शनिवार, 1 मई 2010

अखण्ड ज्योति संस्थान

यह वह महिमामय स्थल है, जिसे लगभग ३० वर्ष (४२ से ७१) तक परम पूज्य गुरुदेव एवं वंदनीया माताजी की जीवन साधना का सतत सान्निध्य प्राप्त हुआ । मासिक अखण्ड ज्योति का प्रकाशन आगरा से प्रारंभ हुआ और इस स्थान पर पहुँचकर पनपता चला गया । हाथ से बने कागज पर छोटे ट्रेडिल मशीन द्वारा यहीं पर अखण्ड ज्योति पत्रिका छापी जाती थी । 

यहीं से देव परिवार के गठन का शुभारंभ हुआ । व्यक्तिगत पत्रों द्वारा जन-जन के अंतस्तल को स्पर्श करते हुए एक महान स्थापना का बीजारोपड़ संभव हो सका । अगणित दुःखी, तनावग्रस्त व्यक्तियों ने नये प्राण-नई ऊर्जा पायी । परम वंदनीया माताजी के हाथों का भोजन-प्रसाद की याद आते ही आध्यात्मिक तृप्ति मिलती है । अब तो सब कुछ बदल गया । पूरी बिल्डिंग को खरीदकर नया आकार दे दिया गया है । बस पूज्यवर के लेखन और साधना वाले कक्षों को यथावत रखा गया है । इतने छोटे से स्थान में ही ३० वर्षों तक प्रचण्ड साधना चली । २४-२४ लाख के चौबीस महापुरश्चरणों का अधिकांश भाग यहीं पूरा हुआ । अखण्ड ज्योति एवं युग निर्माण योजना पत्रिकाओं का लेखन-संपादन यहीं से होता था । पत्राचार एवं परामर्श का क्रम कभी रुका नहीं । साधकों की संख्या बढ़ी । देखते-देखते विराट् गायत्री परिवार खड़ा हो गया । 

प्रातः 2 बजे उठकर दैनिक साधना के पश्चात लेखनी साधना में तन्मय हो जाना पूज्यवर का स्वभाव था । जब तक एक दिन की लेखन-सामग्री तैयार नहीं हो जाती थी, वे जल ग्रहण नहीं करते थे । साधना फलीभूत हुई । उपनिषद, पुराण, दर्शन, गायत्री महाविज्ञान सदृश प्रकाशन सर्वसुलभ हुआ । अखण्ड ज्योति संस्थान के कण-कण में परम पूज्य गुरुदेव एवं परम वंदनीया माताजी की संव्याप्त चेतना आज भी श्रद्धालुजन अनुभव करते है । युगान्तकारी समग्र चिंतन का वाङ्मय देखें, तो हर बात अक्षरशः सत्य दिखलाई पड़ेगी । 

ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान

संस्थान की स्थापना 
इस संस्थान की स्थापना पं. श्रीराम शर्मा आचार्य द्वारा सन् 1979 में की गयी थी। 

संस्थान का ध्यान केंद्र 
यज्ञ से उत्पन्न, ऊर्जा, मंत्र शक्ति से साधक की मस्तिष्कीय तरंगों, जैव विद्युत आदि का परिक्षण किया जाता है। विभिन्न प्रकार के मनोवैज्ञानिक परीक्षण भी यहाँ किए जाते हैं। द्वितीय तल पर इससे सम्बंधित एक विशाल ग्रंथागार है, यहाँ पर वनौषधियों का विश्लेषण भी किया जाता है। 

संस्थान का विवरण 
मानव मस्तिष्क प्रायः हर बात को वैज्ञानिक संदर्भ से ही समझने का अभ्यस्त हो गया है। इसलिए पूज्य आचार्य श्रीराम शर्मा ने जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक सूत्रों को वैज्ञानिक आधार पर समझाने-स्थापित करने के लिए इस शोध केंद्र का शुभारंभ 1971 की गायत्री जयंती से किया। यह संस्थान अपने अनोखेपन के कारण विश्व स्तर पर प्रतिष्ठा प्राप्त कर चुका है।

गायत्री तीर्थ-शांतिकुंज के मुख्य परिसर से आधा किलोमीटर दूर गंगा तट पर स्थित यह संस्थान अपनी भव्यता के कारण सहज ही ध्यान आकर्षित करता रहता है। भूतल पर वैज्ञानिक उपकरणों से सुसज्जित यज्ञशाला विनिर्मित है। चौबीस कक्षों में गायत्री महाशक्ति की चौबीस मूर्तियाँ बीज मंत्रों, फलश्रुतियों सहित स्थापित हैं। प्रथम तल पर वैज्ञानिक प्रयोगशाला है, जहाँ ऐसे उपकरण स्थापित हैं, जिनसे जाँच-पड़ताल की जाती है। साधना से पूर्व व पश्चात, यज्ञादि मंत्रोच्चार के पूर्व व पश्चात क्या-क्या परिवर्तन शारीरिक व मानसिक स्तर पर होते हैं, अब यह देखना आसान हो गया है। इसके आधार पर साधकों को साधना संबंधी परामर्श दिया जाता है। यहाँ पर वनौषधियों का विश्लेषण भी किया जाता है। यज्ञ ऊर्जा, मंत्र शक्ति का क्या प्रभाव साधक की मस्तिष्कीय तरंगों, जैव विद्युत आदि पर पड़ा, यह देखा जाता है। 

