सोमवार, 13 जून 2011

अखण्ड ज्योति अक्टूबर 1982

1. सृजन चेतना की समर्थता और गरिमा

2. वर्तमान की विपन्नता का पर्यवेक्षण

3. विभीषिका से जूझने कौन आगे आये ?

4. दो हाथों से ताली बजेगी, दो पहियों की गाड़ी चलेगी

5. धर्मतन्त्र की उपेक्षित किन्तु मूर्धन्य शक्ति सामर्थ्य

6. मुहीम युग मनीषा को सम्भालनी होगी

7. महत्व लोक मानस के परिष्कार का भी समझे

8. झकझोरने वाली वाणी मुखर करे

9. तथ्य, तर्क और प्रमाणो से भरे-पूरे युग साहित्य का सृजन

10. लोकरंजन के साथ लोकमंगल का समन्वय

11. जाग्रत आत्माओं की समयदान अंशदान श्रद्धांजलि

12. मनुष्य में देवत्व का उदय और धरती पर स्वर्ग का अवतरण

13. नैतिक, बौद्धिक और सामाजिक क्षेत्र की समग्र क्रान्ति

14. युग मनीषा कहाँ पाये, कहाँ खोजें, कहाँ पुकारे ?

15. सृजन प्रयासों में धर्मतन्त्र का शासन के साथ सहकार

16. नव सृजन का पूर्वाध जो हो चुका

17. युग-परिवर्तन प्रक्रिया का उत्तरार्ध जो अभी ही क्रियान्वित होना है

18. हमी एक कदम और आगे बढ़े

19. युग मनीषा के कन्धो पर इन्ही दिनों एक छोटा किन्तु महान् उत्तरदायित्व

कोई टिप्पणी नहीं:

LinkWithin

Blog Widget by LinkWithin