रविवार, 5 जून 2011

अखण्ड ज्योति सितम्बर 1972

1. अन्तःकरण में ईश्वर का दर्शन

2. समुद्री लहरों की तरह हमारा जीवन उछले, गरजे और आगे बढ़े

3. मृदुलता और कठोरता से ओत-प्रोत मानवी काया

4. शान्ति बाहर नहीं-भीतर खोजनी पड़ेगी

5. पृथ्वी का ओर छोर-बनाम जीवन का आदि अन्त

6. दर्शन पर्याप्त नहीं, भगवान को साथी और सेवक बनायें

7. चुम्बक और मानवीय प्रकृति का सादृश्य

8. सुख भगवान की दया, दुःख उनकी कृपा

9. मरने के बाद भी आत्मा का अस्तित्व रहता हैं

10. आलोचना से डरे नहीं, उसके लिए तैयार रहें

11. हारमोन स्त्रावों का उद्गम अन्तःचेतना से

12. शरीरगत विद्युत शक्ति को सुरक्षित रखें-बढ़ायें

13. हम ईश्वर के होकर रहें-उसी के लिए जियें

14. मस्तिष्कीय स्तर मोड़ा और मरोड़ा जा सकता हैं

15. प्रतिविश्व-प्रतिपदार्थ-शक्ति का अजस्र स्रोत

16. तीन महीने के प्रशिक्षण का संक्षिप्त सत्र

17. परमेश्वर का निराकार और साकार स्वरूप

18. ‘‘सांस मत लो-इस हवा में जहर हैं’’

19. दिव्य अग्नि का अभिवर्धन उन्नयन

20. परमार्थ के लिए अपने को खतरे में डालने वाले

21. हम सोमरस पियें-अजर अमर बनें

22. संसार में त्रिविध कष्ट और उनका निवारण

23. साहसी पक्षी-जिन्हें पुरूषार्थ के बिना चैन नहीं

24. अस्वस्थता की टहनी नहीं, जड़ उखाड़ें

25. जीवन तत्व की गंगोत्री-प्राणशक्ति

26. अन्तःकरण को पवित्र बनाने की प्रभु प्रार्थना

27. अपनो से अपनी बात

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