रविवार, 16 जनवरी 2011

आत्मज्ञान

आत्मज्ञानी संत एक गांव में पहुँचे। एक युवक आत्मज्ञान पाने के लिए उस संत की कुटिया में दौडा-दौड़ा पहुँचा। उसने जूतों को साइड में पटका, धड़ाम से दरवाजा खोला और संत को प्रणाम करते हुए कहने लगा- मुझे आत्मज्ञान देने की कृपा कीजिए। संत ने उसे भलीभाँति देखा और कहा-पहले जूतों की व्यवस्थित रखकर आओ और दरवाजे से माफी मांगो। उसने कहा-भला आत्मज्ञान का जूतों और दरवाजे से क्या संबंध ? संत ने कहा-जो व्यक्ति अपने जूतों तक को सही ढंग से उतारना नहीं जानता और दरवाजे को भी आदरपूर्वक नहीं खोलता वह भला आत्मज्ञान पाने का उत्तराधिकारी कैसे बन पाएगा और ऐसा व्यक्ति आत्मज्ञान प्राप्त भी कर लेगा तो कौनसा तीर मार लेगा।

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