सोमवार, 13 जून 2011

अखण्ड ज्योति जुलाई 1984

1. सूक्ष्म की महान् सामर्थ्य

2. सूक्ष्मीकरण से सम्भावित परिणतियाँ

3. प्राण ऊर्जा का वाष्पीकरण-सूक्ष्मीकरण

4. तृतीय विश्वयुद्ध और उसके निरस्त होने की सम्भावनायें

5. परिवर्तन एक समय साध्य प्रक्रिया

6. इस नक्शे में आमूल चूल परिवर्तन होगा

7. राजतन्त्र और अर्थतन्त्र में परिवर्तन

8. मनीषा को झकझोरने की चेष्टा

9. मनीषी और ऋषि के रूप में हमारी परोक्ष भूमिका

10. मात्र सुधार ही नहीं निर्माण भी अपरिहार्य

11. समर्थ अग्रदूतों को हमारी वर्चस का बल मिलेगा

12. कैसा होगा प्रज्ञा युग का समाज ?

13. भूत एक भ्रम भी-एक वास्तविकता भी

14. परोक्ष जगत की विधि व्यवस्था एवं तथ्य भरे आधार

15. साधना एवं यज्ञ का सूक्ष्मीकरण

16. आत्मबल स्थायी भी फलदायी भी

17. तीन महत्वपूर्ण मोर्चे, जिन पर हमें कार्य करना हैं

18. परिजनों के लिए विशेष साधना उपक्रम

19. सतयुय के स्वप्न को हमी साकार करें

20. सुसंस्कारित सम्वर्धन हेतु स्वावलम्बन प्रधान शिक्षण

21. नवयुग का उद्यान लहराने वाली शिक्षा पद्धति

अखण्ड ज्योति जून 1984

1. तप में प्रमाद न करें

2. शरीर रहते निष्क्रियता अपनाने का क्या प्रयोजन ?

