बुधवार, 20 जुलाई 2011

आपका विवाह हम भगवान् से कराना चाहते हैं


आपका विवाह हम भगवान् से कराना चाहते हैं

(जनवरी १९६९ में गायत्री तपोभूमि में दिया गया प्रवचन)

गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ-
ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

भगवान् की हताशा

देवियो, भाइयो! आपने केवल अपने बेटे के लिए कमाया है, भले ही वह दो कौड़ी का हो। आपने केवल उसी के लिए जीना सीखा है। मित्रो, हमारा जीवन किस काम के लिए खर्च हो गया ? केवल मुट्ठी भर पत्थरों के लिए! हमने कभी भी सोचा नहीं कि हमें किस प्रकार जीना चाहिए। तो गुरुजी हमारी कमाई का क्या होगा? आपकी कमाई बेटे को मिलने वाली है, साले को मिलने वाली है, जमाई को मिलने वाली है। आपने अपनी बीबी को तबाह कर डाला। अरे आप चाहते, तो उसको ऊँचा उठा सकते थे। भगवान् ने आपको मनुष्य का शरीर दिया था। जिस दिन उसने आपको बनाया था, उसके लम्बे-लम्बे ख्वाब थे, उम्मीदें थीं। आपने सब पर पानी फेर दिया।
मित्रो! भगवान् बहुत ज्यादा थक गया है। उसकी इच्छा है कि हमारे प्रिय बेटे मनुष्य, यदि इस दुनिया को सुन्दर बनाते, तो मजा आ जाता। भगवान् को सहभागी और सहयोगी की आवश्यकता थी। इसलिए भगवान् ने आपको बनाया था। उसने आपको अपने नक्शे के अनुसार बड़ी मेहनत से बनाया था। भगवान् के पास गीली मिट्टी थी। उसने कुम्हार के तरीके से उस मिट्टी को इस प्रकार लम्बा कर दिया कि साँप बन गया। गोल-मटोल कर दिया तो कछुआ बन गया, मेढक बन गये। परन्तु जिस दिन भगवान् ने आपको बनाया, तो उन्हें पसीना आ गया। उनका बहुत सारा समय बीत गया। इसके पीछे इस दुनिया को सुन्दर बनाने का उनका उद्देश्य था। एक-एक कण शरीर का, जिसमें मस्तिष्क, हृदय, आँखें आदि सभी अंग बने। आज तक ऐसी बेमिसाल चीज दुनिया में नहीं बनी है, जैसा कि मनुष्य का शरीर है। जब हम हिमालय गये, तो नन्दन वन का फोटो खींचकर लाये। लम्बाई-चौड़ाई थी, परन्तु गहराई का पता नहीं लग सका तथा जो फोटो खींचा था, वह पीले रंग का आया था। उसे देखकर मैंने सोचा कि यह कैसे हो सकता है! फोटो का रंग, तो इस प्रकार का नहीं होना चाहिए। वह तो मखमली था। मैंने उसे उठाकर फेंक दिया। यह सब लेंस का कमाल था। 

वरिष्ठ राजकुमार का यह व्यवहार

मित्रो, हमारी आँखें कितने सुंदर लेंस की बनी हैं, इसका जवाब इस दुनिया में नहीं है। यह वास्तविक फोटो खींच लेती है। इतना बेशकीमती शरीर तथा भगवान् का ऐसा अनुदान किसी प्राणी को नहीं मिला है। इतनी उदारता भगवान् ने क्यों बरती? यह प्रश्र आपके सामने है। आपको विचार करना चाहिए कि भगवान् ने ऐसा पक्षपात क्यों किया? अगर अन्य प्राणियों में सोचने का, विचार करने का माद्दा रहा होता, तो वे भगवान् के सामने उपस्थित हो जाते तथा अपनी फरियाद सुनाकर आपको जेल भिजवा देते। परन्तु उनमें यह माद्दा नहीं, अत: वे बेचारे क्या करें! परन्तु आपको तो विचार करना चाहिए। इस मामले में भगवान् को अगर कोर्ट में बुलाया जाता, तो वह काँपता हुआ आता। जब उससे इस बावत पूछा जाता, तो वह कहता कि मनुष्य को हमने विशेष चीजें इसलिए नहीं दीं कि वह फिजूलखर्ची करे तथा मौज-मस्ती उड़ाये। हमने तो इस दुनिया को सुन्दर बनाने के लिए, उसे सजाने-सँवारने के लिए बनाया था। यह हमारा बड़ा बेटा है, राजकुमार है। हमने इस कारण से उसे राजगद्दी दे दी थी और सारी जिम्मेदारी सौंपी थी। यह इसलिए दिया था कि वह मेरा सहयोग करेगा। हमने बहुत बड़ा ख्वाब देखा था, इसके बारे में कि यह हमारा बड़ा बच्चा है, वरिष्ठ राजकुमार है, जो इस दुनिया को सुन्दर बनाता हुआ चला जाएगा। 
परन्तु उस अभागे को, बेहूदे को मैं क्या कहूँ, जो धूम्रपान कर वहीं आ गया, जहाँ से चला था। वह कुत्ते की योनि से, बन्दर की योनि से, सुअर की योनि से आया था और निम्रकोटि के चिन्तन, विचार होने के कारण फिर से उसी योनि में चला गया। उसे निम्र कोटि के प्राणियों की तरह ही अब भी पेट तथा प्रजनन की बात याद है, बाकी चीजें, तो वह भूल-सा ही गया। उस अभागे को यह समझ में नहीं आया कि जब भगवान् ने बन्दर के लिए, अन्य प्राणियों के लिए पेट भरने की व्यवस्था की है, तो क्या उसके प्रिय पुत्र मनुष्य को वह रोटी का प्रबन्ध नहीं करेगा? परन्तु हाय रे! अभागे मनुष्य-वह इसकी कीमत नहीं जान सका। वह अपने उद्देश्य को भूल गया तथा यह कहने लगा कि मैं अपनी अकल से कमाऊँगा, बहुत अर्जन करूँगा, मौज से रहूँगा। इसी में वह खपता रहा। 