विभिन्न प्रकार के मनोवैज्ञानिक परीक्षण भी यहाँ किए जाते हैं। द्वितीय तल पर इससे संबंधित एक विशाल ग्रंथागार है, जहाँ वैज्ञानिक अध्यात्मवाद पर विश्वभर के शोध ग्रंथ एकत्रित किए गए हैं। यहाँ लगभग 45000 से अधिक पुस्तकें हैं। यहां पर वनौषधियों का विश्लेषण भी किया जाता है। 

यज्ञ से उत्पन्न, ऊर्जा, मंत्र शक्ति से साधक की मस्तिष्कीय तरंगों, जैव विद्युत आदि का परिक्षण किया जाता है। विभिन्न प्रकार के मनोवैज्ञानिक परीक्षण भी यहां किए जाते हैं, द्वितीय तल पर इससे संबंधित एक विज्ञान ग्रंथागार है। जहां वैज्ञानिक अध्यात्मवाद पर विश्वभर के शोध ग्रंथ एकत्रित किए गए हैं। पुरातन पांडुलिपियां भी हैं। यहां बड़ी संख्या में उच्च शिक्षित निष्ठावान शोधकर्ता औसत भारतीय स्तर पर जीवन यापन करते शोध एवं संपदन कार्यों में लगे हुए हैं। 

संसाधन 
भवन के साथ ही महाकाल मंदिर की स्थापना भी हो चुकी है। 

प्रयोगशालाएँ 
शोध प्रयोगशालाएँ विद्यार्थियों एवं शोध छात्रों के लिए उपलब्ध हैं, जिनमें आधुनिक उपकरणों, कंप्यूटर एवं इलेक्ट्रोनिक्स के विभिन्न यंत्रों के द्वारा तप, तितिक्षा, आहार, साधना, ध्यान, धारणा, योग, कल्प प्रक्रिया, प्रायश्चित विधान आदि के मनोवैज्ञानिक प्रभावों का अध्ययन किया जा सकता है। औषधीय जड़ी-बूटियों की सूक्ष्म शक्ति का शरीर, मन, वातावरण, वनस्पतियों पर प्रभाव तथा यज्ञोपैथी, मंत्रशक्ति, संगीत आदि के प्रभाव के शोधपरक अध्ययन की सुविधाएँ भी उपलब्ध हैं। 

आधुनिक प्राचीन विज्ञान 
यह संस्थान आधुनिक तथा प्राचीन विज्ञान का व्यावहारिक मिश्रण है, जो मानव मात्र के लिए स्वास्थ्य तथा प्रसन्नता प्रदान करने के पवित्र लक्ष्य से अभिप्रेरित है। सामान्यजनों पर किए गए अनुप्रयोगों को ध्यान में रखकर यहां औपचारिक वैज्ञानिक शोध चलाए जाते हैं तथा प्राचीन विज्ञान को नए विज्ञान की प्रासंगिकता तथा स्फूर्ति से जोड़ दिया गया है। शोध के मुख्य क्षेत्रों में शामिल है, आयुर्वेद तथा यज्ञोपैथी, संपूर्ण मनोविज्ञान, मंत्र विज्ञान तथा चिकित्सा संबंधी अनुप्रयोग, योगदर्शन तथा विज्ञान साधन मंत्र तथा तंत्र और आध्यात्म विज्ञान इत्यादि। 

शांतिकुंज चिकित्सालय 
इस केंद्र में रक्त विज्ञान, जैव रसायन, तंत्रिका क्रिया विज्ञान, हृदय रोग विज्ञान प्रकाश रसायन, मानसिक शांतिमापी विज्ञान, यज्ञोपैथी इत्यादि की अत्यधिक सुसज्जित प्रयोगशालाएं हैं। यहां इनके अपने चिकित्सक इंजीनियर्स, वैज्ञानिक तथा दार्शनिकों की टीम है। यह केंद्र शांतिकुंज के चिकित्सालयों, आयुर्वेदिक फार्मेसी तथा योग, प्रयोगशाला से तथा हरिद्वार और उसके आसपास के चिकित्सालयों व विश्वविद्यालयों से परस्पर संपर्क बनाए रखता है, जाने-माने शोधकर्ता, व्याख्यात, प्रशिक्षणकर्ता तथा दूसरे विशेषज्ञ नियमित रूप से केंद्र में आते रहते हैं।