3. गलत कदम नहीं उठा, इसके पीछे तथ्य और औचित्य है

4. तपश्चर्या से आत्म-शक्ति का उद्भव

5. प्रत्यक्ष घाटे की पीछे परोक्ष लाभ ही लाभ हैं

6. हमारी भविष्यवाणी-सतयुग की वापसी

7. इस जीवनचर्या की गम्भीरता पूर्वक पर्यवेक्षण की आवश्यकता

8. समर्थ गुरू का प्राप्त-अजस्र सौभाग्य

9. उपासना की दिशा में बढ़ते चरण

10. जीवन साधना जो असफल नहीं हुई

11. आराधना जिसे निरन्तर अपनाये रहा गया

12. सिद्धियाँ जिनका प्रत्यक्ष अनुभव होता रहा

13. सच्ची साधना-सही दिशाधारा

14. ब्राह्मण मन और ऋषि कर्म

15. हमने आनन्द भरा जीवन जिया

16. अध्यात्म की यथार्थता और परिणति

17. स्थूल का सूक्ष्म में परिवर्तन

18. मूर्धन्यों को झकझोरने वाला हमारा भागीरथी पुरूषार्थ

19. जाग्रत आत्माओं से भाव भरा आग्रह

20. आत्मीय जनो के नाम वसीयत ओर विरासत

21. प्राणवान परिजन इतना तो करे ही

22. मुक्ति की मृगतृष्णा-गीत

अखण्ड ज्योति मई 1984

1. विस्मृति की मूर्च्छना

2. तन्मे मनः शिव संकल्प मस्तु

3. हे मानव ! पहले तू अपनी आत्मा को पहिचान

4. आयु का लेखा-जोखा

5. नर-पशु नहीं नर-नारायण बने

6. जीवन एक अनबूझ पहेली

7. सत्य के तीन पहलू

8. तर्क विवेक सम्मत हो तो ही श्रेयस्कर

9. मन का दर्पण स्वच्छ होना चाहिए

10. विराट् मन ही इस विश्व का नियामक

11. प्रत्यक्ष एवं परोक्ष के मध्य सघन सम्पर्क स्थापित हो

12. वातावरण में छाये संस्कारों की महत्ता

13. योग विज्ञान और तन्त्र शास्त्र एक ही वृक्ष की दो शाखायें

14. सशक्त ध्रुव केन्द्रों की अधिष्ठात्री-कुण्डलिनी

15. सत्य को न समझ पाने की आत्मघाती विडम्बना

16. मानवी सभ्यता का नवोन्मेष सुनिश्चित

17. बड़प्पन का मानदण्ड-संगतिकरण

18. हर व्यक्ति प्रतिभावान बन सकता हैं

19. दृढ़ संकल्प की सुनिश्चित परिणति

20. शस्त्रों से भी अधिक सामर्थ्यवान मन की शक्ति

21. आवेशग्रस्त न रहें, सौम्य जीवन जियें

22. समस्याओं का समाधान दृष्टिकोण के परिष्कार पर निर्भर

23. सफलता ऐसों के कदम चूमती हैं

24. रस्सी साँप या साँप रस्सी

25. ‘‘कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतां यत्’’

