गुरुवार, 12 जुलाई 2012

जीवन का सच्चा सहचर-ईश्वर

ऐसा सबसे उपयुक्त साथी जो निरंतर मित्र, सखा, सेवक, गुरु, सहायक की तरह हर घड़ी प्रस्तुत रहे और बदले में कुछ भी प्रत्युपकार न माँगे, केवल एक ईश्वर ही हो सकता है।

ईश्वर को जीवन का सहचर बना लेने से मंजिल इतनी मंगलमय हो जाती है कि यह धरती ही ईश्वर के लोक, स्वर्ग जैसी आनंदयुक्त प्रतीत होने लगती है। 

यों ईश्वर सबके साथ है और वह सबकी सहायता भी करता है, पर जो उसे समझते हैं, वास्तविक लाभ उन्हें ही मिल पाता है। किसी के घर में सोना गड़ा है और उसे वह प्रतीत न हो, तो गरीबी ही अनुभव होती रहेगी, किंतु यदि मालूम हो कि घर में इतना सोना है, तो उसका भले ही उपयोग न किया जाए, मन में अमीरी का गर्व और विश्वास बना रहेगा। ईश्वर को भूले रहने पर हमें अकेलापन प्रतीत होता है, पर जब उसे अपने रोम-रोम में समाया हुआ, अजस्र प्रेम और सहयोग बरसाता हुआ अनुभव करते हैं, तो साहस हजारों गुना अधिक हो जाता है। आशा और विश्वास से हृदय हर घड़ी भरा रहता है। जिसने ईश्वर को भुला रखा है, अपने बलबूते पर ही सब कुछ करता है और सोचता है, उसे जिंदगी बहुत भारी प्रतीत होती है। इतना वजन उठाकर चलने में उसके पैर लडख़ड़ाने लगते हैं। अपने साधनों में कमी दीखने पर भविष्य अंधकारमय प्रतीत होने लगता है। जिसे ईश्वर पर विश्वास है, वह सदा यही अनुभव करेगा कि कोई बड़ी शक्ति मेरे साथ है। जहाँ अपना बल थकेगा, उसका बल मिलेगा। 
-पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

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