अभागे मनुष्य की दुर्गति

मित्रो! उसका हीरे एवं मोती जैसा दिमाग इसी में घूमता रहा, आगे-पीछे होता रहा, उस अभागे ने बर्वाद कर लिया अपने आपको। साथियो, घोड़ा, हाथी, भैंस आदि जानवर मनुष्य से ज्यादा खाते हैं और उनका पेट भर जाता है। परन्तु इस अभागे मनुष्य का पेट भाई से, बाप से, बीबी से भी नहीं भरता है। हाय रे! अभागा यह मनुष्य, पेट की खातिर बर्वाद हो गया। भगवान् ने हमसे कहा कि क्या कहूँ आचार्य जी, हम तो बहुत चिन्तित हैं। हमने उन्हें पानी पिलाया और कहा कि आप जाइये एवं चिन्तित मत होइये। आपके पास तो चौरासी लाख योनि वाले प्राणियों की अनेकों शिकायतें आ चुकी हैं। आप जाइये, अब हम इन्हें ठीक करेंगे। मनुष्य के पास बुद्धिबल है, उसे हम ठीक करेंगे। इस दुनिया में खुशी, आनन्द, उल्लास का वातावरण पैदा करेंगे। अभी तो वह पेट-प्रजनन में लगा है। मैं पूछता हूँ कि तेरे पास धर्म, संस्कृ ति कहाँ है? तू कभी इसके बारे में सोचता है क्या? अरे तूने इतने सारे बच्चे पैदा कर लिए? इसे नासमझी के अतिरिक्त और क्या कहा जाय?

भगवान् ने कहा कि मैंने इसे बहुत प्यार से पैदा किया, पाला, बड़ा किया कि शायद यह मेरे काम आयेगा। मेरा सहयोगी बनेगा तथा इस संसार को सुन्दर बनायेगा, परन्तु इसने तो हमारी सारी-की-सारी इच्छाओं पर पानी फेर दिया है। यह वहीं जा पहुँचा है, जहाँ अन्य चौरासी लाख योनियों के प्राणी रहते हैं। इसने भगवान की नाक में दम कर रखा है। हमने भगवान् से कहा-हे प्रभु! इसे इस बार माफ कर दीजिये। अगर किसी को आगे इनसान बनाना, तो उसे ठोंक-बजाकर देख लेना। हमने भगवान् से प्रार्थना की कि भगवान्! पहले उससे पूछ लेना कि क्या वह कोई सेठ बनने जा रहा है या बच्चा पैदा करने जा रहा है? पहले यह पूछ लेना फिर उसे इनसान का जन्म देना। अगर मनुष्य का जन्म चाहिए, तो दो रुपये के कागज पर हस्ताक्षर करा लेना और बता देना कि अमुक-अमुक लक्ष्य हैं। अगर उसे मंजूर हो तो जीवन देना, वरन नहीं देना। अगर चाहिए तो जाओ, अन्यथा तुम बन्दर, कुत्ते की योनि में जाओ। तुम्हारे लिए मनुष्य का जीवन जीना तथा पाना संभव नहीं है। हमने भगवान् से कहा और उन्होंने स्वीकार कर लिया। उन्होंने कहा कि हमें जिनका दिमाग, विचार, कार्य जानवरों जैसा दिखलाई पड़ेगा, उन्हें हम मनुष्य का जन्म नहीं देंगे।

जीवनक्रम बदलिए

मित्रो, यह सच्चाई नहीं है। आप भगवान् के बड़े बेटे हैं। आप उनके बेटे हैं, जो बड़ा उदार, दयालु, कृपा का सागर तथा सर्वसम्पन्न है। भगवान् अपने लिए क्या चाहता है? क्या खाता है? वह केवल दूसरों के लिए जिन्दा रहता है, आपको यह सोचना चाहिए तथा अपना जीवनक्रम बदलने का प्रयास करना चाहिए। आप तो केवल लक्ष्मी का मंत्र सीखना चाहते हैं। आप कहते हैं कि गुरुजी यह क्या कह रहे हैं? मित्रो, आप चौरासी लाख योनियों का शरीर देखिये। आप अच्छे कर्म नहीं करेंगे, तो आपको गधे की योनि स्वीकार करनी पड़ेगी। आप पर ईंट लादी जाएँगी। वजन के मारे पीछे का पैर जख्मी हो जाएगा। पैर लडख़ड़ाने लगेंगे। आप कहेंगे कि आचार्य जी हम तो मन्नूलाल सेठ हैं। हम इस योनि में कैसे जाएँगे? आपने अच्छा कर्म नहीं किया, तो आपको घुसना ही होगा। 

