सोमवार, 24 अक्तूबर 2011

समय की पाबंदी

महात्मा गांधी के जीवन की एक घटना है। एक बार एक परिषद् की कार्यवाही आरंभ करने में उन्हें 45 मिनट की प्रतीक्षा करनी पड़ी। कारण था एक अन्य नेताजी, जिन्हें कार्यक्रम की अध्यक्षता करनी थी, उनका देरी से आना। उनके मंच पर आते ही गांधी जी कह उठे, ``यदि हमारे अग्रगामी नेतागणों की यही स्थिति रही तो स्वराज्य भी 45 मिनट देरी से आएगा।´´ समय के पाबंद, कर्तव्य की यह अभिव्यक्ति उनके अंत:करण से सहज ही स्फुरित हुई थी।



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