रविवार, 10 जुलाई 2011

उन्नति नहीं, प्रगति अभीष्ट

1) मानव जीवन का मन्थन करने पर जो अमृत निकलता हैं, उसका नाम आत्म गौरव है।
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2) मानव जीवन का परम पुरुषार्थ हैं-अपनी निकृष्ट मानसिकता से त्राण पायें।
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3) मानव जीवन को पवित्र एवं उत्कृष्ट बनाने वाले आध्यात्मिक उपचार का नाम हैं - संस्कार।
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4) मानव जीवन मे आधी गलतिया तो केवल मात्र इसलिये हो जाती हैं कि जहा हमें विचार से काम लेना चाहिये वहा हम भावना से काम लेते हैं और जहा भावनाओं की आवश्यकता रहती हैं वहा विचारों को अपनाते हैं।
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5) मानवी गरिमा के प्रति अनास्था को ही आस्तिकता कहते हैं।
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6) मानवीय मूल्यो की दृढ अवधारणा एवं स्थापना में मानव कल्याण निहित हैं।
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7) मानवीय मूल्यों में तुलसीदास जी ने लोकहित को सर्वोच्च मान्यता प्रदान की है।
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8) मानवता की यहीं पुकार, रोको नारी अत्याचार।
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9) मानवता के अनन्य पुजारी, ब्रह्मर्षि, गायत्री माता के वरद पुत्र, प्राणि मात्र के सहज सहचर, युगपुरुष, युगदृष्टा, युगप्रर्वतक, विश्वबन्धुत्व एवं विश्वशान्ति के समर्थक-पोषक, अभिनव विश्वामित्र, वेदमूर्ति, तपोनिष्ठ परमपूज्य गुरुदेव पं. श्रीरामशर्मा आचार्य के श्रीचरणों में सादर नमन्।
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10) माँ का हृदय बच्चे की पाठशाला है।
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11) माँ के संस्कार ही बच्चे का भाग्य हैं।
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12) मार्ग उन्ही का अवरुद्ध रहता हैं, जो अपने उपर भरोसा नहीं करते।
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13) माली की तरह जियो, जिसके प्रयास की चर्चा खिलते पुष्प हवा में फैलाते हैं।
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14) मुक्ति भव-बन्धनो से होती हैं। वासना, तृष्णा और अहन्ता को भवसागर कहा गया है। लोभ को हथकडी, मोह को बेडी और गर्व को गले का तौक कहते हैं । जीव इन्ही से बन्धा रहता है।
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15) मुस्कान ही चेहरे का सच्चा सौन्दर्य है।
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16) मेघ चाहे उपाधिया व जागीरे बरसा दे, धन चाहें हमें खोजें, किन्तु ज्ञान को तो हमें ही खोजना पडेगा।
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17) मैं कौन हू ? जो स्वयं से इस सवाल को नहीं पूछता है, ज्ञान के द्वार उसके लिए बन्द ही रह जाते है। उस द्वार को खोलने की चाबी यहीं हैं कि स्वयं से पूछो, ‘‘ मैं कौन हूँ ? ’’ और जो तीव्रता से, समग्रता से अपने से यह सवाल पूछता हैं, वह स्वयं ही उत्तर भी पा जाता है।
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18) मैं सबको सब कुछ नहीं पढा सकता, मैं सिर्फ उन्हें सोचने के लिये प्रेरित कर सकता हू।
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19) मैं दूसरों के साथ वह व्यवहार नहीं करूँगा जो मुझे अपने लिये पसन्द नहीं।
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20) मैं अपने आप को बदल रहा हू, दूसरों से बहुत कम आशाए रखता हू। और उनके व्यवहार पर तीखी प्रतिक्रिया भी नहीं करता।
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21) मेरी तो बस एक ही प्रार्थना हैं, सभी प्राणियों का हृदय स्थिर रहें और मैं सब दुःखों को सहन करु।
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22) मेरे मन के संकल्प शुभ और कल्याणमय हो।
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23) मेरे लिये नैतिकता, सदाचार और धर्म पर्यायवाची शब्द हैं-राष्ट्रपिता।
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24) मैने अपनी इच्छाओ का दमन करके सुख प्राप्त करना सीखा हैं, उनकी पूर्ति करके नहीं।

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