गुरुवार, 5 अगस्त 2010

लिंकन की नम्रता

अमेरीका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन एक बार अपने मित्र की घोडाबग्गी में बैठकर घूमने निकले। अभी कुछ दूर निकले ही थे कि मार्ग में एक श्रमिक ने उन्हें झुककर प्रणाम किया।

प्रत्युतर मे लिंकन ने उससे भी अधिक झुककर प्रणाम किया। लिंकन को ऐसा करते देख उनके मित्र ने पूछा, आपने उस श्रमिक को इतना झुककर प्रणाम क्यो किया?

तब लिंकन ने कहा कि मै अपने से अधिक नम्र किसी को नही देख सकता।



धन का अभिमान

यूनान में आल्सिबाएदीस नामक एक बहुत बड़ा संपन्न जमींदार था । उसकी जमींदारी बहुत बड़ी थी । उसे अपने धन-वैभव एवम जागीर पर बहुत अधिक गर्व था । वह इसका वर्णन करते हुए थकता नहीं था ।

एक दिन वह प्रसिद्ध दार्शनिक सुकरात के पास जा पहुँचा और अपने ऐश्वर्य का वर्णन करने लगा । सुकरात उसकी बातें कुछ देर तक सुनते रहे । फिर उन्होंने पृथ्वी का एक नक्शा मँगवाया । नक्शा फैला कर उन्होंने आल्सिबएदिस से पूछा- "अपना यूनान देश इस नक्शे में कहाँ है ?"

जमींदार कुछ देर तक नक्शा देखने के बाद एक जगह अंगुली रख कर बोला- "अपना यूनान देश यह रहा ।"

सुकरात ने पुनः पूछा - "और अपना एटिका राज्य कहाँ है ?"बड़ी कठिनाई के बाद जमींदार एटिका राज्य को ढूंढ सका । अच्छा, इसमें आपकी जागीर की भूमिका कहाँ है ?" सुकरात ने एक बार फिर पूछा । अब जमींदार कुछ सकपका गया । वह बोला- "आप भी खूब हैं, इस नक्शे में इतनी छोटी-सी जागीर कैसे बताई जा सकती है ?"

तब सुकरात ने कहा - "भाई ! इतने बड़े नक्शे में जिस भूमि के लिए एक बिन्दु भी नहीं रखा जा सकता उस नन्ही -सी भूमि पर आप गर्व करते हैं ? इस पूरे ब्रह्माण्ड में आपकी भूमि और आप कहाँ कितने हैं, जरा यह भी तो सोचिये ।"

सुकरात के मुंह से यह सुनते ही आल्सिबएदिस का अपनी जागीर और सम्पति पर जो गर्व था चकनाचूर हो गया ।

व्यक्ति को अपनी धन-संपदा का बखान तथा उस पर गर्व नहीं करना चाहिए ।

आत्मा की भूख

स्वामी विवेकानंद उन दिनों अमेरिका प्रवास में थे. वे अपना भोजन अधिकतर स्वयं ही पकाते थे. एक दिन उन्होंने अपना भोजन बनाकर तैयार किया. इतने में ही कुछ भूखे बालक उधर आ निकले . स्वामी जी ने सारा भोजन उन बालकों में बांट दिया और इससे उन्हें बडी प्रसन्नता हुई.

उनके समीप ही एक अमेरिकन महिला खडी थी. उसने पूछा,”स्वामी जी! आपने बिना कुछ खाए ही सारा भोजन इन बालकों में क्यों बांट दिया ?” 

विवेकानंद बोले,”माता जी ! आत्मा की भूख पेट की भूख से बडी होती है और आत्मा के तृप्त होने पर जीवन की समस्त क्षुधाएं एक बार में ही शांत हो जाती हैं . मैंने अपनी आत्मिक भूख को शांत करने के लिए ही भोजन बच्चों में बांट दिया ।”

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