सोमवार, 26 जुलाई 2010

खुद को पेंसिल जैसा बनाओ

एक लड़का अपने पिता को कागज पर कुछ लिखते हुए देखकर पूछा, -
क्या आप मेरे लिए कहानी लिख रहे है ?

पिता ने कहा,- 'कहानी तो लिख रहा हूँ पर उससे महत्वपूर्ण यह पेंसिल है जिससे मैं लिख रहा हूँ और उम्मीद करता हूँ तुम भी बड़े होकर पेंसिल कि तरह ही बनोगे . '

लड़के ने कहा -'इसमें क्या बात है ये तो बाकी पेन्सिल जैसा ही तो है.'

पिता ने कहा -'ये तो तुम्हारे नजरिये पर निर्भर करता है ,तुम्हे पेंसिल में कुछ नजर नहीं आ रहा है पर मुझे इसके पांच खास गुण नजर आ रहे है जिसे अपना लो तो तुम महान बन जाओगे.'

पहला : 
आप महान कामों को अंजाम दे सकते है लेकिन पेंसिल की तरह यह न भूले कि आपके भी पीछे एक हाथ होता है जो आपको मार्गदर्शन देता और उस हाथ को हम ईश्वर कहते है.

दूसरा: 
शार्पनर पेंसिल को थोड़ी देर के लिए बहुत तकलीफ पहुचाता है पर इसके बाद वो नुकीली होकर और भी ज्यादा अच्छा लिखती है. इसलिए तुम्हे भी दुःख और तकलीफों को सहना सीखना चाहिए क्योकि वो तुम्हे अच्छा व्यक्तित्व प्रदान करती है .

तीसरा: 
पेंसिल इरेजर द्वारा गलतियों को मिटाने का मौका देती है यानी गलतिया हो तो उसको सुधारना भी जरुरी है यह हमें न्याय और सज्जनता के रास्ते पर चलने में मदद करती है .

चौथा: 
पेंसिल में उसकी लकड़ी से ज्यादा उसके अन्दर कि ग्रेफिट महत्वपूर्ण है,जिसके कारण उसका वजूद है. इसलिए तुम हमेशा धयान दो कि तुम्हारे अन्दर क्या भरा है?

पांचवां: 
पेंसिल हमेशा निशान छोड़ जाती है, तुम भी जीवन में जो कुछ करते हो वह निशान छोड़ जाते हो, इसलिए कोई भी काम चाहे वो कितना भी छोटा क्यों न हो बुद्धिमानी और एकाग्रता से करो. 

सफलता को अपनी जरूरत बनाइये

"सफलता को अपनी जरूरत बना लीजिए.जिस प्रकार पानी में डूबते हुए व्यक्ति के लिए सांस सबसे जरूरी होती है, ठीक उसी तरह सफलता को अपनी जरूरत बनाइये . 
नामुमकिन कुछ भी नहीं होता समय से पहले और भाग्य से ज्यादा पाने की ख्वाहिश है तो मजबूत इरादों के साथ लक्ष्य की ओर कदम बढ़ाइये, सफलता आपसे दूर नहीं रह सकती. 
काम को सही ढंग से करने की कला को आदत बना लीजिये.सफलता के लिए वक्त और समय का इतंजार करने वाले कभी सफलता का मुंह नहीं देख पाते. 
सफल होने की इच्छा को इरादे में बदलो क्योंकि परिस्थितियां इच्छा को कमजोर और इरादों को और मजबूत बनाती हैं. 
सफल व्यक्ति समस्या के समाधान का हिस्सा होते हैं, जबकि असफल व्यक्ति हर समाधान के लिए एक समस्या खड़ी कर देते हैं। नजरिये को बदलिये, नजारे अपने आप बदल जाएंगे। 
" जो लोग जिम्मेदारी उठाते हैं, वही सफल होते हैं "

संकल्प की शक्ति

भूदान आंदोलन के प्रणेता विनोबा भावे के पास एक मदिरा प्रेमी युवक आया और हाथ जोड़कर प्रार्थना करने लगा मैं बहुत परेशान हूं महात्मन। यह मदिरा मेरा पीछा ही नहीं छोड़ती। आप कुछ उपाए बताइए जिससे मुझे पीने की इस लत से मुक्ति मिल सके।

विनोबाजी ने कुछ देर तक सोचा और फिर बोले- अच्छा बेटा। तुम कल मेरे पास आना, किंतु मुझे बाहर से ही आवाज देकर बुलाना, मैं आ जाऊंगा।

युवक खुश होकर चला गया। अगले दिन वह फिर आया और विनोबाजी के कहे अनुसार उसने बाहर से ही उन्हें आवाज लगाई। तभी भीतर से विनोबाजी बोले- बेटा। मैं बाहर नहीं आ सकता। 

युवक ने इसका कारण पूछा, तो विनोबाजी ने कहा- यह खंबा मुझे पकड़े हुए है, मैं बाहर कैसे आऊं। ऐसी अजीब सी बात सुनकर युवक ने भीतर झांका, तो विनोबाजी स्वयं ही खंबे को पकड़े हुए थे। 

