सोमवार, 13 जून 2011

अखण्ड ज्योति अप्रेल 1984

1. ‘प्रज्ञा’ मानव को प्राप्त दैवी अनुदान

2. आत्मज्ञान की उपलब्धि-अमरत्व की सिद्धि

3. ईश्वर विकास का चरम बिन्दु हैं

4. परब्रह्म की सत्ता कारण और प्रमाण

5. दैवी अनुदानो का सच्चा अधिकारी कौन

6. परिवर्तन सृष्टि की एक शाश्वत विधि व्यवस्था

7. ऊर्जा का संचय एवं सुनियोजन

8. मनोनिग्रह सबसे बड़ा पुरूषार्थ

9. चिन्तन व्यवस्थित हो विधेयात्मक हो

10. सदाशयता की महत्वाकांक्षा हर दृष्टि से हितकर

11. विचार सम्प्रेषण की अद्भुत शक्ति सामर्थ्य

12. आत्म बोध से ही जीवन सम्पदा की सार्थकता

13. विलक्षण सामर्थ्य का समुच्चय यह मानव शरीर

14. सिद्धान्त व्यवहार में उतरे तो ही सार्थक

15. ओजस्विता, तेजस्विता और मनस्विता का आन्तरिक भण्डागार

16. मनुष्तेत्तर प्राणियों में पाई जाने वाली अतीन्द्रिय क्षमताएँ

17. मानवी पुरूषार्थ और कर्मफल के सिद्धान्त

18. परोक्ष से सम्पर्क स्थापित कर बहुत कुछ हस्तगत किया जा सकता हैं

19. मृत्यु जीवन का अन्त नहीं

20. जीवेम् शरदः शतम्

21. सृजन शक्ति का प्रेरणा स्त्रोत-काम

22. उद्विग्नता मनुष्य की प्राणघातक शत्रु

23. स्मरण शक्ति की न्यूनता से चिन्तित न हो

24. आत्मविश्वास जगाएँ-सफलता पायें

25. आसार बताते हैं कि हिमयुग आने वाला है

26. नजरे जो बदली तो नजारे बदल गये

27. शब्द ब्रह्म का साक्षात्कार एवं उसकी चमत्कृतियाँ

28. सूक्ष्मीकरण पर आधारित यज्ञोपचार पद्धति

29. अपनो से अपनी बात

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