मित्रो! आपको अपनी मूर्खता पर विचार करना चाहिए। आप बेकार की समस्याओं-बेसिर-पैर की समस्याओं में उलझे हैं। आपका दिमाग इस उलझन में पड़ा रहता है। आपका जीवन बर्बाद हो रहा है और आप चुप बैठे रहते हैं। हम आपको धन्यवाद देने वाले थे, परन्तु अब नहीं देना चाहते। आपको अभी १२५ रुपये मिल रहे थे, पर आप ३५० रुपये की नौकरी चाहते हैं। यह बेकार की बातें हैं। आपको जब १२५ रुपये खर्च करना नहीं आता, तो ३५० रुपये कैसे खर्च करेंगे। बेकार की बातें बन्द कीजिए। अगर आप आचार्य जी का आशीर्वाद ले जाते तथा अपने जीवन को महान बना लेते, तो हम और आप दोनों धन्य हो जाते।

भगवान् को जवाब क्या देंगे?

मित्रो! हमने शानदार जिन्दगी जी है तथा प्रसन्नता के साथ विदा होने को बैठे हैं कि हम भगवान् को सही उत्तर देंगे। परन्तु आप भगवान् को क्या जवाब देंगे। आप तो अपनी जिन्दगी भर रोते रहे एवं मरने के बाद भी रोते रहेंगे। हमारा जीवन तालाब की तरह हो गया है। हमारा आधार कमजोर है। अगर अभी हमें लकवा हो जाये, तो हम कहीं के नहीं रह जाएँगे। हमारा तालाब सूख जाएगा, तो फिर क्या होगा? हमारी उन्नति का आधार समाप्त हो गया है। हमारे पास ज्ञान है, परन्तु हमारे मस्तिष्क का चिन्तन खराब है, तो वह किसी तरह उपयोगी नहीं है। हमारे पास सम्पत्ति है, परन्तु कुछ उलटा हो जाये, अकाल पड़ जाये, तो हमारी सारी सम्पत्ति स्वाहा हो सकती है। जिसके प्रति हमारा अहंकार है, लोभ है, मोह है, वह बेकार हो जाएगा। 
तालाब के ऊपर खेती का क्या भरोसा है। खेती कुंआ के पास के, बम्बे के ऊपर की ठीक होती है। जहाँ कुछ-न -कुछ अवश्य पैदा हो जाया करता है। वह हरा-भरा रहता है तथा पानी की चिन्ता उसे नहीं होती है। हमारा भी इस तरह का ही चिन्तन है कि हमें भी मजबूत सहारा पकडऩा चाहिए, जिससे कि हम भी हरे-भरे रह सकें। इस तरह का सहारा हमारे लिए भगवान् से बढ़कर और कोई नहीं है, जो हमें सदैव हरा-भरा रख सकता है। इसमें जिन्दगी की उन्नति का सारा-का-सारा मार्ग खुला हुआ है। यह एक अज्ञात शक्ति है, जिसके इशारे पर सारा संसार चल रहा है।

आप तो बेटे के नशे में हैं। हाय बेटा-हाय बेटा चिल्लाते रहते हैं। एक बार हमारे पास मध्यप्रदेश के एक सज्जन आये थे। उनके दूसरे नम्बर के बेटे की शादी तो हो गयी, पर नौकरी नहीं लगी थी। वह मक्कार था, श्रम करना नहीं चाहता था। उसने अपने बाप से कहा कि आपने पैदा किया है, तो खिलाइये, पैसा दीजिए, नहीं तो हम जान से मार देंगे। बेचारे डर के मारे भागकर हमारे पास आये एवं कहा कि हम दो-तीन माह तक नहीं जाएँगे। छुट्टी ले लेंगे एवं यहाँ छिपे रहेंगे। उन्होंने कहा कि गुरुजी अगर उसका कोई पत्र आ जाये, तो यह मत कहना कि हम यहाँ हैं। मित्रो,उनके मन में बेटे के प्रति जो ख्वाब था वह चूर-चूर हो गया था। आप भी बेटों के पीछे पागल रहते हैं। रात-दिन बेटा-बेटा करते रहते हैं। हमारा एक और दूसरा ख्वाब यह होता है कि हम यह बन जाएँगे, वह बन जाएँगे, परन्तु एक आँधी आती है और हमारे सब ख्वाब समाप्त हो जाते हैं। हमने इतना कमजोर आधार बना दिया है कि हमें दिन में हँसना पड़ेगा तथा रात में रोना पड़ेगा। इस प्रकार हम अपनी बहिरंग जिन्दगी इसी प्रकार रोते हुए खत्म कर देंगे।

भगवान् का सहारा लीजिए

लेकिन मित्रो! एक और सहारा है, अगर आप उसे पकड़ लेंगे, तो आपका जीवन कुछ बन सकता है। वह सहारा भगवान का है। आप कहेंगे कि हम तो रोज शंकरजी के मंदिर जाते हैं, पूजा-पाठ करते हैं, परन्तु शंकरजी हमारी कोई मदद नहीं करते हैं। सावन के महीने में हमने बेलपत्र चढ़ाया, पानी का मटका लगाया, परन्तु भगवान् शंकर ने कोई मदद नहीं की। मित्रो, शंकर भगवान् की कृपा प्राप्त करने के लिए आपको बड़ा कदम उठाना होगा।

