शनिवार, 22 अक्तूबर 2011

अहंकारी सदैव उलटा सोचता हैं ...

1) अभिलाषा के बिना पौरुष जाग्रत नही होता और पुरुषार्थ के बिना कोई महत्वपूर्ण सफलता कठिन है।
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2) अविश्वास धीमी आत्म हत्या है।
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3) अविश्वास, अकर्मण्यता, ईर्ष्या, असंतोष, मन की चंचलता तथा ऐसे अनेको मनोजनित रोग केवल भय की ही विभिन्न स्थितियाँ है।
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4) अविवेकशील मनुष्य दुःख को प्राप्त होते है।
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5) अनिश्चितता और विलम्ब असफलता के माता-पिता है।
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6) अहं की भावना रखना एक अक्षम्य अपराध है।
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7) अहंकार को मिटा देने से भगवान मिल जाते है।
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8) अहंकार को गलाने के लिये निष्काम सेवाभाव एकमात्र उपाय है।
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9) अहंकार विहीन प्रतिभा जब अपने चरमोत्कर्ष को छूती हैं तो वहाँ ऋषित्व प्रकट होता है।
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10) अहंकार समस्त महान् गलतियों की तह में होता है।
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11) अहंकार अज्ञानता की पराकाष्ठा है।
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12) अहंकारी सदैव उलटा सोचता हैं तथा अत्यधिक क्रोधी भी बन जाता है।
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13) अहंकारी और अधिकार के मद में चूर व्यक्ति कभी किसी को प्रेरणा नहीं दे पाता है।
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14) अहंता बडप्पन पाने की आकांक्षा को कहते हैं, दूसरों की तुलना में अपने को अधिक महत्व, श्रेय, सम्मान, मिलना चाहिये। यही हैं अहंता की आकांक्षा।
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15) अहम् का त्याग होने पर व्यक्तित्व नहीं रहता।
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16) अहमन्यता एक प्रकार की जोंक हैं, उससे पीछा छुडाने के लिये ऐसे छोटे काम अपने हाथे से करने होते हैं, जिन्हे आमतौर से छोटे लोगों द्वारा किया जाने योग्य समझा जाता है।
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17) अभक्ष्य आहार से जिव्हा की सूक्ष्म शक्ति नष्ट हो जाती है।
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18) अपमान को निगल जाना चरित्र पतन की आखिरी सीमा है।
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19) अपराध करने के बाद भय पैदा होता हैं और यही उसका दण्ड है।
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20) अपनी बुराई अपने इसी जीवन में मरने दो।
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21) अपनी मान्यताओं को ही सर्वश्रेष्ठ मानकर आलोचना नहीं करनी चाहिये।
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22) अपनी विद्वता पर अभिमान करना सबसे बडा अज्ञान है।
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23) अपनी भूख मार कर जो भिखारी को भीख दे वही तो दाता है।
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24) अपनी भूल अपने ही हाथों सुधर जायें, तो यह उससे कहीं अच्छा हैं कि कोई दूसरा उसे सुधारे।

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