शुक्रवार, 28 अक्तूबर 2011

Do kadam...

Shreshta....

बुराई की गति


बुराई आदमी को पहले अज्ञानी व्यक्ति के समान मिलती है और हाथ बाँधकर नौकर की तरह उसके सामने खड़ी हो जाती है । फिर मित्र बन जाती है और निकट आ जाती है । फिर मालिक बनती है और आदमी के सिर पर सवार हो जाती है एवं उसको सदा के लिये अपना दास बना लेती है । (अखण्ड ज्योति, मार्च-५३)

कर्म की सार्थकता

अंहकार रहित भक्तिमय कर्म की ही सार्थकता है । हम जो भी कार्य करें चाहे वह पड़ोसी का हो, समाज एवं राष्ट्र का हो; कृषि सम्बन्धी, विद्यालय या ऑफिस सम्बन्धी हो; छोटा या बड़ा हो; उसमें समर्पण भाव होना चाहिए, पूर्ण मनोयोग जुड़ना चाहिए, तभी वह कार्य उत्तम, परिणाम उत्कृष्ट और कर्त्ता श्रेष्ठ कहलाता है ।
(वाङ्गमय-४, पृष्ठ १.१९) 


बल की उपासना करो

निर्बलता पाप है । पापी व्यक्ति की तरह निर्बल को भी पृथ्वी पर सुख से जीने का अधिकार प्रकृति नहीं देती है । शरीर की कमजोरी से रोग घेरते हैं, मानसिक कमजोरी से चिन्ताएँ सताती हैं । अपनी बौद्धिक क्षमताएँ दुर्बल पड़ी हों तो यह निश्चित है कि आप पराधीनता के पाश में जकड़े होंगे । इसलिये आप बल की उपासना करो । शक्ति अर्जन जीवन की अनिवार्य आवश्यकता है । 
(अखण्ड ज्योति जून-१९८९, पृ.१) 


महानता ही वरेण्य है


महान उद्देश्य के लिये अपने छोटे से सांसारिक हित को शहीद कर देने की परम्परा का पालन करने वाले लोग ही संसार में महापुरुष हुए और मानवता को योगदान देने वाले काम कर सके । जो केवल स्त्री, बच्चे, पद-प्रतिष्ठा, धन और ऐश्वर्य की विडम्बना से चिपका रहा, वह तो संसार में व्यर्थ ही जिया और मरने वालों की एक संख्या बढ़ा गया । 
(वाङमय-५०, पृष्ठ-५.३१) 

हम बदलेंगे-युग बदलेगा


हम अपना दृष्टिकोण परिष्कृत करें, रीति बदलें । अनुकरणीय आदर्शवादिता के लिये दुःसाहस कर सकना न तो कठिन है, न असंभव; इसका उदाहरण हमें अपने आचरण द्वारा लोगों के सामने प्रस्तुत करना होगा । परोपदेश की प्रवीणता प्राप्त करके वाक्-विलास भर हो सकता है, उससे कुछ बनता नहीं । दूसरों को गहरी प्रेरणा देने का एकमात्र उपाय यही है कि हम अपना आदर्श प्रस्तुत करके लोगों में अनुगमन का साहस उत्पन्न करें । व्यक्तियों का परिवर्तन ही युग परिवर्तन है । (वाङमय-६६, पृ.२.११) 


घमण्ड मत करो

घमण्ड मत करो, वह बहुत बोझिल होता है । उसका रख-रखाव करने के लिये बहुत समय लगता है और खर्च पड़ता है । प्रसन्न रहना उससे कहीं अच्छा है । घमण्डी की तुलना में लोग हँसमुख से अधिक प्रभावित होते हैं । नम्रतायुक्त प्रसन्नता बड़प्पन की निशानी है और शेखीखोरी ओछेपन की । 
(अखण्ड ज्योति मार्च-१९८७, पृ.२) 

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