मित्रो! बड़े कार्यों के लिए बड़ा कदम, जोखिम भरा कदम उठाना पड़ता है, तब लाभ प्राप्त होता है। शंकर जी ने वरदान दिया था-रावण को, भस्मासुर को तथा शंकरजी ने वरदान दिया था परशुराम को, परन्तु उनके व्यवहार एवं कर्म करने के ढंग के कारण रावण एवं भस्मासुर को मरना पड़ा। अगर आपकी विचारधारा ठीक होगी और आप भगवान् का अनुदान-वरदान प्राप्त करके इस संसार का कुछ अच्छा करना चाहते हैं, तो आपको भगवान् का हर प्रकार का सहयोग मिलेगा। बल एवं धन के आधार पर मनुष्य बलवान नहीं हो सकता है। हमको अपने विकास के लिए मजबूत आधार ढूँढऩा होगा। वह मजबूत आधार केवल भगवान है। भगवान् का सहारा लेने के बाद हमारे पास क्या कमी रहेगी? हमें उनका प्यार-अनुदान प्राप्त करके अपना आध्यात्मिक विकास करने का प्रयास करना चाहिए। भगवान् के पास अनन्त सुख के भंडार भरे पड़े हैं। उनके एक मित्र थे सुदामा, वे गरीबी का जीवन जी रहे थे। लोगों ने कहा कि आपकी भगवान् से मुलाकात है। आप इस प्रकार क्यों हैं? सुदामा जी भगवान् के पास गये, भगवान् ने अपने मित्र को निहाल कर दिया। 

संबंध हो जाए तो!

गुरुनानक को उनके पिता ने नाराज होकर बीस रुपये व्यापार करने को दिये और कहा-जा व्यापार द्वारा अपना जीवन निर्वाह कर। गुरुनानक देव संत थे, उन्होंने बीस रुपये की हींग खरीदी और वहाँ आये, जहाँ पर संतो का एक भण्डारा चल रहा था। उस समय दाल बन रही थी। उसमें हींग का छोंक लगा दिया तथा सभी के आगे दाल परोस दी। सभी उपस्थित लोगों ने प्रेम से भोजन किया तथा प्रसन्न हुए। प्रात:काल जब नानक घर पहुँचे, तो उनके पिता काफी नाराज थे। उन्होंने पूछा कि पैसों का क्या किया? नानक जी ने सारी बात बता दी तथा यह कहा कि पिताजी! हमने ऐसा व्यापार किया है, जो भविष्य में हजार गुना होकर वापस होगा। आज वास्तव में गुरुनानक साहेब की याद में स्वर्णमन्दिर अमृतसर में विद्यमान है, जो करोड़ों-अरबों का है। मित्रो, यह भगवान् के साथ व्यापार करने का लाभ है। हमने विचार किया—वह कैसा मंदिर है। करोड़ों का कौन-सा मन्दिर है, जिसमें गुरुनानक सोये हुए हैं। मित्रो, यह महत्त्व है भगवान् के साथ जुडऩे का, उससे सम्बन्ध करने का। 

मित्रो, काश्मीर में हजरत मोहम्मद साहब का पवित्र बाल एक शीशी में रखा है। जहाँ हजारों-करोड़ों रुपयों की मस्जिद बनी है, जहाँ मोहम्मद साहब का बाल रखा है। अगर आज गुरुनानक देव, मोहम्मद साहब आ जायें तथा इतना बड़ा मूल्यवान मकान देख लें, तो उनको आश्चर्य होगा। मित्रो, यह आध्यात्मिकता का मूल्य है। भगवान् से सम्बन्ध बनाने के बाद आदमी कितना मूल्यवान हो जाता है, यह विचार करने का विषय है। वह बहुत कीमती हो जाता है। नानक, विवेकानंद, मोहम्मद साहब महान हो गये। भगवान् से सम्बन्ध हो जाने पर आदमी का वजन और मूल्य दोनों बढ़ जाते हैं। 

अगर एक औरत की शादी एक सेठजी के साथ होती है तथा दुर्भाग्य से उसके पति का देहान्त हो जाता है, तो दूसरे दिन से ही वह सेठानी, उसकी सारी जमीन-जायदाद की मालकिन बन जाती है। यही होता है—भक्त का भगवान् से सम्बन्ध जोडऩे पर। डॉक्टर की पत्नी डॉक्टरनी, वकील की पत्नी वकीलनी, पंडित की पत्नी पंडितानी बन जाती है, चाहे वह पाँचवीं क्लास ही क्यों न पास हो। जिस प्रकार धर्मपत्नी बनकर आत्मा से सम्बन्ध जोडऩे पर वह पति की सारी सम्पत्ति की मालकिन बन जाती है, उसी प्रकार भगवान् से सम्बन्ध जोडऩे पर होता है। आपको यहाँ हमने इसलिए बुलाया है कि आपका ब्याह भगवान् से करा दें। इसके लिए आपको हमने अनुष्ठान प्रारम्भ कराया है। यह अनुष्ठान आपके विवाह के समय हल्दी लगाने तथा बाल सँवारने, वस्त्र आदि से सजाने के बराबर है। हम आत्मा का परमात्मा से मिलन कराना चाहते हैं। यह बाजीगरी है। हम आपका संबंध भगवान् से कराना चाहते हैं, ताकि आपका सम्बन्ध मालदार आदमी से हो जाये। मालदार आदमी के साथ सम्बन्ध बना लेने से आदमी को हर समय फायदा रहता है। 

