथा उलट दी जाने वाली है । नारी-वर्चस्व का प्राथमिकता मिलने जा रही है । ऐसी दशा में यदि भगवान को नारी-रूप में प्रमुखतापूर्वक मान्यता मिल तो उसमें न तो कुछ नया है और न अमान्य ठहराने योग्य । यह तो शाश्वत परंपरा का पुनजीर्वन मात्र है । स्रष्टा ने सर्वप्रथम प्रकृति को नारी के रूप में ही सृजा है । उसी की उदरदरी से प्राणिमात्र का उद्भव-उत्पादन पड़ा है । फिर नारी को गायत्री-साधना से, उपनयन-धारण से वंचित रखा जाए, यह किस प्रकार बुद्धिसंगत हो सकता है । शांतिकुंज के गायत्री-आंदोलन ने रूढ़िवादी प्रतिबंधों को इस संदर्भ में कितनी तत्परता और सफतापूर्वक निरस्त करके रख दिया है, इसे कोई भी, कहीं भी देख सकता है । गायत्री-उपासना और यज्ञापवीत-धारण को बिना किसी भेदभाव के सर्वधारण के लिए अपनी योग्य स्थिति में ला दिया गया है । उसके सत्परिणाम भी प्रत्यक्ष मिलते देखे जा रहे हैं । अगले दिनों समस्त संसार एक केन्द्र की ओर बढ़ता जा रहा है । ऐसी दशा में गायत्री को सर्वभौम मान्यता मिले और उसे सार्वजनिक ठहराया जाए तो इसमें आश्चर्य ही क्या है! 
-युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य 

कोई टिप्पणी नहीं:

LinkWithin

Blog Widget by LinkWithin