वह बोला- गुरुजी। खंबे को तो आप खुद ही पकड़े हुए हैं। जब आप इसे छोडेंगे, तभी तो खंबे से अलग होंगे न।

युवक की बात सुनकर विनोबाजी ने कहा- यही तो मैं तुम्हें समझाना चाहता था कि मदिरा छूट सकती है, किंतु तुम ही उसे छोडऩा नहीं चाहते। जब तुम मदिरा छोड़ दोगे तो मदिरा भी तुम्हें छोड़ देगी।उस दिन के बाद से उस युवक ने मदिरा को हाथ भी नहीं लगाया।

दृढ़ निश्चय या इच्छाशक्ति, संकल्प से बुरी आदत को भी छोड़ा जा सकता है। यदि व्यक्ति खुद अपनी अनुचित आदतों से मुक्ति पाना चाहे और इसके लिए मन मजबूत कर संकल्प हो जाए, तो दुनिया की कोई ताकत उसे अच्छा बनने से नहीं रोक सकती. 

साभार: दैनिक भास्कर 

पुरस्कार की पीड़ा

एक बार राजा ने राजशिल्पी को हुक्म दिया 'ऐसा भवन का निर्माण करो ,जो खूबसूरती और सहूलियत के हिसाब से राज्य भर में बेनजीर हो .'

भवन-निर्माण में अंदाजन खर्च हो सकने वाली राशि राजशिल्पी को दे दी गयी . इतनी दौलत अपने कब्जे में देख शिल्पी की नियत बिगड़ गयी और उसे लोभ ने जकड लिया .उसने सोचा क्यों न घटिया और नकली सामग्री से भवन बना दूं .

कुछ समय में भवन तैयार हो गया, महाराज बहुत खुश हुए. भवन का उदघाटन समारोह धूम-धाम से मनाया गया .समारोह में महाराज ने एलान किया -'आज मेरी एक पुरानी अभिलाषा पूर्ण हुई है ,अपने राजशिल्पी के योग्यता और राजभक्ति को पुरस्कृत करना चाहता हूँ .पुरस्कार तैयार है मैं इस राज्य की सबसे खुबसूरत ईमारत को ही राजशिल्पी को पुरस्कार में देना चाहता हूँ .'

इतने बड़े पुरस्कार की घोषणा पर वहां उपस्थित सारे लोग राजशिल्पी को बधाई दे रहे थे ,पर लोगों के बीच खड़ा राजशिल्पी पुरस्कार पाकर भी उस पर खुश नहीं हो पा रहा था .

किसी को नुकसान पहुंचाकर हासिल किया हुआ लाभ स्वयं को भी नुकसान पहुंचता है .

साभार : लक्ष्य पत्रिका 

काम तो पेड़ जैसा होता है

वह महज बारह साल का एक लड़का था और उसे उसके पिता ने उसे एक आठ एम एम का कैमरा बतौर उपहार के रूप में दिया . पर इस बच्चे ने अपनी कल्पनाशक्ति के बदौलत मात्र सोलह साल की उम्र में ही पंद्रह लघु फिल्मे बना डाली थी .इसी आठ एम एम के कैमरे से मात्र 500 डॉलर की बजट वाली अपनी पहली विज्ञान फिल्म बनाई - 'फायर लाइट' . इस महान निर्देशक का नाम है स्टीवन स्पीलबर्ग (Steven Speilberg) .

स्पीलबर्ग का जीवन इस बात की प्रेरणा देता है कि प्रतिभा उम्र की न तो मोहताज होती है और न ही किसी बात का इन्तजार करती है.

सिर्फ सत्रह साल की उम्र में ही स्पीलबर्ग ने स्टूडियो के चक्कर लगाने शुरू कर दिया ,सामने बहुत लम्बा और संघर्षपूर्ण रास्ता था .पर इस दौरान वे सभी चीजे सिखने में व्यस्त रहे और जो भी काम मिला उसे बेहतर तरीके से करने की कोशिश करते गए ,कई बार असफलता का मुंह देखना पड़ा पर इन सब चीजो ने ही उन्हें एक बेहतर फ़िल्मकार बनाया और लम्बे संघर्ष के बाद वह घडी भी आयी जिसका स्पीलबर्ग को इन्तजार था . वह थी उनकी फिल्म " जॉ '(jaws) की अभूतपूर्व सफलता . जिसने पूरी दुनिया में अपने झंडे गाड़ दिए .

तीन बिलियन डॉलर से भी जयादा सम्पति के इस मालिक को टाईम्स मैगजीन ने उन्हें इस शताब्दी के सौ सबसे महत्वपूर्ण व्यक्तियों में शामिल किया है.

कोई भी काम एक दिन में सफल नहीं होता दरअसल यह तो एक पेड़ जैसा होता है पहले इसके बीज आपके आत्मा में बोना पड़ता है ,हिम्मत की खाद से इसे पोषित करना पड़ता है और मेहनत के पानी से इसे सींचना पड़ता है तब जाकर वह सालों बाद फल देने लायक होता है . सफलता के लिए इन्तजार करना आना चाहिए तुरंत फल की उम्मीद करना कोरी मुर्खता से अधिक कुछ भी नहीं है.

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