26. मानवता को नया जीवन देने वाली दिव्य वनौषधियाँ

27. आत्मिकी की एक सर्वागपूर्ण शाखा ज्योतिर्विज्ञान

28. यज्ञ प्रक्रिया में गंध की उपादेयता एवं प्रभाव क्षमता

29. परिस्थिति परिवर्तन की संधि वेला

30. अपनो से अपनी बात

अखण्ड ज्योति अप्रेल 1984

1. ‘प्रज्ञा’ मानव को प्राप्त दैवी अनुदान

2. आत्मज्ञान की उपलब्धि-अमरत्व की सिद्धि

3. ईश्वर विकास का चरम बिन्दु हैं

4. परब्रह्म की सत्ता कारण और प्रमाण

5. दैवी अनुदानो का सच्चा अधिकारी कौन

6. परिवर्तन सृष्टि की एक शाश्वत विधि व्यवस्था

7. ऊर्जा का संचय एवं सुनियोजन

8. मनोनिग्रह सबसे बड़ा पुरूषार्थ

9. चिन्तन व्यवस्थित हो विधेयात्मक हो

10. सदाशयता की महत्वाकांक्षा हर दृष्टि से हितकर

11. विचार सम्प्रेषण की अद्भुत शक्ति सामर्थ्य

12. आत्म बोध से ही जीवन सम्पदा की सार्थकता

13. विलक्षण सामर्थ्य का समुच्चय यह मानव शरीर

14. सिद्धान्त व्यवहार में उतरे तो ही सार्थक

15. ओजस्विता, तेजस्विता और मनस्विता का आन्तरिक भण्डागार

16. मनुष्तेत्तर प्राणियों में पाई जाने वाली अतीन्द्रिय क्षमताएँ

17. मानवी पुरूषार्थ और कर्मफल के सिद्धान्त

18. परोक्ष से सम्पर्क स्थापित कर बहुत कुछ हस्तगत किया जा सकता हैं

19. मृत्यु जीवन का अन्त नहीं

20. जीवेम् शरदः शतम्

21. सृजन शक्ति का प्रेरणा स्त्रोत-काम

22. उद्विग्नता मनुष्य की प्राणघातक शत्रु

23. स्मरण शक्ति की न्यूनता से चिन्तित न हो

24. आत्मविश्वास जगाएँ-सफलता पायें

25. आसार बताते हैं कि हिमयुग आने वाला है

26. नजरे जो बदली तो नजारे बदल गये

27. शब्द ब्रह्म का साक्षात्कार एवं उसकी चमत्कृतियाँ

28. सूक्ष्मीकरण पर आधारित यज्ञोपचार पद्धति

29. अपनो से अपनी बात

अखण्ड ज्योति मार्च 1984

1. नीति सत्ता-एक अनुशासन, एक अनुबन्ध

2. विधि का विधान-कर्मफल का प्रतिफल

3. ज्ञान का आदि स्त्रोत-जिज्ञासा

4. दृश्य से परे विचारों की विलक्षण दुनिया

5. पूर्व जन्म की स्मृति अवांछनीय

6. मानव से जुड़ी परोक्ष जगत की हलचलें

7. सिद्धि का दर्शन और मर्म

8. पारस्परिक सहकार से गतिशील जीवन चक्र

9. आत्मबोध की चमत्कारी परिणतियाँ

10. आत्मा शरीर से भिन्न हैं और स्वतन्त्र भी

11. स्वप्नों से होती हैं आगत की जानकारी

12. चेतना जगत की सुलझती गुत्थियाँ

13. अतीन्द्रिय क्षमतायें-अभ्यास की देन

14. अन्य प्राणी सर्वथा पिछड़े हुए ही नहीं हैं

15. वरिष्ठता, विस्तार में नहीं स्तर में हैं

16. उसने हिम्मत और उम्मीद नहीं छोड़ी

17. वरिष्ठ आत्माओं के इस धरती को विशिष्ट अनुदान

18. प्रोढावस्था-प्रगति एवं परिपक्वता की अवधि

19. स्वार्थ सिद्धि एवं औचित्य की मर्यादा

20. उपयोगी ज्ञान वृद्धि-विवेक बुद्धि के सहारे

21. जिन्दगी चालीसवें साल से शुरू होती हैं

22. प्रगति और कर्मठता एक ही तथ्य के दो पक्ष

23. मुस्कान एक औषधि एवं समग्र उपचार

24. गर्मी और रोशनी से दूर न भागें

25. विधेयात्मक चिन्तन की फलदायी परिणतियाँ

26. हम अनिष्ट काल में से गुजर रहे हैं

27. पृथ्वी के इर्द-गिर्द चल रही अवांछनीय हलचलें

28. प्रकृति की छेड़छाड़-अवांछनीय-अहितकर

29. यज्ञ में मन्त्र शक्ति के प्रखर प्रयोक्ता

30. अन्धकूप के पाँच प्रेत

31. अपनो से अपनी बात

अखण्ड ज्योति फरवरी 1984

1. बन्धन मुक्ति का राजमार्ग

2. भगवान का सुबोध और सार्थक नाम सच्चिदानन्द

3. चित्तवृत्ति निरोध का तत्वदर्शन

4. नियन्ता की विधि व्यवस्था का प्रमाण कर्मफल सिद्धान्त

5. सत्य के प्रकाश को हृदयंगम करे

6. हठयोग लाभदायक भी हानिकारक भी

7. आखिर मृत्यु से भय क्यों ?

8. प्रेतबाधा एक चिकित्सा योग्य मनोरोग

9. भरी गृहस्थी उजड़ी

10. हम सभी जन्म-मरण चक्र में घूमते हैं

11. मनुष्य देवता और दैत्य

12. सूर्य की क्षमता और आराधना

13. भूखण्ड भी खिसक और बिखर रहे हैं

14. जीवन बहुमूल्य हैं इसे व्यर्थ न गँवायें

15. मृत शरीरों में भी प्राण ऊर्जा की झलक-झाँकी

16. जीव-जगत पर वातावरण की प्रत्यक्ष एवं परोक्ष प्रतिक्रियाएँ

17. विज्ञान को पथ भ्रष्ट होने से रोका जाय

18. दृश्य की तरह एक अदृश्य जगत भी हैं

19. अन्तर्ग्रही परिस्थितियों का मानवी स्वास्थ्य पर प्रभाव

20. दूरवर्ती वातावरण को प्रभावित करने की प्रक्रिया

21. निद्रा आवश्यक तो हैं पर अनिवार्य नहीं

22. बुढ़ापे की रोकथाम सम्भव भी और सरल भी

23. विवाह और प्रजनन की नई समीक्षा

24. प्रार्थना की प्रचण्ड शक्ति सामर्थ्य

25. प्राणशक्ति के उर्ध्वगमन की चमत्कारी परिणतियाँ

26. वेदों में यज्ञ चिकित्सा का प्रतिपादन

27. तारक मन्त्र गायत्री

28. संगीत विनोद ही नहीं उपासना भी

29. अपनो से अपनी बात

30. भूत और वर्तमान का भविष्य में विलयन-नवयुग का आगमन

अखण्ड ज्योति जनवरी 1984

1. परिशोधन प्रगति का प्रथम चरण

2. देवदूतों की रीति-नीति

3. तर्क नहीं श्रद्धा प्रधान

4. स्वार्थ सिद्धि बनाम परमार्थ परायणता

5. उत्थान की आकांक्षा और दिशा धारा

6. योगानुभूतियों का एक ही राजमार्ग-आत्मनियन्त्रण

7. योग साधना के दो रथ चक्र

8. विज्ञान की छलांग मात्र शरीर तक ही क्यों ?

