गुरुवार, 20 दिसंबर 2012

निर्णय शक्ति

कोई मनुष्य यदि कल्पना कर सकता है और बिना विचारे उस पर आसक्त हो जाता है, तो वह एक खतरनाक मार्ग को अपनाता है । ज्यों ही एक कल्पना उठी, त्यों ही उस पर आसक्त होकर कार्य रूप में लाने को तुरंत तैयार हो जाना- एक ऐसा दुर्गुण है, जिसके कारण लोग अकसर धोखा खाते और ठगे जाते हैं । 
अपनी ही कल्पना के आवेश में ये कुछ का कुछ कर बैठते हैं । आत्महत्या जैसे दुःखद परिणाम निर्णय शक्ति के अभाव और आवेश में होते हैं ।

-पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
बुद्धि बढ़ाने की वैज्ञानिक विधि - पृ. ८

कल्पना से कार्य तक

जो कल्पनाएँ आपके मस्तिष्क में उठें, उनके संबंध में प्रथम विचार कीजिए कि उनसे हमारा कोई लाभ है या नहीं । यदि निरर्थक हानिकर कल्पनाएँ उठती हैं, तो उन्हें अपने मानसलोक से निकाल बाहर कीजिए । प्रथम अपना उद्देश्य और कार्यक्रम निर्धारित कीजिए । फिर मन को आज्ञा दीजिए कि उन्हीं की सीमा के अंदर कल्पनाओं की लहरें उत्पन्न करें । निर्धारित क्षेत्र में उपजी हुई कल्पनाएँ यदि दिलचस्प हों, तो भावना के स्वरूप में प्रकट होती हैं ।

भावनाओं का तर्कों द्वारा संशोधन करना चाहिए । जिस प्रकार एक चतुर न्यायाधीश दोनों पक्ष की दलीलें सुनने के बाद उसमें झूठ, सच का पृथक्करण करता है, उसी प्रकार विचारणीय विषय के औचित्य-अनौचित्य का विशुद्ध ज्ञान और अनुभव के आधार पर निर्णय करना चाहिए । जिन जटिल विषयों के संबंध में अपना ज्ञान अपर्याप्त मालूम हो, उनके संबंधों में अन्य महापुरूषों की सम्मति लेनी चाहिए । इस प्रकार जो निर्णय कर लिया जाय, विवेक बुद्धि जिसे करने की आज्ञा दे और हृदय के अंदर से जिसके करने में उत्साह उठ रहा हो, उसे ठीक निर्णय मान लेना चाहिए । ऐसे सुस्थिर विचारों को कार्यरूप में लाने में अपयश और असफलता का मुँह नहीं देखना पड़ता और उनका कर्ता बुद्धिमान् समझा जाता है।

-पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
बुद्धि बढ़ाने की वैज्ञानिक विधि - पृ. ९

विचार क्रान्ति के बीज

भारत को आज मैं उस मन:स्थिति में देख रहा हूँ, जिसमें अवतार की आकांक्षा होती है। यह जरुरी नहीं है कि मनुष्य का अवतार होगा। विचार का भी अवतार होता है। लोग समझते है कि रामचंद्र एक अवतार थे, कृष्ण-बुद्ध अवतार थे। लेकिन उन्हें हमने अवतार बनाया है। वे आपके और मेरे जैसे मनुष्य ही थे। उन्होंने एक विचार का संचार सृष्टि में किया और वे उस विचार के मूर्तरुप बन गये, इसलिए लोगों ने उन्हे अवतार माना।

भगवान किसी-न-किसी गुण या विचार के रुप में अवतार लेता है और उस गुण या विचार को मूर्तरुप देने में जिनका अधिक से अधिक परिश्रम लगता है, उन्हें जनता अवतार मान लेती है। यह अवतार मीमांसा है।

वास्तव में अवतार व्यक्ति का नहीं, विचार का होता है और विचार के तौर पर मनुष्य काम करते हैं। किसी युग में सत्य की महिमा प्रकट हुई, किसी में प्रेम की, किसी में करुणा की तो किसी में व्यवस्था की। इस तरह भिन्न-भिन्न गुणों की महिमा प्रकट हुई है।
-महात्मा विनोबा

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