शनिवार, 1 जनवरी 2011

जीव गोस्वामी एवं रूप गोस्वामी

जीव गोस्वामी एवं रूप गोस्वामी चैतन्य महाप्रभु के संपर्क में आए। सब कुछ बदल गया। चिंतन में भगवत्ता का समावेश हो गया। वे गौड़ देश के नवाब के यहां काम करते थे। बड़े काम के आदमी थे। सल्तनत वास्तव में वे ही चलाते थे। नवाब से उन्होंने छुट्टी मांगी। उसने नहीं दी। उसने कहा कि पूरा राज्य कार्य ठप्प हो जाएगा। नहीं माने तो दोनों को जेल में डाल दिया गया। वहीं उनका कार्यालय स्थानांतरित कर उनसे काम करने को कहा गया। वहां भी वे काम करते, पर भगवन्नाम स्मरण नहीं भूलते। यह कहा जाए कि सोते ही नहीं थे, मात्र संकीर्तन करते थे। उन्हें सहज ही आभास हुआ कि महाप्रभु स्वयं जेल में आए और उनसे बोले-‘‘हठ ना करो, जो कर रहे हो, करते रहो। कर्म छूटेगा, स्वाभाविक रूप से कर्म करते-करते पकेगा, झड़ेगा।’’ ऊपर से तो वे कर्म करते, पर उनकी समाधि सहज ही लग जाती। काम पूरा निपटाते थे। मन में संसार था ही नहीं। नवाब को दया आ गई। सन्यास के लिए उसने आज्ञा दे दी एवं मुक्त कर दिया। ऐसे व्यक्ति योगी होते हैं, जो इंद्रियों से तो आचरण करते हैं पर भाव से निष्काम योगी का जीवन जीते हैं।

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