9. अदृश्य होते हुए भी सर्व समर्थ हमारा मनःसंस्थान

10. सार्थक एवं फलदायी शोध

11. मन के झरोखे से भविष्य की झाँकी

12. शब्द शक्ति की ऊर्जा से परिचालित काया की सशक्त प्रयोगशाला

13. प्रतिभा का आयु से क्या सम्बन्ध

14. मानवी काया में सन्निहित ऊर्जा भण्डार

15. चरित्र निष्ठा ही सम्मान पाती हैं

16. रहस्यमयी उपत्यिकाओं का पर्यवेक्षण

17. उदार दैवी अनुदानो के कुछ प्रसंग

18. अन्तरिक्ष पर आधिपत्य के मानवी प्रयत्नों की रोकथाम

19. रंगो का रंग-बिरंगा तिलस्मी संसार

20. अध्यात्म चिकित्सा बनाम मानसोपचार

21. आत्म शिक्षण के लिए पूजा उपचार की प्रक्रिया

22. उपयुक्त स्थान के लिए महत्वपूर्ण कार्यो की आवश्यकता

23. प्रस्तुत प्रचलन बदल कर ही रहेगा

24. वर्चस् की प्राप्ति एवं आत्मिक प्रगति का एकमात्र अवलम्बन

25. बसन्त पर विडियो फिल्म स्टूडियो का उद्घाटन

26. अपनो से अपनी बात

अखण्ड ज्योति दिसम्बर 1983

1. समष्टि की साधना का तत्व दर्शन

2. मैं नित्य जिन्दा प्रेतों को दफनाता हूँ

3. ‘‘तमेव विद्वान न विभाय मृत्योः’’

4. पूर्वाग्रह छोड़े, आत्मिकी का अवलम्बन लें

5. ‘‘इन्द्रोः मायाभिः पुरूरूप ईयते’’

