गुरुवार, 9 जून 2011

अखण्ड ज्योति अप्रेल 1977

1. सर्वतोमुखी प्रगति के दो आधार-अध्यात्म और विज्ञान

2. आत्मिक प्रगति के लिए साधना की आवश्यकता

3. आत्म परिष्कार की साधना-दूरदर्शी बुद्धिमता

4. सद्ज्ञान और सत्सामर्थ्य की समन्वित साधना

5. ब्रह्मविद्या का उद्देश्य-श्रद्धा का सम्वर्द्धन

6. वर्चस की साधना आत्मबल उभारने के लिए

7. ब्रह्मवर्चस् के ज्ञान-विज्ञान की तात्विक पृष्ठभूमि

8. गायत्री का धियः तत्व ब्रह्म-विज्ञान

9. गायत्री का भर्ग तत्व ब्रह्म-वर्चस्

10. गायत्री का प्राणवान ब्रह्मतेज

11. सावित्री शक्ति का महाप्राण सविता

12. पाँच कोषों की स्थिति और प्रतिक्रिया

13. पाँच कोष और उनका अनावरण

14. नाभिचक्र-अन्नमय कोष का प्रवेश द्वार

15. प्राणायाम से प्राणमय कोष का परिष्कार

16. मनोमय कोष और आज्ञाचक्र

17. विज्ञानमय कोष का केन्द्र संस्थान-हृदयचक्र

18. आनन्दमय कोष का अमृत कलश

19. कुण्डलिनी जागरण से आत्मिक और भौतिक सिद्धियाँ

20. आत्मशोधन और प्रायश्चित प्रक्रिया

21. अपनो से अपनी बात

22. साधना स्वर्ण जयन्ती वर्ष और उसकी पूर्णाहुति

23. नई पीढ़ी को सुसंस्कृत बनाने की एक वर्षीय शिक्षा

24. गायत्री विद्या के अमूल्य ग्रन्थ रत्न

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