सोमवार, 3 जनवरी 2011

बहुमूल्य ज्ञान

प्यासा मनुष्य अथाह समुद्र की ओर यह सोचकर दौड़ा कि महासागर से जी भर अपनी प्यास बुझाउगा। वह किनारे पहुँचा और अंजलि भरकर जल मुह में डाला, किंतु तत्काल ही बाहर निकाल दिया। 

प्यासा असमंजस में पड़कर सोचने लगा कि सरिता सागर से छोटी हैं, किन्तु उसका पानी मीठा हैं। सागर सरिता से बहुत बड़ा हैं, पर उसका पानी खारा हैं। 

कुछ देर बाद उसे समुद्र पार से आती एक आवाज सुनाई दी-‘‘सरिता जो पाती है, उसका अधिकांश अंश बाटती रहती हैं, किंतु सागर सब कुछ अपने में ही भरे रखता हैं। दूसरों के काम न आने वाले स्वार्थी का सार यों ही निस्सार होकर निष्फल चला जाता हैं।’’ आदमी समुद्र के तट से प्यासा लौटने के साथ एक बहुमूल्य ज्ञान भी लेता गया, जिसने उसकी आत्मा तक को तृप्त कर दिया।

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