6. बिना सद्ज्ञान के अधुरा हैं भौतिक ज्ञान

7. कर्मयोग के उपासक-आराधक

8. पत्तो को नहीं, जड़ो को सींचा जाय

9. विकलांगता प्रगति में बाधक न बन सकी

10. साहस ही सफलता के लक्ष्य तक पहुँचाता हैं

11. मानवी अन्तराल में सन्निहित दिव्य विभूतियाँ

12. अतीन्द्रिय क्षमताओं का सुविस्तृत भण्डार

13. प्राण ऊर्जा का ज्वाला रूप में प्रकटीकरण

14. चेतना क्षेत्र के रहस्यमय भण्डार को भी कुरेदा जाय

15. जिन्दगी और मौत की आँख मिचैनी

16. सौभाग्यों और दुर्भाग्यों की अविज्ञात श्रंखला

17. मानवी विलक्षणताओं के आधार की अभिनव खोज

18. सामान्य शरीर में असामान्य विलक्षणताएँ

19. डाक्टर कावूर और उनकी चुनौति

20. देवलोक वासियों का सत्प्रयोजन के लिए धरती पर आगमन

21. अनतर्ग्रहीय आदान-प्रदान के केन्द्र-ध्रुव प्रदेश

22. ओछे लोगों की उद्धत सनक फिजूलखर्ची

23. अध्यात्म की ओर मुड़ता लोकमानस

24. गंध की प्रभाव क्षमता

25. वाक्शक्ति की अधिष्ठात्री-गायत्री

26. अपनो से अपनी बात-समझदारी को समय की जिम्मेदारी निभानी होगी

27. बढ़ती आवश्यकतायें और उठते कदम

अखण्ड ज्योति नवम्बर 1983

1. अध्यात्म क्षेत्र की सफलता का सुनिश्चित मार्ग

2. आत्म सत्ता की गौरव गरिमा

3. आशा और निराशा

4. अजस्र अनुदानो से भरी-पूरी परब्रह्म की सत्ता

5. आत्म बोध एक दिव्य वरदान

6. वरदान जो अभिशाप बने

7. आज के युग का समुद्र मन्थन

8. प्रेम भावना और नैतिकता अन्योन्याश्रित

9. मानवी क्षमता की रहस्यमयी पृष्ठभूमि

10. सूक्ष्म शरीर की दिव्य ऊर्जा और उसकी विशिष्ट क्षमता

11. सफलताएँ संकल्प भरे प्रयासों के चरण चूमती है

12. किसी अविज्ञात गतिचक्र से बंधा जीवन तन्त्र

13. अन्तर्ग्रही आदान प्रदान का एक मात्र आधार-अध्यात्म

14. बुद्धिमान पशु-पक्षी भी होते हैं

15. मनुष्य और धरातल का तेजोवलय

16. प्रवाह में बहकर मनुष्य प्रेत-पिशाच भी हो सकता हैं

17. हम एकता और एकात्मता की दिशा में बढ़ चलें

18. यज्ञ सान्निध्य से देवत्व और वर्चस की प्राप्ति

19. यज्ञ से संधि पीड़ा का निवारण

20. ब्रह्म विद्या और आत्म बल बढ़ा सकने वाली शक्ति महाप्रज्ञा

21. योगनिद्रा-विश्रान्ति के साथ पूरी नींद का लाभ

22. सफल साधना की पृष्ठभूमि और आधार

23. युग समस्याओं के समाधान में नियन्ता की परोक्ष भूमिका

24. युग परिवर्तन परिकल्पना नहीं-सुनिश्चित सम्भावना

अखण्ड ज्योति अक्टूबर 1983

1. परिवर्तन प्रगति की पहली सीढ़ी

2. कृतघ्नता किसी भी स्थिति में नहीं

3. सयम रहते चेतने का ठीक यही अवसर

4. विवेक ने खोले-अन्तर्चक्षु

5. अन्तः के देवासुर संग्राम का अभीष्ट समाधान

6. अपनी राह बनायें, अपने बूतें आगे बढ़े

7. आत्मिक प्रगति के चार सौपान

8. निर्भय बने, प्रसन्न रहे

9. मानवी पुरूषार्थ की एक संकल्प भरी यात्रा

10. पराक्रम भीतर से उफनता हैं

11. मानव मस्तिष्क का विलक्षण रसायन शास्त्र

12. सपनो के माध्यम से अनुदान बरसाने वाले अदृश्य सहायक

13. वंशानुक्रम की उत्कृष्टता-सुप्रजनन का मूल आधार

14. पृथ्वी के पिंजड़े से निकल भागने की महत्वाकांक्षी योजना

15. हम जल्दी ही विशाल बिरादरी के सदस्य बनेंगे

16. ऋतम्भरा प्रज्ञा की अराधना-अभ्यर्थना

17. गायत्री मन्त्र के सफलता के आधार

18. एक महान् सामर्थ्यवादी प्रक्रिया-प्राणायाम

19. यज्ञ प्रयोजनों में पवित्र अग्नि का उपयोग

20. अपनो से अपनी बात-युग साहित्य की संजीवनी घर-घर पहुँचाने हेतु दो नये कदम

