मंगलवार, 12 अप्रैल 2011

मिजाज में घेलिए मिठास

1. बच्चे भविष्य देखते हैं, युवक वर्तमान पर नजर रखते हैं और बूढ़े अतीत को झाँकते रहते हैं। यदि बूढ़े लोग अतीत की बजाय भविष्य देखना शुरू कर दें, तो उनका ढलता जीवन भी ऊर्जा, उत्साह और उमंग से भर जाए। 
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2. मन यदि स्वस्थ और अच्छी अवस्था में हो, तो दुख में भी दीवाली हैं, पर मन यदि क्रोध, चिन्ता, अवसाद से घिरा हैं, तो सुख में भी सुलगती होली हैं। अपने मन की दशा को ठीक कीजिए, मुस्कुराइए और मन को सकारात्मक बनाइए। आपके लिए अभी से दीवाली के दीये जलने शुरू जाएँगे। 

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3. हर महान जीवन की शुरूआत किसी छोटे-से सद्गुण से होती है। मकान कितना भी बड़ा क्यों न हो, उसका प्रवेश-द्वार छोटा ही होता हैं। प्रारम्भ में हर सद्गुण छोटा लगता हैं, पर जब उस सद्गुण का प्रकाश जीवन में फैलने लगता हैं, तो वही सद्गुण व्यक्ति की महानता का आधार बन जाता है। 

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4. पता नहीं, मन की यह कैसी विडंबना हैं कि हमें दूर रहने वालें के तो गुण ही गुण दिखाई देते हैं, पर पास में रहने वालों की सदा कमियाँ ही नजर आती हैं। यदि हम पास में रहने वालों के भी गुण देखना शुरू कर दे तो दूर रहने वालों की यादों में खोए रहने की जरूरत ही नहीं रहेगी। 

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5. क्रोध का जवाब क्रोध से देना प्रतिक्रिया हैं, पर क्रोध को जवाब प्रेम से देना समाधि का आनन्द हैं। प्रतिक्रिया अब तक खूब की हैं, चलो अब समाधि-भाव अपनाएँ। मन को समझाएँ- हे जीव ! तू कब तक यों ही क्रोध करता रहेगा। अब तो शान्त हो। 

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6. क्रोधी व्यक्ति घर वालों के द्वारा भी नापसंद किया जाता हैं, पर शान्त और स्नेहिल व्यक्ति घर के बाहर भी लोकप्रिय हो जाता हैं। क्रोध तो लुहार के हथौड़े जैसा होता हैं-एक ही चोट और दो टुकड़े। प्रेम सुनार की हथौड़ी जैसा होता हैं-हल्की ठोका-ठोकी और आभूषण तैयार। हथौड़ी बनिए, पर लुहार की नहीं, सुनार की। 

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7. कोई व्यक्ति कुआ खोदे, पर पानी निकले ही निकले यह कोई जरूरी नहीं है। पर यदि आप दूसरों पर प्रेम सरसराते हैं और उसका कोई शुभ परिणाम न निकले यह सम्भव नहीं है। प्रेम से बोलिए, प्रेम से मिलिए, प्रेमभरा उपहार दीजिए, आपके पास सौ गुना होकर लौटेगा। 

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8. वृक्ष की मुख्य चीज जड़ हैं, पंछी की मुख्य चीज पंख हैं, पशु की मुख्य चीज पेट है और मनुष्य-जीवन की मुख्य चीज विवेक हैं। यदि हम अपनी वृत्ति, वाणी और व्यवहार में विवेक नहीं रखते हैं तो फिर हम सींग मारने वाले साँड और फुफकारने वाले साँप नहीं हैं तो और क्या हैं ?

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9. किसी को बुरा मत बोलिए और किसी को अच्छा बोले बगैर मत रहिए। आलोचना एक ऐसा जहर हैं जिसे कोई पीना नहीं चाहता और प्रशंसा एक ऐसा माधुर्य हैं जिसे हर कोई पीना पसन्द करता हैं। जो लोग जिसे पसन्द करते हैं, उन्हें वही पिलाइये न्।

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10. जब फटे हुए दूध से रसगुल्ला बनाया जा सकता हैं, तो टूटे हुए रिश्तों को फिर से क्यों नहीं साँधा जा सकता। पहल यदि सकारात्मक हो, तो बंजर भूमि में भी फूल खिलाए जा सकते हैं। मोबाइल उठाइये और खुद आगे बढ़कर फोन कीजिए, आपसी तनाव कम होगा। 

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साभार-सम्बोधि टाइम्स, संतप्रवर श्री चन्द्रप्रभ जी। 

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