बुधवार, 12 जनवरी 2011

साँसो के समुद्र में डूबते जाइए।

1. स्वयं की आध्यात्मिक सच्चाइयों से रू-ब-रू होने का मार्ग हैं ध्यान। ध्यान धर्म भी हैं, विज्ञान भी। यह व्रत भी हैं और विकास का द्वार भी।
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2. ध्यान वह विज्ञान हैं जिससे अशांति, उद्वेग, आक्रोश और विकारों से घिरे मन का समाधान निकल सकता हैं। 

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3. ध्यान क्रिया नहीं हैं। यह सारी क्रियाओं के शान्त होने पर घटित होता हैं।

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4. सचेतन प्राणयाम ध्यान का प्रवेश द्वार हैं। साँसो को शांत गति से गहराई देते चलना प्राणायाम हैं। 

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5. प्राणायाम करते समय साँसों का मूल्यांकन मत कीजिए। बस, गहरी साँस लीजिए, लेते रहिए। साँसो के समुद्र में डूबते जाइए। साँस धीरे-धीरे स्वतः लयबद्ध और शांत होती जाएगी। श्वास रहित स्थिति घटित होते ही ध्यान की अन्तर-दशा प्रगट हो जाएगी।

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6. साँस सेतु हैं स्वयं की अन्तस् चेतना तक पहुँचने का। चेतना स्वयं साँस लेती हैं। साँस, शरीर और मन में एकलयता लाने के लिए सचेतन साँस लीजिए या सोहम्-भीतर उतरती साँस के साथ सो और बाहर निकलती साँस के साथ ऽहम् की स्मृति बनाए रखिए।

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7. चित्त की शांत और निर्मल स्थिति ही ध्यान हैं, ध्यान कब किस क्षण घटित होगा, कहा नहीं जा सकता। ज्यों-ज्यों ध्यान का अभ्यास गहरा होता जाएगा, ध्यान हमारा सहचर होता जाएगा।

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8. प्रयासपूर्वक किया गया ध्यान एकाग्रता हैं, अनायास घटित होने वाली एकाग्रता ध्यान हैं। अध्ययन एक तरह का मौन हैं, शांति हैं, आनंद हैं, बोध हैं। जब हम आनंद में होते हैं, तब हम अपने अस्तित्व में ही होते हैं।

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9. ध्यान बुद्धि की गुफा में प्रवेश हैं। हम बुद्धि की गुफा में प्रवेश करने से पूर्व हृदय के द्वार खोले। हृदय सत्य का द्वार रहित द्वार हैं। हम साँसो के जरिए हृदय में उतरते जाएँ, दोनो काँखों के मध्य क्षेत्र में व्याप्त होते जाएँ।

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10. हृदय शांति का धाम हैं। वहाँ स्वर्ग जैसी शांति हैं। स्वर्ग का रास्ता वास्तव में हृदय से ही खुलता हैं। ध्यान- आनंद, आह्लाद और अहोभाव का अनुभव हैं। यह फूलों की खिलावट की तरह है। साक्षीत्व ध्यान की आत्मा हैं। ध्यान में हम थोडे़-थोडे नहीं जा सकते। इसमें जब भी प्रवेश होता हैं समग्रता से होता हैं। 

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11. ध्यान में जीने वाले महल में रहे या जंगल में, इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। वे संसार के प्रति प्रेम और करूणा से भर उठते हें। वे जहाँ होते हैं उनकी शांति और दिव्यता से वातावरण चार्ज रहता है।

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12. ध्यान को सरलता से जीने के लिए क्यों न अपने हर कार्य को ध्यानपूर्वक करने की आदत डाली जाएं ध्यानपूर्वक खाइए, ध्यानपूर्वक कार चलाइए, ध्यानपूर्वक दाढ़ी बनाइए और ध्यानपूर्वक सोइए। ध्यान को हर क्रिया के साथ जोड़िए, ध्यान हमें हर क्रिया का आध्यात्मिक परिणाम देगा।

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13. ध्यान की एक बैठक 30 मिनट की कीजिए, एकांत-शांत वातावरण में बैठिए, बाहर-भीतर से मौन और अन्तरलीन होते जाइए, ध्यान का आभामण्डल आपको स्वतः आनंदित और सत्यबोध से भरता जाएगा।
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साभार- संबोधि टाइम्स, संतप्रवर श्री चन्द्रप्रभ जी

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