गुरुवार, 9 जून 2011

अखण्ड ज्योति नवम्बर 1976

1. हम चिन्तन की दृष्टि से भी प्रोढ़ बने

2. आगे बढ़ने की सामर्थ्य जुटायें

3. आत्म-निर्माण मानव जीवन की सर्वोपरि सफलता

4. आत्म-सत्ता का अस्तित्व हैं या नहीं ?

5. जीव वस्तुतः ब्रह्म का ही एक घटक हैं

6. अचेतन् का परिष्कार ही परम् लक्ष्य

7. योग आन्तरिक परिष्कार का विज्ञान

8. नये विचार उपहासास्पद न समझे जाय

9. सोऽम् साधना द्वारा प्राणतत्व का परिपोषण

10. खेचरी मुद्रा की दार्शनिक पृष्ठभूमि

11. प्रगति पथ पर बढ़ चलने की सुविधा सभी को उपलब्ध हैं

12. अन्तरंग ऊर्जा का महत्वपूर्ण उपयोग

13. दिव्य-प्रेतात्मा की अदृश्य सहायता

14. परिस्थितियों पर नहीं मनःस्थिति पर प्रसन्नता निर्भर हैं

15. जीव जन्तुओं की विशिष्ट चेतना शक्ति

16. हमारी सहानुभूति गहरी और सजीव हैं

17. स्वप्नों के झरोखों से सूक्ष्म जगत की झाँकी सम्भव हैं

18. परिश्रमी बनें-पुरूषार्थी बने

19. मन्त्र शक्ति से आत्म-कल्याण और विश्व-कल्याण

20. अपनो से अपनी बात

21. विरोध न करना पाप का परोक्ष समर्थन

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