रविवार, 17 अप्रैल 2011

उपहार

भारतीय संस्कृति संदेशो से भरी हैं। कोई भी वार-त्योंहार हो अथवा फिर रंग या सम्बन्ध.....वह कोई ना कोई संदेश देता हैं। यह संदेश ही हैं जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलते हैं और संस्कृति तथा सम्बन्धों को जिंदा रखते हैं। ऐसा ही सम्बन्ध गुरू और शिष्य का हैं। गुरू-शिष्य परम्परा में भी न धर्म बीच में आता हैं न जाति। ऐसे ही एक सम्बन्ध में गुरू-शिष्य भले अलग-अलग धर्म से रहे, लेकिन होली और दीपावली हो या फिर ईद, वे हमेशा एक-दूसरे के साथ होते। कभी भौतिक रूप से कभी भेंट के माध्यम से, वर्ष पर वर्ष निकलते गए, लेकिन सिलसिला जारी रहा। दीपावली पर गुरू ने शिष्य को आशीर्वचन का जो पत्र लिखा व सम्पूर्ण समाज के लिए एक संदेश हैं। गुरू ने लिखा-‘‘दीपावली का सुन्दर उपहार मिला-शुक्रिया। खुदा आप सब को खुश रखे-आमीन- गुलाब अब तो हमारा सन्यास आश्रम हैं कुछ भेजा करो तो पौधा भेज दिया करो। अब चीजों की सार-संभाल नहीं होती। फिर आप लोगो का प्यार और अपनापन हमारे लिए अमूल्य हैं। संबल हैं। शक्ति हैं। खुदा आप सबको बनाए रखे, आमीन’’।

यूं देखे तो पत्र में बात कुछ नहीं हैं पर बात बहुत बड़ी हैं। एक उम्र तक सब चीजे काम आती हैं लेकिन जब वो चीज काम नहीं आए फिर उसके संचय से क्या लाभ ? तब हमें ऐसी चीजों के बारे में सोचना चाहिए जो सबके, पीढि़यों के काम आए। इसमें पेड़-पौधे से ज्यादा उपयोगी कुछ नहीं है। त्योहार ही नहीं, जन्मदिन-वर्षगांठों पर भी हमें मानव जगत को ऐसी भी भेंट देनी चाहिए। 

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