रविवार, 16 जनवरी 2011

मन की निर्मलता

शिकागो में विवेकानन्द के तेज को देखकर एक युवती उन पर मोहित हो गई। वह उनसे मिलने गई और एकांत देखकर कहने लगी- स्वामीजी, मैं आप जैसे एक तेजस्वी पुत्र की माँ बनना चाहती हूँ। क्या आप मेरी यह इच्छा पूरी कर सकते हैं ? विवेकानन्द ने युवती से कहा- भारतीय संत अपने द्वार पर आए किसी को भी कभी खाली हाथ नहीं लौटाते। मैं तुम्हारी यह इच्छा अभी पूरी कर देता हूँ। लो तुम मुझे ही आज से अपना बेटा मान लो। इसे कहते है। मन का संयम।

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