रविवार, 4 सितंबर 2011

ज्ञानयज्ञ इस युग का सबसे बडा परमार्थ है।

1) शरीर संयम से क्षमता वान बनता हैं तो मन स्वाध्याय से।
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2) शरीर सहित संसार में किसी को भी अपना न जानना चाहिये।
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3) शरीर तो मिट्टी का दिया हैं। और दिये का मूल्य ज्योति से हैं। तुम्हारा मूल्य भी भीतर छिपी परमात्म-ज्योति से है।
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4) शरीर और मन की प्रसन्नता के लिये जिसने आत्म प्रयोजन का बलिदान कर दिया, वह सबसे बढकर अभागा है।
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5) शरीफों की गरीबी में भी इज्जत कम नहीं होती, करो सोने के टुकडे सौ तो भी कीमत कम नहीं होती।
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6) शान्ति के समान दूसरा तप नही, सन्तोष से बडा कोई सुख नहीं, तृष्णा से अधिक बडा कोई रोग नहीं और दया से बडा कोई धर्म नही।
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7) शान्ति से क्रोध को, भलाई से बुराई को, शोर्य से दुष्टता को और असत्य को सत्य से जीते।
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8) शास्त्रानुकूल सम्पूर्ण विहित कर्मो का नाम सदाचार है।
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9) ज्ञान यज्ञ की लाल मशाल में मेरे हर प्रियजन को श्रद्धा और स्नेह डालते ही रहना हैं और इसे किसी भी कीमत पर बुझने नहीं देना है।
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10) ज्ञान की सार्थकता आचरण में है। 
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11) ज्ञान की नौका से भवसागर को पार करे।
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12) ज्ञान का अर्थ हैं-उत्कृष्ट चिन्तन तथा भक्ति का तात्पर्य हैं संवेदना, भावना।
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13) ज्ञान को कर्म का सहयोग न मिले तो कितना ही उपयोगी होने पर भी वह ज्ञान निरर्थक है।
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14) ज्ञान के स्पर्श से मनुष्य अत्यधिक महान् बन सकता है।
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15) ज्ञान केवल सत्य में पाया जाता है।
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16) ज्ञान ही ऐसी निधी हैं जो आत्मा के साथ जन्म-जन्मांतरो तक यात्रा करती है।
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17) ज्ञान भक्ति की शुरुआत हैं, प्रारम्भ हैं और भक्ति ज्ञान की पराकाष्ठा।
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18) ज्ञान दार्शनिक चिन्तन मात्र से नहीं खुद की परिस्थितियों से जूझने से आता है।
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19) ज्ञान वह पंख हैं जिसके द्वारा हम स्वर्ग की ओर उडते है।
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20) ज्ञान और कर्म से समृद्धि उपलब्ध होती है।
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21) ज्ञान और चरित्र मानव जीवन की कसौटी है।
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22) ज्ञान गुण प्राप्त करने के लिये जिस वस्तु की प्रथम एवं प्रमुख आवश्यकता हैं, वह हैं-शिक्षा। शिक्षा ज्ञान की आधार भूमि है।
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23) ज्ञानयज्ञ इस युग का सबसे बडा परमार्थ है।
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24) ज्ञानयज्ञ इस युगका सबसे बडा यज्ञ हैं। ज्ञानदान से बढकर आज की परिस्थितियों में और कोई दान नही। ज्ञान साधना ही इस युग की सबसे बडी साधना है।

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