सोमवार, 21 फ़रवरी 2011

चौबीस अक्षरों का शक्तिपुंज

गायत्री के नौ शब्द महाकाली की नौ प्रतिमाएँ हैं, जिन्हें आश्विन की नवदुर्गाओं में विभिन्न उपचारों के साथ पूजा जाता है । देवी भागवत में गायत्री को तीन शक्तियों-ब्राह्मणी, वैष्णवी, शांभवी के रूप में निरूपित किया गया है और नारी-वर्ग की महाशक्तियों को चौबीस की संख्या में निरूपित करते हुए उनमें से प्रत्येक के सुविस्तृत महात्म्यों का वर्णन किया है ।
 
गायत्री के चौबीस अक्षरों का अलंकारिक रूप से अन्य प्रसंगों में भी निरूपण किया गया है । भगवान् के दस ही नहीं, चौबीस अवतारों का भी पुराणों में वर्णन है । ऋषियों में सप्त ऋषियों की तरह उनमें से चौबीस को प्रमुख माना गया है-ये गायत्री के अक्षर ही हैं । देवताओं में से त्रिदेवों की ही प्रमुखता, है पर विस्तार में जाने पर पता चलता है कि वे इतने ही नहीं वरन् चौबीस की संख्या में भी मूर्द्घन्य प्रतिष्ठा प्राप्त करते रहे हैं । महर्षि दत्तात्रेय ने ब्रह्माजी के परामर्श से चौबीस गुरूओं से अपनी ज्ञान-पिसासा को पूर्ण किया था । ये चौबीस गुरू प्रकारांतर से गायत्री के चौबीस अक्षर ही हैं । 

सौरमंडल के नौ ग्रह हैं । सूक्ष्म-शरीर के छह चक्र और तीन ग्रंथि-समुच्चय विख्यात हैं, इस प्रकार उनकी संख्या नौ हो जाती है । इन सबकी अलग-अलग अभ्यर्थनाओं की रूपरेखा साधना-शास्त्रों में वर्णित हैं । गायत्री को नौ शब्दों की व्याख्या में निरूपित किया गया है, इनमें किस पक्ष की, किस प्रकार साधना की जाए तो उसके फलस्वरूप किस प्रकार उनमें सन्निहित दिव्यशक्तियों की उपलब्धि होती रहे । अष्टसिद्घियों और नौ निधियों को इसी परिकर के विभिन्न क्षेत्रों की प्रतिक्रिया समझा जा सकता है । 

अतींद्रिय क्षमताओं के रूप में परामनोविज्ञानी मानवीय सत्ता में सन्निहित जिन विभूतियों का वर्णन-निरूपण करते हैं, उन सबकी संगति गायत्री मंत्र के खंड-उपखंडों के साथ पूरी तरह बैठ जाती है । देवी भागवत सुविस्तृत उपपुराण है । उसमें महाशक्ति के अनेक रूपों की विवेचना तथा श्रंखला है । उसे गायत्री की रहस्यमय शक्तियों का उद्घाटन ही समझा जा सकता है । ऋषियुग के प्रायः सभी तपस्वी गायत्री का अवलंबन लेकर ही आगे बढ़े हैं । मध्यकाल में भी ऐसे सिद्घ-पुरूषों के अनेक कथानक मिलते हैं, जिनमें यह रहस्य सन्निहित है कि उनकी सिद्घियाँ-विभूतियाँ गायत्री पर ही अवलंबित हैं । 

यदि इन्हीं दिनों इस संदर्भ में अधिक जानना हो तो अखण्ड ज्योति संस्थान, मथूरा द्वारा प्रकाशित गायत्री महाविज्ञान के तीनों खण्डो का अवगाहन किया जा सकता हैं, साथ ही यह भी खोजा जा सकता है कि ग्रंथ के प्रणेता ने सामान्य व्यक्तित्व और स्वल्प साधन होते हुए भी कितने बड़े और कितने महत्वपूर्ण कार्य कितनी बड़ी संख्या में संपन्न किए हैं । उन्हें कोई समर्थ व्यक्ति, यों पाँच जन्मों में या पाँच शरीरों की सहायता से ही किसी प्रकार संपन्न कर सकता है । 

अन्यान्य धर्मों में अपने-अपने संप्रदाय से संबंधित एक-एक ही प्रमुख मंत्र है । भारतीय धर्म का भी एक ही उद्गम-स्त्रोत है-गायत्री । उसी के विस्तार के रूप में-पेड़ के तने, टहनी, फल-फूल आदि के रूप में-वेद, शास्त्र,पुराण, उपनिषद्, स्मृति, दर्शन, सूक्त आदि का विस्तार हुआ है । एक से अनेक और अनेक से एक होने की उक्ति गायत्री के ज्ञान और विज्ञान से संबंधित-अनेकानेक दिशाधाराओं से संबंधित-साधनाओं की विवेचना करके विभिन्न पक्षों को देखते हुए विस्तार के रहस्य को भली प्रकार समझा जा सकता है । 
-युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य 

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