रविवार, 5 जून 2011

अखण्ड ज्योति मार्च 1972

1. संकीर्णता के सीमा बंधन से छुटकारा पाये

2. ललचा मत-आगे बढ़

3. क्या मैं शरीर ही हूँ-उससे भिन्न नहीं ?

4. प्रेम में न शिकायत की गुंजायश हैं, न असफलता की

5. मानवी काया काँच की नहीं, अष्ट धातु से बनी हैं

6. युग परिवर्तन को असंभव न माना जाय

7. पंचशील

8. अनास्था हमें प्रेत-पिशाच बना देगी

9. शारीरिक विद्युत और उसका अद्भुत उपयोग

10. हरितिमा और सूर्य किरणों में जीवन तत्व

11. भूतकालीन प्रतिपादनों के लिए दुराग्रह न करे

12. समाज का ऋ़ण चुकाना ही श्रेयस्कर

13. मृतात्माओं का सम्पर्क सान्निध्य-एक तथ्य

14. श्रवण शक्ति की दिव्य क्षमता और उसका विकास

15. अपने दोषों को स्वीकारें और सुधारे

16. चुम्बकत्व व्यक्ति और विश्व का आधार

17. हम अन्य प्राणियों को भी बौद्धिक उत्कर्ष में सहयोग प्रदान करे

18. श्री रामकृष्ण परमहंस की सारगर्भित शिक्षायें

19. शिक्षा ही नहीं ‘विद्या’ भी परिष्कृत की जाय

20. साधुवेश की मर्यादा

21. हवा में महल और आधी रात में सूर्य

22. तितीक्षा ही हमें सुदृढ़ बनाती हैं

23. कुण्डलिनी-दो शक्तिशाली धु्रव केन्द्रो की अधिष्ठात्री

24. अपनो से अपनी बात

25. अखण्ड जप और कन्यायें

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