मित्रो, किसी का सम्बन्ध मालदार आदमी से होता है और वह उसके यहाँ काम करता है, तो उसे सेठजी कुछ लाने को भेजते हैं, तथा सौ रुपये देते हैं। वह अस्सी रुपये का सामान लाता है तथा बीस रुपये अपने पॉकेट में रख लेता है। सेठजी उससे पूछते भी नहीं हैं। इस प्रकार छोटे-छोटे कामों में वह पैसा इकट्ठा करता जाता है और मालदार के साथ मालदार हो जाता है। उसकी बीबी कहती है कि हमारे घर में बाबू की तनख्वाह से क्या होगा, अगर रोज न कमायें। यह है मालदार आदमी से जुडऩे पर भौतिक लाभ। भगवान् से जुडऩे पर हमें क्या-क्या लाभ मिलते हैं, यह आप जुड़कर स्वयं देखें।

भगवान् की गोद में

मित्रो! मालदार आदमी के पास नौकरी करने पर पैसों के लिए चालाकी, बेईमानी करनी पड़ती है, तो आप पैसा कमाते हैं, परन्तु हम ऐसे मालदार आदमी, जिसका नाम भगवान् है, उसके यहाँ आपकी नौकरी लगाना चाहते हैं, जिसके पास आपको सारी चीजें प्राप्त होती रहेंगी। उसके लिए आपको चालाकी या बेईमानी करने की कोई आवश्यकता नहीं पड़ेगी। हम चाहते हैं कि आपको भगवान् की गोद में रख दें। गोद में रहने वाला व्यक्ति घाटे में नहीं रहता है। बाप कमाता रहता है। बेटा खाता रहता है। 

बेटे, हम भी आपको बाँटते रहते हैं, आशीर्वाद देते रहते हैं कि आपका कष्ट दूर हो जाये। आपकी मनोकामना पूर्ण हो जाये। आज आप कमजोर हैं, हो सकता है कि कल आप मजबूत हो जायें तथा भगवान् का काम कर सकें। आप यह सोचते हैं कि दो साल के बाद गुरुजी चले जाएँगे तथा हमें तपोभूमि या फिर हरिद्वार जाने से क्या मिलेगा? आप इधर-उधर बगलें झाँकने लगते हैं तथा साँई बाबा के पास चले जाते हैं। वहाँ जाने के बाद हनुमान जी के पास, करौली वाली माँ के पास जाते हैं, इधर-उधर भटकते रहते हैं। जिन्दगी भर आप खाली हाथ रहते हैं। मित्रो, इधर-उधर आप भटकते न रहें, आप भगवान् का पल्ला पकड़ लीजिए तथा अपने जीवन को पार कर लीजिए।

मित्रो, हमारी मुलाकात किसी एम.पी., एम.एल.ए. या मिनिस्टर से होती है या उससे जान-पहचान, साँठ-गाँठ होती है, तो हमारी समस्या तथा हमारी मुसीबतें दूर हो जाती हैं। अगर हमारा सम्बन्ध भगवान् से हो तो फिर क्या कहना? मध्यप्रदेश के पूर्व मंत्री हमारे पास आये और यह कहा कि गुरुजी हमें एक दिन के लिए ही मुख्यमंत्री बना दीजिए। वे दो ढाई घण्टे तक हमारे पास बैठे रहे। भगवान् की कृपा से तुक्का लग गया और वे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बन गये। मित्रो, यह क्या बात है? हमारी जान-पहचान किससे है? हमारी जान-पहचान भगवान् से है। 

जान पहचान का चमत्कार

आदमी की पहचान बड़े आदमी से होने पर काम बन जाता है। एक बार ऐसा ही हुआ कि एक पंडित जी थे। पंडित जी ने एक दुकानदार के पास पाँच सौ रुपये रख दिये। उन्होंने सोचा कि जब बच्ची की शादी होगी, तो पैसा ले लेंगे। थोड़े दिनों के बाद जब बच्ची सयानी हो गयी, तो पंडित जी उस दुकानदार के पास गये। उसने नकार दिया कि आपने कब हमें पैसा दिया था। उसने पंडित जी से कहा कि क्या हमने कुछ लिखकर दिया है। पंडित जी इस हरकत से परेशान हो गये और चिन्ता में डूब गये। थोड़े दिन के बाद उन्हें याद आया कि क्यों न राजा से इस बारे में शिकायत कर दें ताकि वे कुछ फैसला कर दें एवं मेरा पैसा कन्या के विवाह के लिए मिल जाये। वे राजा के पास पहुँचे तथा अपनी फरियाद सुनाई। राजा ने कहा-कल हमारी सवारी निकलेगी, तुम उस लालाजी की दुकान के पास खड़े रहना। राजा की सवारी निकली। सभी लोगों ने फूलमालाएँ पहनायीं, किसी ने आरती उतारी। पंडित जी लालाजी की दुकान के पास खड़े थे। राजा ने कहा-गुरुजी आप यहाँ कैसे, आप तो हमारे गुरु हैं? आइये इस बग्घी में बैठ जाइये। लालाजी यह सब देख रहे थे। उन्होंने आरती उतारी, सवारी आगे बढ़ गयी। थोड़ी दूर चलने के बाद राजा ने पंडित जी को उतार दिया और कहा कि पंडित जी हमने आपका काम कर दिया। अब आगे आपका भाग्य।

