शनिवार, 16 जुलाई 2011

पवित्र जीवन

मनुष्य को बाहर और भीतर से पवित्र रहना चाहिए, क्योंकि पवित्रता में ही प्रसन्नता रहती है। पवित्रता में ही चित्त की प्रसन्नता, शीतलता, शान्ति, निश्चिन्तता, प्रतिष्ठा और सच्चाई छिपी रहती है। कूड़ा-करकट, मैल-विकार, पाप, गन्दगी, दुर्गन्ध, सडऩ, अव्यवस्था और घिचपिच से मनुष्य की आन्तरिक निकृष्टता प्रकट होती है।

आलस्य और दरिद्रता, पाप और पतन जहाँ रहते हैं, वहीं मलिनता या गन्दगी का निवास रहता है, जो ऐसी प्रकृति के हैं, उनके वस्त्र, घर, सामान, शरीर,मन, व्यवहार, वचन, लेन-देन सबमें गन्दगी और अव्यवस्था भरी रहती है। इसके विपरीत जहाँ चैतन्यता, जागरूकता, सुरुचि, सात्विकता होगी, वहाँ सबसे पहले स्वच्छता की ओर ध्यान जायेगा। सफाई, सादगी और सुव्यवस्था में ही सौन्दर्य है, इसी को पवित्रता कहते हैं। 

गंदे खाद से गुलाब के सुन्दर फूल पैदा होते हैं, जिसे मलिनता को साफ करने में हिचक न होगी, वहीं सौन्दर्य का सच्चा उपासक कहा जायेगा। मनिलता से घृणा होनी चाहिए, पर उसे हटाने या दूर करने में तत्परता होनी चाहिए। आलसी अथवा गंदगी की आदत वाले प्रायः फुरसत न मिलने का बहाना करके अपनी कुरुचि पर पर्दा डाला करते हैं।

पवित्रता एक आध्यात्मिक गुण है। आत्मा स्वभावतः पवित्र और सुन्दर है, इसलिए आत्म-परायण व्यक्ति के विचार, व्यवहार तथा वस्तुएँ भी सदा स्वच्छ एवं सुन्दर रहते हैं। गन्दगी उसे किसी भी रूप में नहीं सुहाती, गन्दे वातावरण में उसकी श्वास घुटती है, इसलिए वह सफाई के लिए, दूसरों का आसरा नहीं टटोलता, अपनी समस्त वस्तुओं को स्वच्छ बनाने के लिए वह सबसे पहले अवकाश निकालता है।

पवित्रता के कई भेद हैं। सबसे पहले शारीरिक स्वच्छता का नम्बर आता है, जिसमें वस्त्रों और निवास स्थान की सफाई भी आवश्यक होती है। दूसरी स्वच्छता मानसिक विचारों और भावों की होती है। आर्थिक मामलों में भी, जैसे आजीविका, लेन-देन आदि में शुद्ध व्यवहार करना श्रेष्ठ गुण समझा जाता है। चैथी पवित्रता व्यावहारिक विषयों की है, जिसका आशय बातचीत और कार्यों के औचित्य से है। अंतिम नम्बर आध्यात्मिक विषयों की पवित्रता का है, जिसके बिना हमारा धर्म-कर्म निरर्थक हो जाता है। इन सबमें शारीरिक और मानसिक पवित्रता से लोगों का विशेष काम पड़ा करता है; क्योंकि इनके होने से अन्य विषयों में स्वयं ही पवित्र भावों का उदय होता है।

-शैलबाला पण्ड्या

यह संकलन हमें श्री अंकित अग्रवाल नैनीताल से प्राप्त हुआ हैं। धन्यवाद। यदि आपके पास भी जनमानस का परिष्कार करने के लिए संकलन हो तो आप भी  हमें मेल द्वारा प्रेषित करें। उसे अपने इस ब्लाग में प्रकाशित किया जायेगा। आपका यह प्रयास ‘‘युग निर्माण योजना’’ के लिए महत्त्वपूर्ण कदम होगा।
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