रविवार, 8 मई 2011

करो मत श्रद्धा से व्यापार

1) ध्यान रहे, चिन्तन स्वयं के चरित्र को विनिर्मित करने के लिये होता हैं, न कि दूसरे को तर्क से पराजित करके स्वयं के अहं की तुष्टि करने के लिये।
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2) ध्यान आध्यात्म पथ का प्रदीप है। ध्यान की ज्योति जिसमें जितनी प्रखर हैं, अध्यात्म पथ उसमें उतना ही प्रखर हो जाता है। परमहंस श्री रामकृष्ण देव अपने शिष्यों से कहा करते थे कि ध्यान की प्रगाढता अध्यात्म ज्ञान की परिपक्वता का पर्याय है। वह कहते थे, ‘‘ जिसे ध्यान सिद्ध है, समझना चाहिए उसे अध्यात्म सिद्ध है।

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3) धर्म क्या हैं ?:- धर्म प्रवचन नहीं है। बौद्धिक तर्क-विलास वाणी का वाक्जाल भी धर्म नहीं है। धर्म तप हैं। धर्म तितिक्षा है। धर्म कष्ट-सहिष्णुता है। धर्म परदुःखकातरता है। धर्म सचाइयों और अच्छाइयों के लिए जीने और इनके लिए मर मिटने का साहस हैं धर्म मर्यादाओ की रक्षा के लिए उठने वाली हुकारे हैं धर्म सेवा की सजल संवेदना है। धर्म पीडा-निवारण के लिए स्फुरित होने वाला महासंकल्प है। धर्म पतन-निवारण के लिए किए जाने वाले युद्ध का महाघोष हैं। धर्म दुष्प्रवृतियों, दुष्कृत्यों, कुरीतियों के महाविनाश के लिए किए जाने वाले अभियान का शंखनाद है। धर्म सर्वहित के लिए स्वहित का त्याग हैं। ऐसा धर्म केवल तप के वासंती अंगारो में जन्म लेता हैं। बलिदान के वासंती राग में इसकी सुमधुर गूँज सुनी जाती है।

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4) धर्म की मर्यादा में अर्थ का उपार्जन एवं काम का सुनियोजन करते हुए मोक्ष की ओर बढने का यहा आदर्श निर्धारण रहा है।

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5) धर्म का मार्ग फूलों की सेज नहीं, इसमें बडे-बडें कष्ट सहन करने पडते है।

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6) धर्म का प्रथम आधार आस्तिकता हैं, ईश्वर विश्वास है।

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7) धर्म का उद्धेश्य मानव को पथ भ्रष्ट होने से बचाना है।

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8) धर्म में से दुराग्रह और पाखण्ड को निकाल दो । वह अकेला ही संसार को स्वर्ग बनाने में समर्थ है।

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9) धर्म से आशय श्रेष्ठ गुणों को अपनाना है।

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10) धर्म, सत्य और तप-यही जीवन की सार सम्पत्तियाँ है।

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11) धीर और वीर वे हैं जो निडर रहते हैं, हिम्मत नहीं छोडते, अधीर नहीं होते और हर कठिनाई का हॅसते-मुस्कराते स्वागत करते है।

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12) धरती का श्रंगार पेड है।

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13) धैर्य पूर्वक सभी संरक्षण शक्तियों से अपनी रक्षा करो।

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14) धैर्य प्रतिभा का आवश्यक तत्व है।

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15) धैर्य रखना और अवसर न खोना के बीच संतुलन बहुत जरुरी है।

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16) धैर्य साधना क्षेत्र में अति अनिवार्य है।

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17) धैर्य और संतोष जीवन-नौका के वह पतवार हैं जो उसे मंजिल तक ले जाते है।

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18) धैर्य, क्षमा, मनोनिग्रह, अस्तेय, बाहर-भीतर की पवित्रता, इन्द्रियनिग्रह, सात्विक बुद्धि, अध्यात्म विद्या, सत्यभाषण और क्रोध न करना-ये दस सामान्य धर्म के लक्षण है।

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19) धैर्य, संयम और सहनशीलता अपनावो।

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20) धैर्यवान के क्रोध से बचो।

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21) धैर्यवानो का यह स्वभाव होता हैं कि वह आपत्तियों में और अधिक दृढ़ हो जाते है।

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22) धन या पद पाने की अपेक्षा लोक श्रद्धा प्राप्त करना अधिक मूल्यवान है।


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23) धन बल, जन बल, बुद्धि अपार, सदाचार बिन सब बैकार।


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24) धन की तीन गति होती है - दान, भोग और नाश।

अखण्ड ज्योति जनवरी 1956



1. अग्निहोत्र-हैं क्या ?

