शनिवार, 1 जनवरी 2011

सारा खेल भावनाओं का है।

दो मित्र थे। एक तो दिन भर परिश्रम कर पेट भरता था, दूसरा मात्र चार घंटे जमकर मेहनत करता, शेष समय औरो की सेवा मे व साधना, स्वाध्याय मे लगाता। पहला व्यक्ति तो क्षीणकाय होता चला गया। दूसरा पूरे नगर मे प्रसिद्व, स्वस्थ व समद्ध भी होता चला गया। एक दिन दोनो की भेंट हुई । दूसरे ने पूछा - ‘‘तू तो दिनभर मेहनत करता है, फिर भी शरीर दुबला पतला ही है और मै मात्र चार घंटे जमकर मेहनत करता हूं। व्यायाम भी करता हूं तो तुझ से ज्यादा शक्तिशाली हूं। क्या बात है ? फिस उसने पूछा अच्छा एक बात बताओ, तुम मेहनत करते हो तो तुम्हारे मन मे क्या होता है।’’ उसने कहा-‘‘ मेरा ध्यान तो पैसा कमाने मे ही लगा रहता है।’’ दूसरा मित्र बोला-‘‘यही कारण है कि जब तक तुम उधर से मन हटाकर निश्चिंत भाव से परिश्रम नही करोगे, और की सेवा नहीं करोगे तो ऐसे ही बने रहोगे। हमेशा यह सोचो कि मेरी ताकत बढ़ रही है।’’ ऐसा ही हुआ और वह मित्र भी उसके समान होता चला गया। सारा खेल भावनाओं का है।

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