शनिवार, 4 दिसंबर 2010

आतंक का कारण आंतरिक पशुता: ओशो

दुनिया भर में बढ़ रहे आतंकवाद और हिंसा के बारे में पिछली शताब्दी के बेहद चर्चित दार्शनिक एवं आध्यात्मिक शख्सियत ओशो रजनीश का मानना है कि आतंकवाद का मूल कारण मनुष्य के मन में पल रहे स्वार्थ और लोभ जैसी पशुताएँ हैं और इनको दूर किए बिना इस विश्वव्यापी समस्या का निराकरण नहीं है।

ओशो का मानना था कि यदि मनुष्य में ध्यान के जरिए प्रेम और करुणा के फूल खिलाए जाएँ तो मानव के अवचेतन में छिपी हिंसा को दूर किया जा सकता है। इसी के साथ वह उत्सव प्रियता पर भी बहुत जोर देते हैं, क्योंकि उनके अनुसार धर्मों ने मनुष्य से उसकी उत्सव प्रियता को छीन लिया है।

ओशो वर्ल्ड पत्रिका के वरिष्ठ संपादक चैतन्य कीर्ति ने आतंकवाद पर ओशो के विचारों की चर्चा करते हुए कहा कि उनका मानना है कि आज समाज में हिंसा और आतंक इसलिए बढ़ गया है क्योंकि आदमी होश में नहीं जी रहा है। आदमी पशु है क्योंकि वह स्वार्थ और लोभ की भावना से प्रेरित होकर अन्य मनुष्य पर आक्रमण करने में संकोच नहीं करता।

उन्होंने कहा कि पशु का अर्थ है पाश यानी स्वार्थ से बंधा व्यक्ति। ओशो ने कहा आतंकवाद बमों में नहीं, किसी के हाथों में नहीं वह तुम्हारे अवचेतन में हैं यदि इसका उपाय नहीं किया गया तो हालत बद से बदतर हो जाएँगे।

विभिन्न धर्मों में बढ़ती कट्टरता के बारे में ओशो के विचार पूछने पर स्वामी चैतन्य कीर्ति ने कहा कि ओशो ने जीवन भर पंडित, मुल्ला, मौलवियों और पादरियों का कठोर विरोध किया था क्योंकि वे सब धर्म की एक खास व्याख्या पर जोर देते हैं। ओशो कहा करते थे कि विभिन्न भगवानों के बीच कोई लड़ाई नहीं है, लेकिन उनके अनुयायियों के बीच लड़ाई ही लड़ाई है। 

नव संन्यास, डायनेमिक मेडिटेशन और संभोग से समाधि तक जैसी कई अवधारणाएँ देने वाले ओशो अपनी तमाम प्रखर बौद्धिक क्षमताओं के बावजूद जीवन भर विवादों के घेरे में रहे। विवादों के बावजूद उनके जीवन काल में दुनिया भर में उनके अनुयायियों की संख्या लगातार बढ़ती रही।

दिलचस्प है कि ओशो की शख्सियत पूरी तरह बौद्धिक थी लेकिन उनके विरोधी उनके निजी बिन्दुओं पर जीवन भर उनका विरोध करते थे। तमाम व्यक्ति ही नहीं दुनिया की महाशक्ति अमेरिका की सरकार भी एक समय उनकी विरोधी हो गई और उन्हें अंतत: देश से निर्वासित करके ही दम लिया।

यही नहीं ओशो ने जब अन्य देशों से शरण माँगी तो दुनिया के 21 राष्ट्रों ने उन्हें पनाह देने से इनकार कर दिया। 

क्या आप पति को प्रेम दे रही हैं ? ओशो

क्या आप पति को प्रेम दे रही हैं ?  ओशो
एक और प्रश्न पूछा हुआ है, बहुत महत्वपूर्ण, पूछा है कि पत्नी की इच्छा के विरुद्ध, जब पति शारीरिक उपभोग करने के लिए बाध्य करते हैं, तो स्त्री की मानसिक हालत विक्षिप्त हो जाती है। उस तनावपूर्ण स्थिति में औरत का क्या कर्तव्य हो सकता है ?

अगर पति जबरदस्ती ले जाता है काम-उपभोग में, तो ठीक काम-उपभोग के क्षण में, ठीक इंटरफोर्स के क्षण में अपने मन में पूरी प्रार्थना करें कि पति के जीवन में शांति हो, पति के जीवन में प्रेम हो। उस क्षण में पत्नी और पति की आत्माएँ अत्यंत निकट होती हैं, अत्यंत निकट होती हैं। उस क्षण में पत्नी के मन में जो भी उठेगा वह पति के मन तक संक्रमित हो जाता है।

और भी बहुत सी बहनें हैं मुझे निरंतर पूछती हैं, बहुत स्त्रियों के जीवन में प्रश्न होगा। लेकिन शायद इस बात को कभी भी नहीं सोचा होगा कि पति के मन में कामेच्छा की बहुत प्रवृत्ति का पैदा होना किस बात का सबूत है। वह इस बात का सबूत है कि पति को प्रेम नहीं मिल रहा है।

यह सोचकर, शायद यह सुनकर हैरानी होगी जो पत्नी अपने पति को जितना ज्यादा प्रेम दे सकेगी, उस पति के जीवन में सेक्सुअल डिजायर उतनी ही कम हो जाएगी। शायद यह कभी आपके खयाल में न आया हो। जिन लोगों के जीवन में जितना प्रेम कम होता है उतनी ही ज्यादा कामेषणा और सेक्सुअलिटी होती है। जिस व्यक्ति के जीवन में जितना ज्यादा प्रेम होता है उतना ही उसके जीवन में सेक्स नहीं होता, सेक्स धीरे-धीरे क्षीण होता चला जाता है।

