शनिवार, 26 फ़रवरी 2011

मेरी कमियाँ

मेरा यह मानना हैं कि ईश्वर तथा प्रकृति ने मानव समाज को भरपूर दिया है।, किन्तु यह मेरी स्वयं की कमियाँ हैं जो मुझे इनका पूर्ण लाभ लेने से वन्चित रखती हैं। 
मैं अपने में निम्नांकित कमियाँ पाता हूँ।




1. मैं सिर्फ अपने सुखों/चाहतों के बारे में ही सोचता हूँ।
2. मैं अपना सुधार करने के बजाय दूसरों के सुधार में लगा रहता हूँ।
3. मैं जिन बातों को अच्छा मानता हूँ, उन पर भी अमल नहीं करता हूँ। 
4. यह अच्छी तरह जानते हुए भी कि मैं समाज के बिना नहीं रह सकता हूँ, मैं हर वो काम करता हूँ। जिससे मुझे व्यक्तिगत लाभ किन्तु समाज को हानि होती हैं।
5. मेरा अहम् एवम् स्वार्थ मेरे आगे-आगे चलता हैं। 
6. मैं हर व्यक्ति में अविश्वास रखता हूँ तथा उसके गुणों में भी दोष देखता हूँ। 
7. मैं शिक्षित होने के बावजूद नम्रता एवं नैतिकता के गुणों से दूर हूँ। 
8. मैं प्रकृति के अनमोल किन्तु निःशुल्क वरदान-भूमि, जल, वायु, आकाश, सूर्य, वन पर आश्रित होने के बाद भी उनको समाप्त कर रहा हूँ। ये मेरे स्वयं के समाप्त होने की पूर्व सूचना हैं। 

मुझे विश्वास हैं कि मेरे प्रयत्न तथा ईश्वर की कृपा ही मेरी इन कमियों को दूर कर सकती हैं।

-अंतरभावना सहित-

जनहित में गोयल चेरिटीज एसोसिएशन, इन्दौर द्वारा प्रचारित पेम्पलेट की अनुकृति

‘समाज संगठन’ श्री माहेश्वरी समाज इन्दोर के मुख पत्र से साभार।

पहचान

‘‘मैं अपना काम ठीक-ठाक करूंगा और उसका पूरा-पूरा फल पाऊँगा।‘‘ यह एक ने कहा।

‘‘मैं अपना काम ठीक-ठीक करूंगा और निश्चय ही भगवान उसका पूरा फल मुझे देंगे।’’ यह दूसरे ने कहा। 

‘‘मैं अपना काम ठीक करूंगा। फल के बारे में सोचना मेरा काम नहीं।’’ यह तीसरे ने कहा।

‘‘मैं काम-काज और फल, दोनों के झमेले में नहीं पड़ता, जो होता हैं सब ठीक है, जो होगा सब ठीक हैं।’’ यह चैथे ने कहा।

आकाश सब की सुन रहा था। 
उसने कहा-‘‘पहला गृहस्थ हैं, 
दूसरा भक्त हैं, 
तीसरा ज्ञानी हैं, 
पर चैथा परमहंस हैं या अकर्मण्य, 
यह में नहीं कह सकता।’’

‘समाज संगठन’ श्री माहेश्वरी समाज इन्दोर के मुख पत्र से साभार।

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