उधर लालाजी यह सब देखकर हैरान थे कि पंडित जी की तो राजा से अच्छी साँठ-गाँठ है। कहीं वे हमारा कबाड़ा न करा दें। लालाजी ने अपने मुनीम को पंडित जी को ढूँढ़कर लाने को कहा-पंडित जी एक पेड़ के नीचे बैठकर कुछ विचार कर रहे थे। मुनीम जी ने आदर के साथ उन्हें अपने साथ ले गये। लालाजी ने प्रणाम किया और बोले-पंडितजी हमने काफी श्रम किया तथा पुराने खाते को देखा, तो पाया कि हमारे खाते में आपका पाँच सौ रुपये जमा है। पंडित जी दस साल में मय ब्याज के बारह हजार रुपये हो गये। पंडित जी आपकी बेटी हमारी बेटी है। अत: एक हजार रुपये आप हमारी तरफ से ले जाइये तथा उसे लड़की की शादी में लगा देना। इस प्रकार लालाजी ने पंडित जी को तेरह हजार रुपये देकर प्रेम के साथ विदा किया।

मित्रो, यह हम क्या कह रहे थे? यह बतला रहे थे कि आप भी अगर इस दुनिया के राजा, जिसका नाम भगवान् है अगर अपना सम्बन्ध उससे जोड़ लें तो आपकी कोई समस्या, कठिनाई नहीं रहेगी। आपको कोई तंग भी नहीं करेगा। आपके साथ अन्याय भी कोई नहीं कर सकता। पाँच फुट वाला आदमी जब भगवान् से जुड़ गया, तो मित्रो, वही आदमी महात्मा बन गया। उस आदमी का नाम महात्मा गाँधी हो गया, जिसको देखकर अँग्रेज डरते थे और यह कहते थे कि यह जादूगर है। इससे बचकर रहो। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री उससे डरते थे और यह कहते थे कि यह 'बम' है। उनने अपने सभी मंत्रियों से गाँधीजी से नजर न मिलाने की हिदायत दे रखी थी। वह काला गाँधी नहीं, वरन् वह गाँधी था, जो भगवान् से जुड़ गया था और वह उसी का चमत्कार था। वह चालाकी या अक्ल वाला गाँधी नहीं था, बल्कि भगवान् का सहयोगी गाँधी था। इन शक्तियों को आप भी भगवान् के पास बैठकर पा सकते हैं। अपने को महान बना सकते हैं। अगर आप अपने आप को तैयार कर लें, तो सब कुछ प्राप्त कर सकते हैं तथा संत, महामानव स्तर तक पहुँच सकते हैं।

अनुकम्पा की अनुभूति

मित्रो, सूर्य की रोशनी इस धरती पर पड़ती तो है, परन्तु है यह हमारी आँखों का चमत्कार। अगर आँखें न रहतीं, तो हम यह विभिन्न तरह के रंग कैसे देखते तथा आनन्द अनुभव कैसे करते? आँख का सूर्य अगर ठीक हो, तो यह आपको रामायण, भागवत पढ़ा सकता है। बगीचों का आनन्द आपको मिल सकता है। अगर आपको बुखार आ जाये तथा तबियत खराब हो जाए, तो आप ठीक से नहीं खा सकते हैं। यह बात आपको सोचनी चाहिए। एक महिला थी। उसके मरने का समय हो गया। उसे पकौड़ी, नीबू का अचार, रबड़ी दी गयी, परन्तु उसका मुँह कड़ुवा था। उसे सब चीजें मिट्टी के समान लगीं। अगर आपकी अक्ल खराब हो जाए, तो इस दुनिया की सारी सम्पत्ति आपको किसी काम की नहीं दिखायी पड़ेगी। यह क्या है? जिसके कारण आप दुनिया के सारे आनन्द ले रहे हैं? चौरासी लाख योनियों में सर्वश्रेष्ठ राजकुमार की तरह रह रहे हैं। यह है भगवान् की अनुकम्पा, भगवान् की कृपा, जो निरन्तर आपके ऊपर बरस रही है। हमें यह महसूस करना चाहिए कि भगवान् हमारे सारे अंग-अंग में, सारे रोम-रोम में समाया हुआ है तथा उसकी शक्ति हमारे अन्दर समायी हुई है। वह हमें महान बना रहा है, जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढ़ा रहा है। हमारा कायाकल्प कर रहा है। अगर इतना आप कर सकें, तो मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि आप धन्य हो जाएँगे।

साथियो! हमारी काया के भीतर ऐसे सेल्स भरे पड़े हैं, जिसमें हीरे-मोती, सोना-जवाहरात भरे पड़े हैं। अगर आप उसे जगा लें, तो मालामाल हो सकते हैं। आप पारस, कल्पवृक्ष हो सकते हैं। आपका सम्पर्क जिस किसी से होगा, उसको आप धन्य करते चले जायेंगे। आपका विकास होता चला जाएगा। हमें अपनी हर उँगुली प्यारी है। भगवान् को भी हर प्राणी प्यारा है। वह सबका बराबर ध्यान रखता है।भगवान् अपने हर अंग को सुन्दर और सुडौल देखना चाहता है। भगवान् के ऊपर पक्षपात का दोष नहीं लगाया जा सकता है। वह सबको बराबर देता है, परन्तु मनुष्य अपने गुण, कर्म, स्वभाव, श्रम, आलस्य के कारण पिछड़ जाता है। अगर आपकी पात्रता हो, तो आप सारी चीजें प्राप्त कर सकते हैं। आप अपनी प्रगति के लिए न जाने कहाँ-कहाँ घूमते हैं, किस-किस को गुरु बनाते फिरते हैं। हम भी १३ ये १५ वर्ष की उम्र तक इसी चक्कर में पड़े रहे तथा तमाशा देखते रहे। हमने भी बहुत पैसा फेंका है, मात्र यह बाजीगरी देखने के लिए। 