यहां हिमालय में पाई जाने वाली दुर्लभ जड़ीबूटियों का संग्रह तथा उनसे प्रयोगिक शोध के उपरांत बनी औषधियों के निर्देशों का भी संग्रह है। यहां बनाई जाने वाली आर्युवेदिक औषधियों की बड़ी मांग है। क्योंकि ये कुछ असाध्य तथा अंतिम अवस्था पर पहुंचे रोगों में अत्यंत प्रभावकारी सिद्ध हुई है।

यहां भारत के विभिन्न विश्वविद्यालय द्वारा प्रदान की गई 10 पी.एच.डी. डिगरियों पर शोध अध्ययन किया जा चुका है तथा बड़ी संख्या में अन्य पर काम चल रहा है, इसके विषय वैदिक कास्मीलांजी, वैदिक संस्कृति के बहुआयामों की समीक्षा से लेकर मानव शरीर क्रिया विज्ञान पर जप, प्राणायम, शवासन तथा यज्ञ के प्रभाव आदि है।

अभी तक किए जा चुके शोधों के परिणामों के अब तक विभिन्न उपचारात्मक लक्षणों के लगभग तीन हजार पांच सौ से अधिक अवलोकन किए जा चुके हैं, जिनमें एक महीने के साधना कोर्स कार्यक्रम के प्रशिक्षणार्थियों को चुना गया तथा उनके फेफड़ों की क्रिया तथा जैव रसायन, रक्त संबंधी, इलेक्ट्रोजियोलॉजिकल तंत्रिका संबंधी, मानसिक शक्ति संबंधी माप को सांख्यिकी विश्लेषण के लिए आकस्मिक रूप से लिया गया 1992 से संचालित प्रयोगों के डाटाबेस से)।

साधना कार्यक्रम (अनुष्ठान) के पूर्व तथा पश्चात के 22 विशेष लक्षणों के अवलोकन ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान की प्रयोगशालाओं में एकत्रित किए गए।

इन्हें पुनः 10 विभिन्न डाटा से दस में लिंग तथा उम्र के आधार पर बांटा गया।

प्रत्येक समूह से लिए गए आकस्मिक सेंपल से सर्वश्रेष्ठ सांख्यिकी डिजाइंस तैयार की गई। 

गायत्री साधना के प्रभाव के समग्र परिणाम आई.आई.टी. मुंबई के विशेषज्ञों द्वारा किए गए जैव सांख्यिकीय विश्लेषण ने (जिनकी विश्वसनीयता का स्तर 90 से 99.9 प्रतिशत था) साधना के अत्यंत महत्वपूर्ण सकारात्मक प्रभावों को इनके संदर्भ में दर्शाया-

इलेक्ट्रोजियोलॉजिकल तथा न्यूरोलॉजिकल क्रिया जैसे- जी.एस.आर. स्कोर तथा ई.ई.जी.।

साइकोमीट्रिक क्रिया विशेष तौर पर स्मृति में वृद्धि, भ्रम में कमी तथा दृश्य-श्रव्य प्रतिक्रिया समय में कमी। यर्कत संबंधी पैरामीटरस में उच्च संभावनाओं के साथ हीमोग्लोर्वन स्तर में वृद्धि भी अवलोकित की गई। ये प्रभाव 16 से 55 वर्ष की उर्म की महिलाओं तथा 16 से 25 वर्ष के पुरुषों के प्रयोग समूह में बहुत प्रमुखता से देखे गए। फेफड़ों की क्रियाओं, जीवन शांति एम.ई.बी. तथा एम.वी.वी. में साधना के बाद महत्वपूर्ण वृद्धि देखी गई।

शांतिकुंज हरिद्वार (बी.एस.एस. की पैतृक संस्था) के आवासी प्रशिक्षणार्थियों में से 16 से 45 वर्ष की उम्र के लगभग विभिन्न शैक्षणिक पृष्ठभूमि, वैवाहिक स्थिति, व्यवसाय इत्यादि वाले 150 पुरुष तथा महिलाओं को चुना गया। (प्रयोग अध्ययन के केस के रूप में)। इन लोगों की दिनचर्या वही थी, जो पहले अध्ययन किए गए प्रयोग समूह की थी, लेकिन इन लोगों ने गायत्री साधना नहीं की थी। प्रयोग समूह के केस में विभिन्न उपचारात्मक लक्षणों फेफड़ों संबंधी क्रिया तथा जैव रसायन, रक्त संबंधी, इलेक्ट्रोफिजियोलॉजिकल, न्यूरोलॉजिकल तथा मानसिक शक्ति संबंधी माप बी.एम.एम. प्रयोगशाला में एकत्र किए गए जिन्हें क्रमशः पहले दिन (प्री-डाटा के रूप में) तथा प्रशिक्षण में भाग लेने के दो से तीन हफ्ते के पश्चात (पोस्ट डाटा) के रूप में एक्तर किया गया। प्रयोग तथा नियंत्रण डाटा के मध्य उच्च, निम्न रक्तचाप समूह उच्च, निम्न रक्तचाप से ग्रस्त लोगों पर अलग-अलग प्रयोग तथा सांख्यिकीय विश्लेषण किए गए। नियंत्रण समूह में उपचारात्मक तथा क्रियात्मक पैरामीटरस पर कोई सांख्यिकीय परिवर्तन नहीं देखा गया। उच्च रक्तचाप तथा निम्न रक्तचाप से ग्रस्त लोगों के केस में परिणाम बहुत बुर देखे गए, जबकि नियंत्रण समूह में अच्छे प्रभाव देखे गए।

