शनिवार, 22 अक्तूबर 2011

आध्यात्मिक कैसे बना जा सकता हैं ?...

आध्यात्मिक कैसे बना जा सकता हैं ? पूजा-अर्चा प्रतीक मात्र हैं, जो बताती हैं कि वास्तविक उपासक का स्वरुप क्या होना चाहिए और उसके साथ क्या उद्धेश्य और क्या उपक्रम जुडा रहना चाहिए। देवता के सम्मुख दीपक जलाने का तात्पर्य यहाँ हमें दीपक की तरह जलने और सर्वसाधारण के लिए प्रकाश प्रदान करने की अवधारणा हृदयंगम कराता हैं। पुष्प चढाने का तात्पर्य यह हैं कि जीवन क्रम को सर्वांग सुन्दर, कोमल, सुशोभित रहने में कोई कमी न रहने दी जाये। अक्षत चढाने का तात्पर्य हैं कि हमारे कार्य का एक नियमित अंशदान परमार्थ प्रयोजन के लिये लगता रहेगा। चन्दन लेपन का तात्पर्य हैं कि सम्पर्क क्षेत्र में अपनी विशिष्टता सुगंध बनकर अधिक विकसित हो। नैवेद्य चढाने का तात्पर्य है, अपने स्वभाव और व्यवहार में मधुरता का अधिकाधिक समावेश करना। जप का उद्धेश्य हैं अपने मनः क्षेत्र में निर्धारित लक्ष्य तक पहुँचने की निष्ठा का समावेश करने के लिए उसकी रट लगाये रहना। ध्यान का अर्थ हैं अपनी मानसिकता को लक्ष्य विशेष पर अविचल भाव से केन्द्रीभूत किये रहना। प्राणायाम का प्रयोजन अपने आपको हर दृष्टि से प्राणवान, प्रखर प्रतिभा सम्पन्न बनाये रखना। समूचे साधना विज्ञान का तत्वदर्शन इस बात पर केन्द्रीभूत हैं कि जीवन चर्या का बहिरंग और अंतरंग पक्ष निरन्तर मानवी गरिमा के उपयुक्त ढाँचे में ढलता रहे। कषाय-कल्मषों के दोष-दुर्गुण जहाँ भी छिपे हुए हो उनका निराकरण होता चले। 

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