अखण्ड ज्योति सितम्बर 1983

1. कठिनाइयाँ आवश्यक भी हैं, लाभदायक भी

2. हृदय में बसते हैं भगवान

3. आत्म विस्मृति की विडम्बना

4. निन्दा से विचलित न हो, उसे महत्व न दें

5. अपनी सामर्थ्य पहचानें-सुदृढ बनें

6. मरणं पातेन जीवनं बिन्दु धारणात्

7. मानसिक दक्षता सहज ही बढ़ सकती हैं

8. मनुष्य को अभी बहुत कुछ जानना शेष हैं

9. हमारा सम्पर्क क्षेत्र अगले दिनो अधिक विस्तृत होगा

10. सौर मण्डल हमारा बड़ा परिवार

11. महाकाल की व्यूह रचना और जागृतों का युग धर्म

12. आदिम युग की ओर लौटता विश्व-समुदाय

13. महामरण की एक व्यापक तैयारी

14. अब पर्जन्य नहीं, अम्ल बरसेगा

15. बढ़ते रोग मानवता के लिए नया संकट

16. विनाश लीला टाली जा सकती हैं

17. महाकाल का युगान्तरीय चेतन प्रवाह

18. व्याह्नतियों में विराट् का दर्शन

19. यज्ञ ऊर्जा एवं मन्त्र विद्या का अन्योन्याश्रय सम्बन्ध

20. मेध यज्ञों का दर्शन एवं स्वरूप

21. तुलसी आरोपण-इस वर्ष का विशिष्ट प्रयास

22. आद्यशक्ति की सार्वभौम उपासना-एक मनीषी का अभिमत

23. अपनो से अपनी बात

अखण्ड ज्योति अगस्त 1983

1. देवासुर संग्राम के इतिहास से शिक्षा ग्रहण करें

2. प्रत्यक्ष ही नहीं, परोक्ष भी समझे

3. प्रस्तुत विपत्तियों का उद्भव अदृश्य जगत से

4. आसन्न विभीषिकाओं से डरे नहीं, समाधान सोचें

5. संक्रान्तिकाल एवं मूर्धन्य मनीषियों का अभिमत

6. अन्तर्ग्रही विक्षोभ एवं महाविनाश की सम्भावनाएँ

7. दुर्गतिजन्य दुर्गति-मौसम के असन्तुलन के रूप में

8. सावधान ! हिम युग आ रहा हैं

9. शब्द शक्ति और वातावरण संशोधन

10. प्रज्ञा पुरश्चरण की परोक्ष पृष्ठभूमि

11. अदृश्य के परिशोधन में धर्मानुष्ठानों की भूमिका

12. देखने में छोटा किन्तु परिणाम की दृष्टि से महान् प्रयोग

13. प्रज्ञापुरूष चक्रवृद्धि गति से वंश वृद्धि करें

14. जप और यज्ञ का अविच्छिन्न युग्म

15. प्रज्ञा यज्ञ के साथ प्रज्ञा प्रवचन भी

16. प्रज्ञा पुरश्चरण, प्रज्ञा अभियान एवं प्रज्ञा संस्थान

17. युग सृजन की भागीदारी में किसी को घाटा नहीं

18. अपनो से अपनी बात

अखण्ड ज्योति जुलाई 1983

1. समर्थ होते हुए भी असमर्थ क्यों ?

2. अपरिग्रह का वास्तविक अर्थ

3. आत्मसत्ता-आत्मिकी की सर्वांगपूर्ण प्रयोगशाला

4. कमल के समान निर्लिप्त स्थिति

5. शक्तियों को बिखेरें नहीं, एकत्रित करें

6. ‘‘बस तेरी रजा रहे, तू ही तू रहे’’

7. ‘‘पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते’’

8. नीतिशास्त्रियों की दृष्टि में विकसित व्यक्तित्व

9. मानसिक परिष्कार और सुखी समुन्नत जीवन

10. जब मन्यु जाग उठा

11. मनुष्य और भूलोक का देवताओं का अनुदान

12. परिवर्तन चक्र में घूमता हुआ अपना ब्रह्माण्ड

13. यहाँ ध्रुव कुछ नहीं सभी कुछ परिवर्तनशील हैं

14. पुनर्जन्म की कुछ और साक्षियाँ

15. पदार्थो से जुड़े हुए अभिशाप

16. सर्वोपरि यज्ञ-पीड़ा निवारण

17. मरण से भयभीत न हो

18. गंध शक्ति का जीवन में महत्वपूर्ण स्थान

19. विशिष्ट प्रयोजनों के लिए विशेष यज्ञ

20. समग्र चिकित्सा अध्यात्म के समन्वय से ही सम्भव होगी

21. गायत्री उपासना सम्बन्धी शंकायें और उनका समाधान

22. अपनो से अपनी बात

अखण्ड ज्योति जून 1983

1. व्यवहार में औचित्य का समावेश

2. आज का दिन सर्वश्रेष्ठ शुभ मुहूर्त

3. अध्यात्म का सही स्वरूप एवं उसका उपयोग

4. ‘‘महायज्ञैश्च यज्ञैश्च ब्राह्मी य क्रियते तनुः’’

