शनिवार, 1 जनवरी 2011

सुकरात

सुकरात के विरोधियों ने उन पर नास्तिकता फैलाने का आरोप लगाया। उन्होनें कहा कि यह युवाओं में देवताओं के प्रति श्रद्धाभाव मिटाने का प्रयास कर रहा हैं। वह किसी भी देवता में विश्वास नहीं करता। सुकरात ने अदालत में कहा-‘‘मैं दिव्य शक्तियों में विश्वास रखता हू तो देवताओं के अस्तित्व को कैसे नकार सकता हूं। विद्वेषवश ही मेरे खिलाफ आरोप लगाए गए हैं। मेरे जैसे अनगिनत इन्हीं कारणों से पहले भी मारे जाते रहे हैं, पर सत्य सत्य ही रहेगा। बाह्य कर्मकांड की मैं उपेक्षा नहीं करता, पर उनकी आध्यात्मिकता को समझे बिना उन्हें करना मूर्खता मानता हू। यदि मेरे ऐसे उपदेश किसी को बुरे लगते हों तो मुझे मृत्युदंड मिलना चाहिए, पर मनुष्य सदा से अमर रहा हैं, अमर रहेगा। उसकी आत्मा को कोई नहीं मार सकता।’’ भारतीय दर्शन से पूरी तरह प्रभावित गीता के मर्म को भरी सभा में सुनाने वाले सुकरात को जहर का प्याला दे दिया गया, पर उससे हुआ क्या-सुकरात हमेशा के लिए अमर बन गए। 
ऐसे त्याग-बलिदान वालों ने ही तो संस्कृति को जिंदा रखा हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

LinkWithin

Blog Widget by LinkWithin