गुरुवार, 2 जून 2011

अखण्ड ज्योति दिसम्बर 1971

1. व्यर्थ का उलाहना

2. सत्य में ही सर्वस्व सन्निहित

3. मनुष्य महान् हैं और उससे भी महान् उसका भगवान्

4. कर्ता बिना कर्म कैसे हो सकता हैं ?

5. मन एक सूक्ष्म प्राकृतिक शक्ति

6. पुनर्जन्म की मान्यता-प्रामाणिकता की कसौटी पर

7. सच्ची साधना

8. प्रेम की सृजनात्मक शक्ति

9. जलवायु के आधार पर भी जीवित रहा जा सकता हैं

10. जीव जन्तुओं से भी कुछ सीखें

11. मात्र संयोग ही नहीं-अदृश्य सहयोग भी

12. स्थूल शरीर की तरह ही सूक्ष्म शरीर का भी ध्यान रखे

13. मुट्ठी में मौत और जेब में जीवन

14. कौन है वह प्रेरक शक्ति ?

15. प्रेम तत्व-वैज्ञानिक विश्लेषण और उसका महान् महत्व

16. अवान्छनीय बन्धनो से मुक्त होने की आवश्यकता

17. क्षात्र बल की पराजय

18. सत्तर लाख मौतें बच सकती हैं

19. औषधियों का अन्धाधुन्ध प्रयोग और उसका दुष्परिणाम

20. हिमालय के अमर आदम

21. सिद्धे बिन्दु महायत्ने, किं न सिद्धयति भूतले

22. युग परिवर्तनकारी सत्ता का प्राकट्य

23. चेतना की प्रचण्ड ज्योति ज्वाला-कुण्डलिनी

24. अपनो से अपनी बात

25. आत्म-भाव की शक्ति

26. मत रचो गीत दरबारों के

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