तो पत्नी के ऊपर एक अद्भुत कर्तव्य है, पति के ऊपर भी है। अगर पत्नी को लगता है कि पति बहुत कामातुर, कामेच्छा से पीड़ित होता है और उसे ऐसे उपभोग में ले जाता है, जहाँ उसका चित्त दुखी होता है, शांति नहीं पाता, कष्ट पाता है और विक्षिप्तता आती है, पागलपन आता है, घबड़ाहट आती है तो उसे जानना चाहिए कि पति के प्रति उसका प्रेम अधूरा होगा। वह पति को और गहरा प्रेम दे, वह इतना प्रेम दे कि प्रेम पति को शांत कर दे। जिस पति को प्रेम नहीं मिलता उसके भीतर अशांति घनीभूत होती है। और उस अशांति के निकास के लिए, रिलीज के लिए सिवाय सेक्स के और कुछ भी नहीं रह जाता। दुनिया में जितना प्रेम कम होता जा रहा है उतनी सेक्सुअलिटी बढ़ती जा रही है, उतनी कामोत्तेजना बढ़ती जा रही है। अगर पत्नी पति को परिपूर्ण प्रेम दे.

एक बहुत पुराने ऋषि ने एक अद्भुत बात कही है। एक बहुत पुराने ऋषि को एक घर में आमंत्रित किया गया था। नया विवाह हुआ था और लड़की विदा हो रही थी। उस ऋषि ने उस लड़की को आशीर्वाद दिया कि मैं तुझे आशीर्वाद देता हूँ कि तेरे दस पुत्र हों और अंत में तेरा पति भी तेरा ग्याहरवाँ पुत्र हो जाए।

स्त्री घबड़ा गई, उसके प्रियजन घबड़ा गए कि यह ऋषि ने क्या कहा! तो पूछा कि इसका अर्थ?

उसने कहा कि तू पति को इतना प्रेम करना, इतना प्रेम करना कि पति के प्रति तेरा प्रेम, तेरे प्रेम की पवित्रता, तेरे प्रेम की प्रार्थना पति के भीतर से सेक्स को विलीन कर दे और वह एक दिन तेरे पुत्र जैसा हो जाए। जीवन की सार्थकता और दांपत्य की परिपूर्ण निष्पत्ति तभी है जब पत्नी अंततः पाए कि पति भी उसका पुत्र हो गया है, वह उसकी माँ हो गई है।

गाँधी लंका गए थे। वहाँ किसी ने भूल से, बा भी उनके साथ थीं, किसी ने भूल से उनका परिचय दिया और कह दिया कि गाँधी भी आए हैं और बड़े सौभाग्य की बात है, उनकी माँ बा भी आई हैं।

बा भी घबड़ा गईं, गाँधी के साथी भी सब परेशान हुए कि यह तो हमारी भूल हो गई, पहले बताना था। फिर गाँधी बोलने ही बैठ गए थे तो कोई उपाय न था।

लेकिन गाँधी ने क्या कहा? गाँधी ने कहा कि किसी मित्र ने परिचय देते वक्त भूल से सच्ची बात कह दी है। बा पहले मेरी पत्नी थी, इधर दस वर्षों से मेरी माँ हो गई है। जो पत्नी पति की माँ न बन जाए अंततः, जानना चाहिए उसका जीवन व्यर्थ गया।

प्रेम जितना घनीभूत होगा, प्रेम जितना गहरा होगा, उतना ही पवित्र होता चला जाता है, उतना ही सेक्स विलीन हो चला जाता है, एक बात।

दूसरी बात... यह तो लंबी प्रक्रिया से होगा... लेकिन पूछा है, पति अगर जबरदस्ती करे, तो आज ही तो यह नहीं हो सकता, आज क्या होगा? इस क्षण क्या हो सकता है? पति अगर जबरदस्ती करे और काम-उपभोग में ले जाए तो स्त्री क्या करे?

मेरा मानना है- इसे प्रयोग करें, समझें और सोचें- अगर पति जबरदस्ती ले जाता है काम-उपभोग में, तो ठीक काम-उपभोग के क्षण में, ठीक इंटरकोर्स के क्षण में अपने मन में पूरी प्रार्थना करें कि पति के जीवन में शांति हो, पति के जीवन में प्रेम हो। ठीक उस क्षण में प्रार्थना करें अपन मन में। उस क्षण में पत्नी और पति की आत्माएँ अत्यंत निकट होती हैं, अत्यंत निकट होती हैं। उस क्षण में पत्नी के मन में जो भी उठेगा वह पति के मन तक संक्रमित हो जाता है। अगर उस क्षण में यह प्रार्थना की है कि पति के जीवन में शांति और प्रेम हो, सेक्स क्षीण हो, कामोत्तेजना क्षीण हो, उसके मन के विकार गिरें, अगर पत्नी ने यह बहुत प्रेमपूर्ण प्रार्थना की है, इसके फल तत्क्षण दिखाई पड़ने शुरू हो जाएँगे। क्योंकि उस क्षण पति और पत्नी दो शरीर ही होते हैं, उनकी आत्माएँ अत्यंत निकट हो जाती हैं। और उस क्षण में जो भी भाव हों, वे एक-दूसरे में प्रविष्ट हो जाते हैं।

तात्कालिक करने के लिए मैं यह कहता हूँ। लेकिन लंबे जीवन के प्रवाह में इतना प्रेम देने को कहता हूँ कि प्रेम इतनी पवित्रता को पैदा कर दे कि सेक्स की कल्पना धीरे-धीरे क्षीण हो जाए और विलीन हो जाए।

- ओशो
नारी और क्रांति
साभार : ओशो इंटरनेशनल फाऊंडेशन

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