5. ‘‘साधना से सिद्धि’’ का अकाट्य एवं शाश्वत सिद्धान्त

6. भावनाओं का अमृत यों ही न बहायें

7. जिन्दगी जीना एक महती कलाकरिता

8. देवत्व का अभिवर्धन-प्रवृत्तियों के शोधन से

9. स्वर्ग और नरक कर्मफल की ही परिणति

10. मनःशक्ति की गरिमा एवं महिमा

11. मनीषा आत्मिकी के क्षेत्र में प्रवेश करे

12. भविष्य निर्माण के लिए सुप्रजनन भी आवश्यक

13. ब्रह्मचर्य पालें-ओजस, मनस और तेजस् बढ़ायें

14. घनिष्ठता-एकात्मता

15. बलिष्ठता और समर्थता की साकार विभूतियाँ

16. स्वास्थ्य रक्षा में सूर्य किरणों का उपयोग

17. जीव को परब्रह्म से मिलाने वाला प्रभावी उपक्रम प्रार्थना

18. अनास्था ही रूग्णता का मुख्य कारण

19. गायत्री उपासना सम्बन्धी शंकायें एवं उनका समाधान

20. अपनो से अपनी बात

21. स्वाध्याय मंडल-प्रज्ञा संस्थान का संस्थापन संचालन

अखण्ड ज्योति मई 1983

1. हम अपनी ही प्रतिध्वनि सुनते, और प्रतिछाया देखते हैं

2. जीवन भार नहीं, दैवी अनुदान हैं

3. चित्त वृतियों का निरोध ही योगाभ्यास हैं

4. क्रिया की नहीं, भावना की महत्ता

5. तथ्यान्वेषियों की दृष्टि में मानव का स्वरूप

6. समर्पण योग की सच्ची साधना

7. समर्थ और सम्मुनत नई पीढ़ी का निमार्ण

8. अपने पैरों पर चलें, अपना लक्ष्य ढूँढे

9. हेय और ग्राह्य ‘काम’

10. नर और नारी की अविच्छिन एकता

11. चमत्कार बनाम अविज्ञान का रहस्योद्घाटन

12. दैव सम्पदायें-समर्पण की ही परिणतियाँ

13. अतीन्द्रिय क्षमताओं की बीजांकुर जो कभी भी कहीं भी उग सकते है

14. स्वप्न उच्चस्तरीय भी होते हैं

15. अद्भुत संयोग, जिसका कारण अविज्ञान ही रहा

16. अन्तर्ग्रही प्रवाहों का व्यष्टि चेतना से सघन सम्बन्ध

17. असामयिक बुढ़ापा, अपनी ही मूर्खता का प्रतिफल

18. यज्ञ प्रयोजन में सुसंस्कारिता का समावेश

19. गायत्री साधना की सफलता का विज्ञान

20. उपासना में कृत्य नहीं भावना प्रधान

21. अपनो से अपनी बात

अखण्ड ज्योति मार्च 1983

1. मानवी प्रगति आकांक्षाओं के स्तर पर निर्भर

2. ‘‘सर्वस्या उन्नतेर्मूलं महतां संग उच्यते’’

