बुधवार, 15 जून 2011

अखण्ड ज्योति दिसम्बर 1985

1. आँगन में विद्यमान कल्पवृक्ष

2. महान् कार्यो के लिए महान् व्यक्तित्वों की आवश्यकता

3. भक्ति में देना ही पड़ता हैं

4. अन्तरंग योग की पृष्ठभूमि

5. क्रिया योग के चार विधान

6. व्यक्तित्व का अधःपतन और उसकी परिणति

7. बड़प्पन का मापदण्ड

8. आत्मा और शरीर का वास्तविक हित साधन

9. मनुष्य की सशक्त प्राण-ऊर्जा

10. धर्म अपने स्वस्थ स्वरूप में ही वरणीय हैं

11. संयम से रहें-दीर्घजीवी बने

12. आवश्यकताओं ओर इच्छाओं का अन्तर

13. मानवी सत्ता-जादू की पिटारी

14. संगीत और आत्मोत्कर्ष

15. भूत, भविष्य की नहीं मात्र वर्तमान की सोचें

16. साहस और सूझबूझ के धनी

17. आखिर में आवाजें किसकी थी ?

18. पालब्रिन्टन द्वारा आधुनिक भारत की खोज

19. पुरातन गरिमा को भुलायें नहीं

20. समय के साथ बदलिये

21. योग की साधना की जाय, विडम्बना नहीं

22. प्रेतों  का अस्तित्व और स्वभाव

23. किसी अन्य लोक में जा बसने की तैयारी

24. ऐसे होते हैं दैत्य

25. चेतना का रहस्यवाद

26. बाहर और भीतर की समृद्धियाँ

27. न आत्म-विश्वास खोयें, न भयाक्रान्त रहें

28. बढ़ते हुए मनोरोग-कारण और निवारण

29. सावित्री साधना और पंचकोष

30. स्थिति के अनुरूप साधनों की भिन्नता

31. ‘यज्ञ’ ज्ञान और विज्ञान का भाण्डागार

32. ब्राह्मणत्व गिरेगा तो समाज की बर्बादी होगी

33. अपनो से अपनी बात

34. तप की सामर्थ्य-कविता

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