2. यज्ञों का विस्तृत क्षेत्र

3. यज्ञ से स्वर्ग की प्राप्ति

4. यज्ञ की महान् महिमा

5. यज्ञकर्ता-ऋणी नहीं रहता

6. यज्ञ द्वारा विविध कामनाओं की पूर्ति

7. कल्याण का श्रेष्ठ मार्ग-यज्ञ

8. महाभारत में यज्ञ

9. यज्ञ की भावना

10. यज्ञ का वास्तविक स्वरूप

11. यज्ञ द्वारा विश्व शांति की सम्भावना

12. यज्ञ द्वारा देव शक्तियों से अनुग्रह प्राप्ति

13. यज्ञ पुरूष और उसकी महिमा

14. यज्ञ विज्ञान सम्मत हैं

15. यज्ञ का महान् तत्व ज्ञान

16. यज्ञ के प्रत्यक्ष अनुभव

17. श्रवण कुमार की अन्तर्वेदना

18. श्रौत-यज्ञों का संक्षिप्त परिचय

19. कुण्डो की रचना एवं भिन्नता का उद्देश्य

20. हवन का व्यक्तिगत अनुभव

21. गायत्री पुस्तकालय स्थापित कीजिए

22. श्रौत और स्मार्त यज्ञों यज्ञ-पात्र

अखण्ड ज्योति दिसम्बर 1955

1. प्रभु से प्रार्थना

2. हमारा यज्ञिय देश

3. विश्व कल्पतरू यज्ञ

4. यज्ञ-ज्ञान-विषयक विचारधारा

5. यज्ञ द्वारा वायु शुद्धि

6. वेद में यज्ञों का वैज्ञानिक स्वरूप

7. विज्ञान का आदि पिता यज्ञ

8. यज्ञ की वैज्ञानिक शक्ति

9. यज्ञ द्वारा रोग निवारण

10. यज्ञ की रोग निवारक शक्ति

11. यज्ञ द्वारा लोक कल्याण

12. यज्ञ में मन्त्र शक्ति का महत्व

13. यज्ञ की सफलता मंत्र पर निर्भर हैं

14. अखण्ड-अग्नि की आवश्यकता

15. यज्ञ करने वाले इन बातों का ध्यान रखे

16. यज्ञ पिता के लिए अब यह किया जाना चाहिए

17. यज्ञाग्नि (कविता) - श्री सुमित्रा नंदन पंत

अखण्ड ज्योति नवम्बर 1955

1. पूर्णाहुति की तैयारी का समय आ गया

2. मैने सब देकर सब पाया !

3. ऋषियों की पवित्र थाती सुरक्षित रहनी चाहिए

4. सांस्कृतिक शिक्षा की एक महान योजना

5. भारतीय संस्कृति का आधार

6. हम अपनी उसी संस्कृत को वापिस लावें

7. अरे-इस आसुरी संस्कृति को रोको !!

8. सांस्कृतिक निष्ठा की आवश्यकता

9. सांस्कृतिक विकास की एक रूपरेखा

10. गायत्री महामंत्र से लाभ उठाने के लिए

11. गायत्री उपासना के सत्परिणाम

12. अखण्ड ज्योति प्रेस का महत्वपूर्ण प्रकाशन

13. विश्वास

अखण्ड ज्योति अक्टूबर 1955

1. करो मत श्रद्धा से व्यापार

2. गायत्री की महान महिमा

3. शारीरिक अस्वस्थता से निवृत्ति

4. गायत्री उपासना से सुख सुविधाओं की वृद्धि

5. गायत्री उपासना से अनेक संकटों की निवृत्ति

6. गायत्री द्वारा सुख समृद्धि और सफलता

7. गायत्री उपासना के आध्यात्मिक अनुभव

8. आश्विन की नवरात्रि साधना

9. जगदम्बा के प्रति (कविता)

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