नकली व असली गुरु

मित्रो! इन दो सालों में हमने हिन्दुस्तान के किसी भी सिद्ध पुरुष, महात्मा, योगी को नहीं छोड़ा, जो आज बाजीगर की तरह नाम बतलाते हैं तथा सोना बनाते हैं। अगर आप चाहें, तो हम उनका नाम आपको बतला सकते हैं। एक बार हमने एक सिद्ध पुरुष की बात सुनी तथा उसके लिए हमने बहुत बड़ा जोखिम उठाया, प्राणों की बाजी लगा दी। वो सिद्ध पुरुष घने जंगल की एक गुफा में रहते थे। लोगों ने बतलाया कि वे सबका नाम-पता तथा भूत-भविष्य, वर्तमान सबकुछ बता देते हैं। हम पहुँच गये उनके पास। बाबा ने सब बतलाया। हमें दाल में कुछ काला नजर आया। हम वहीं रुक गये तथा पैर में मोच का बहाना बना दिया। यह बात उनके चेले को बता दी और एक कोने में पड़े रहे। एक दिन एक अध्यापक आया। हमने उसे बतला दिया कि यह बेकार आदमी है। इसके चेले धंधा करते हैं। हमने अध्यापक से कहा कि आप सब नाम-पते आदि गलत-सलत बताना। उसने चेलों से अपना नाम-पता सब गलत बतला दिया। दूसरे दिन महात्माजी मिले, तो उन्होंने भी वैसा ही बतलाया। अध्यापक तथा हम दोनों यह सब देखकर मुस्कुरा पड़े। यह उन चेलों ने देख लिया था। हमने किसी प्रकार धोती-कुरता समेटा और तोलिया लपेटकर दीर्घशंका का बहाना बनाकर वहाँ से भाग लिये। जाना था पूरब की ओर और पश्चिम की ओर निकल गये। किसी तरह प्राण बचाकर तीन दिन तक जंगल में भटकने के बाद अपने स्थान पर पहुँचे। 

साथियो! हमने उस गुरु को भी देखा है, जो पंद्रह वर्ष की उम्र पूरी होने पर वसंत पंचमी के दिन हमारे पास आया था। उसने हमारे तीन जन्मों का दृश्य हमें दिखाया और हमें गायत्री उपासना में लगाया, जिसे हमने चौबीस साल तक विधि-विधान पूर्वक किया। हमने अपने गुरुदेव से एक प्रश्र पूछा कि पूज्यवर हमारी एक शंका है। आप बतलायें कि गुरुओं की खोज में लोग छुट्टी लेते हैं, मेडीकल लीव लेते हैं, घर-बार छोड़ते हैं, तब जाकर शायद किसी कोने में कोई सच्चा गुरु मिलता है, परन्तु आप तो स्वयं हमारे पास चले आये, यह क्या बात है? पूज्यवर ने बतलाया-बेटे! धरती क्या बादलों के पास जाती है या बादल स्वयं आते हैं धरती पर? हमने कहा बादल स्वयं आते हैं एवं धरती पर बरस जाते हैं। बादलों को चलना पड़ता है। बादल स्वयं बरसते रहते हैं। उन्होंने कहा कि आकाश में बादलों की तरह सिद्ध पुरुषों की भी कमी नहीं है, जो बादलों की तरह बरसने के लिए सुपात्र की खोज करते रहते हैं। दिव्य आत्माओं की वे तलाश करते रहते हैं। 

मित्रो! आपने देखा होगा कि जब इस धरती पर मरी हुई लाश, कुत्ते आदि पड़े रहते हैं, तो गीध, कौवे, चील स्वयं आ जाते हैं तथा उसे नोच-नोच कर खा जाते हैं। उसी प्रकार भगवान्, दिव्य पुरुष, संत भी ऊपर से तलाश करते हैं कि इस धरती पर कौन दिव्य पुरुष है, जिसे भगवान् गुरु, संत की कृपा, वरदान, आशीर्वाद की आवश्यकता है और वह वहाँ पर पहुँचकर सारा काम करते हैं। वे देखते हैं कि कौन दया के पात्र हैं। हम बद्रीनाथ, रामेश्वर जाते हैं, किन्तु वे भी हमारे पास आते हैं एवं हमारी परख करके चले जाते हैं। केवट की भक्ति, श्रद्धा महान थी। उसे देखकर भगवान् राम स्वयं उसके पास आये और दर्शन दिया। केवट रामचंद्र जी के पास नहीं गया था। शबरी के पास रामचंद्र स्वयं आये थे। शबरी नहीं गई थी। श्रीकृष्ण गोपियों के पास गये थे तथा उन्हें प्यार दिया था, गोपियाँ नहीं गईं थी। मित्रो! उसी प्रकार पात्रता देखकर गुरु शिष्य के पास आता है तथा उसे धन्य कर जाता है। अगर वास्तव में पात्रता हो, तो ऋद्धि-सिद्धियाँ पाई जा सकती हैं तथा निहाल हुआ जा सकता है। 