3. विभूतियों का उद्गम अपना ही अन्तरंग

4. प्रगति की प्रसन्नता की जड़े-हमारे अपने ही अन्दर

5. सफलताओं की जननी-मनुष्य की थाती संकल्प शक्ति

6. नीति उपार्जन की बाइबिल शिक्षा

7. अपने अन्तः के उपेक्षित कल्प वृक्ष को जगायें

8. मनोबल द्वारा आतंक का शमन

9. अनुसन्धान चेतना क्षेत्र का भी होना चहिए

10. तन्त्र अध्यात्म क्षेत्र का भौतिक विज्ञान

11. अगली पीढ़ी समझदारों की होगी

12. मानवी मस्तिष्क-एक जादुई पिटारा

13. अपंग जिसने समर्थ पीछे छोड़ दिए

14. निद्रा और स्वप्न का मध्यवर्ती तारतम्य

15. मृत्यु से वापस लौटने वालों के अनुभव

16. विचित्रताओं से भरापूरा-यह संसार

17. कायाकल्प-कितना सम्भव कितना असम्भव

18. चिकित्सा के लिए जड़ी-बुटियों की ओर लौटें

19. ब्रह्म विद्या के अनुरूप ज्ञान गंगा का अवगाहन

20. अपनो से अपनी बात

21. आत्मबल सभी प्रज्ञा परिजन अर्जित करें

अखण्ड ज्योति फरवरी 1983

1. शाश्वत जीवन को सुसम्पन्न बनाना श्रेयस्कर हैं

2. प्रसन्नता सम्पन्नता पर निर्भर नहीं

3. सृजेता की एक अनुपम कृति-यह सृष्टि

4. महानता भीतर से उभरती हैं, ऊपर से नहीं टपकती

5. आधुनिक मनोविज्ञान का उपनयन संस्कार किया जाय

6. विज्ञान और अध्यात्म में विरोध कहाँ ?

7. पुरातन ज्ञान सम्पदा से भविष्य की सुसम्पन्नता

8. काया पर समग्र नियन्त्रण की दिव्य क्षमता

9. भविष्य कथन-असम्भव नहीं

10. आइये ! अपनी विस्मृत धरोहर का स्मरण करे

11. प्रेतात्माओं का स्वरूप एवं स्वभाव समझने में हर्ज नहीं

12. दृश्य प्रकृति की अविज्ञान विलक्षणतायें

13. ‘‘न मनुष्यात् श्रेष्ठतरम् हि किंचित्’’

14. ‘‘यज्ञ’’ भारतीय दर्शन का इष्ट आराध्य

15. शक्ति की अधिष्ठात्री-त्रिपदा गायत्री

16. कुण्डलिनी का निवास, स्वरूप ओर प्रतिफल
16. उपचार या परिष्कार

अखण्ड ज्योति जनवरी 1983

1. वैभव ही नहीं विवेक भी

2. वास्तविक प्रगति आकांक्षाओं के परिष्कार पर निर्भर

3. आनन्द की गंगोत्री अपने ही भीतर

4. पृथकता के अन्तराल में एकत्व का सत्य

5. योगी अरविन्द का पूर्ण योग

6. विचार-एक अद्भुत प्रचण्ड शक्ति स्त्रोत

7. विचार शक्ति का पेड़-पौधों पर प्रभाव

8. विज्ञान को अध्यात्म के साथ मिलना होगा

9. नर और मादा का विभेद अकाट्य नहीं परिवर्तनशील हैं

10. लोक-लोकान्तरों का पारस्परिक आदान-प्रदान

11. मनुष्य आदिम काल में भी बुद्धिमान था

12. प्राण विद्युत की चमत्कारी कार्य क्षमता

13. मस्तिष्क मे स्मरण क्षमता का विपुल भाण्डागार

14. मरण के उपरान्त पुनर्जन्म सुनिश्चित

15. स्वस्थ जीवन के पाँच स्वर्णिम सूत्र

16. चिकित्सक का ही नहीं पुरोहित का भी परामर्श माने

17. विश्व प्राण और व्यष्टि प्राण का सुयोग-संयोग

18. पाँच अग्नियों के पाँच आवरण, पाँच कोष

19. आत्मसत्ता में प्राणसत्ता की अवधारणा

20. अपनो से अपनी बात-वह-जो प्राणवानो को इन्ही दिनों करना है

21. प्रज्ञा सम्मेलनों का आयोजन और संचालन एक और महत्वपूर्ण दायित्व

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