पात्रता ही है महान् तत्त्व

भगवान् के यहाँ अनंत वैभव, कृपा, अनुदान भरा पड़ा है। वह केवल ऐसे आदमी को मिलता है, जिनकी पात्रता है। एक बार हम पोरबंदर-गुजरात गये थे और वहाँ गाँधीजी का जन्म स्थान देखा था। वह बहुत छोटा था। तब वहाँ छोटा सा मकान था। परन्तु भगवान् तो मालदार हैं। उसने गाँधीजी को धन्य कर दिया। आज वहाँ करोड़ों का स्मारक बना हुआ है। भगवान् आते हैं, तो मनुष्य के सोचने का, विचार करने का, कार्य करने का ढंग बदल जाता है। उसकी अवाज बदल जाती है। उसे सारे लोगों के प्रति श्रद्धा-निष्ठा हो जाती है। वह दूसरों को प्यार देता है, दूसरों के दुखों को देखकर द्रवित होता है। गाँधी जी के अंदर भगवान् आये और जो भी आवाज उनने दी, उसे पूरा होते देखा गया। भगवान् की खुशामद करने से कोई काम नहीं चलेगा। पात्रता ही महान तत्व है। जिसमें पात्रता होती है, सरकार उसे फिर बुला लेती है। उसको काम देती है। प्रेम महाविद्यालय के प्रिंसीपल ९० वर्ष के होने को आये, परन्तु गवर्नमेन्ट ने उन्हें नहीं छोड़ा। हर साल उन्हें नया पद मिल जाता।

मित्रो! प्रतिभाओं की माँग, योग्यता की माँग, गुणों की माँग हर जगह होती है। हमारा भी यही उद्देश्य है कि आप आगे बढ़े। हम चाहते हैं कि आपके अंदर भी वे चीजें आ जाएँ, भगवान् आ जाएँ तथा आपका विकास हो जाये। इसीलिए हमने आपका ब्याह भगवान् से कराने का निश्चय किया है। परन्तु मित्रो, अगर कन्या अस्वस्थ हो, बीमार हो, कमजोर हो, तो उसका विवाह अच्छे लड़के के साथ कैसे हो सकता है। उसी तरह आपकी पात्रता कमजोर हो, तो भगवान कैसे आपको अपनायेगा? कैसे स्नेह, प्यार देगा? अगर राजकुमार से विवाह करना हो, तो लड़की भी ठीक होनी चाहिए। अगर आप कोढ़ी है, तो अच्छी लड़की आपको नहीं मिलेगी। आप अपाहिज हैं, तो भगवान् के साथ विवाह नहीं कर सकते हैं। स्वस्थ, निरोग शरीर, स्वच्छ-पवित्र मन की आवश्यकता है—भगवान् से विवाह करने के लिए। 

भगवान् से विवाह

स्वच्छ मन, स्वस्थ-निरोग शरीर बनाने के लिए आपको यहाँ बुलाया गया है, ताकि आप भगवान से जुड़ सकें। आपको हम गायत्री महापुरश्चरण करा रहे हैं। हमें प्रसन्नता है कि आप बहुत प्रात:काल ही उठकर पूजा, ध्यान, जप, प्राणायाम में लग जाते हैं। यह सब देखकर हमें खुशी होती है। अगर आप इन करने वाले कर्मकाण्डों से कुछ प्रेरणा ले सकें तथा अपनी पात्रता का विकास कर सकें, अपने को जीवंत बना सकें, तो आप यकीन रखें कि आपका विवाह भगवान से हो जायेगा। तथा आपके पास सारी ऋद्धि-सिद्धियाँ, वैभव स्वत: आ जायेंगे, जिसके लिए आप रातोंदिन परेशान रहते हैं।

मित्रों! एक लड़की थी। उसका रिश्ता तय हो गया। उसकी गोद में एक नारियल भी लड़के वालों ने दे दिया था। बाद में लड़के वालों ने मना कर दिया। लड़की ने कमर कसी और लाठी लेकर उस गाँव में पहुँच गई। उसने कहा कि अरे विवाह कर, नहीं तो लाठी के सामने आ जा। मामला पंचायत तक पहुँचा। लड़की ने कहा कि इसने ही शादी पक्की की, नारियल भी दिया और अब ना कर रहा है। पंचायत ने फैसला किया कि विवाह इसी लड़की के साथ होगा। 

मित्रो! हमने भी आपका विवाह भगवान् से कराने का निश्चय किया है। आप भी उस लड़की की तरह दृढ़ निश्चय करके अपनी पात्रता को विकसित करके भगवान को प्राप्त करें। आपकी परेशानी दूर हो जायेगी। हम भगवान के पास होकर आये हैं। उनके पास ढेरों हीरे की अंगूठी-जवाहरात, बाल-बच्चे हैं, जिसे चाहे उठाकर ले आओ। मित्रो! यह विवाह किसी प्रकार घाटे का सौदा नहीं है। आप इसे निभाना। इसमें हमें प्रसन्नता होगी। 

आज की बात समाप्त। 
ऊँ शान्ति:!
यह संकलन हमें श्री बृजेश वर्मा, शान्तिकुन्ज हरिद्वार से प्राप्त हुआ हैं। धन्यवाद। यदि आपके पास भी जनमानस का परिष्कार करने के लिए संकलन हो तो आप भी  हमें मेल द्वारा प्रेषित करें। उसे अपने इस ब्लाग में प्रकाशित किया जायेगा। आपका यह प्रयास ‘‘युग निर्माण योजना’’ के लिए महत्त्वपूर्ण कदम होगा।
vedmatram@gmail.com



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