नियंत्रण समूह में 16 से 25 वर्ष की उम्र वाले महिला तथा पुरुषों में फेफड़ों संबंधी क्रिया के इंडक्स पीईएमआर को छोड़कर किसी अन्य पैरामीटर में कोई महत्वपूर्ण परिवर्तन नहीं हो पाए। ईईजी व दृश्य-श्रव्य प्रतिक्रिया समय के नियंत्रण समूह में नकारात्मक प्रवृतियां दिखाई दीं। संक्षेप में कहें तो नियंत्रण समूह के लिए परिणाम प्रयोग समूह की तुलना में या तो नकारात्मक रहे या उदासीन या बहुत ही अल्प मात्रा में सकारात्मक रहे।

यज्ञोपैथी शोध यज्ञोपैथी प्रयोगशाला में एक कांच के कक्ष में हवन कुंड होता है तथा गैस विश्लेषण करने के लिए एक विंग होता है। जिसमें यज्ञ की धूप व वाष्प का संग्रह किया जाता है। हविष्य में विभिन्न वानस्पतिक अंगों की क्षमता तथा समिधा की गुणवत्ता का आंकलन जाइटोकेमेस्ट्री प्रयोगशाला में किया जाता है, जो कि गैस-द्रव क्रोमेटोग्राज जैसी इकाइयों से सुसज्जित है। इसका उद्देश्य प्रारंभ में उपस्थित मूल तत्वों का विश्लेषण तथा इन पदार्थों से धुआं उठने के बाद क्या बचा। इसका विश्लेषण किया जाता है।

रक्त के नमूनों को कांच के कक्ष में तब रखा जाता है, जब इसमें प्रतिदिन होने वाले यज्ञ (हवन) का धूप तथा वाष्प भर जाता है तथा यर्कत की जैव रासायनिकी तथा हीमोटोलॉजिकल पैरामीटरस को इन निर्देशों के लिए रिकार्ड कर लिया जाता है, कैम्पस में निर्देशित अवधि तक रह रहे स्वस् तथा रोगी मनुष्यों पर बहुत से प्रयोग किए गए। ऐसे लोगों में सभी उम्र के साधक तथा सामान्य लोग, किसी भी सामाजिक तथा धार्मिक पृष्ठभूमि के स्त्री तथा पुरुष सम्मिलित थे। ऐसे प्रयोगों में लोगों को कांच के कक्ष में बैठकर विशेष अवधि तक यज्ञ के धूप में श्वांस लेने के निर्देश दिए गए। इस प्रयोग के पूर्व तथा पश्चात शरीर तथा मस्तिष्क का संपूर्ण विश्लेषण किया गया।

उपरोक्त प्रयोगों के मापों में (जो कि क्रोमेरोग्राम फिजियोग्राफ्स इत्यादि से लिए गए थे) सम्मिलित हैं, रक्त संबंधी पैरामीटरस जैसे एचबी, टीआरबीसी, डब्ल्यूबीसी, प्लेटलेट्स, आरबीसी भंगुरता इत्यादि। जैव रासायनिक परिवर्तन जैसे ब्लड यूरिया स्तर, ग्लूकोज, कोलेस्ट्राल, क्रिएटिनाइन एसजीओरी इत्यादि। इम्यूनोलॉजिक परिवर्तन जैसे एंटीबाडी स्टार तथा विभिन्न परजीवियों के प्रति जन्मजात प्रतिरोध क्षमता। एंड्रोक्राइनोलॉजी प्रयोगशाला में हार्मोन्स के स्तर जैसे कॉर्टीसोल, थाइरोंक्सिन एसीटीएच, एंड्रोजन इत्यादि रिकार्ड किए गए। ईईजी, ईएमजी तथा ईसीजी की रिकार्डिंग न्यूरोजियोलॉजी प्रयोगशाला में की गई। साइकोमिट्री प्रयोगशाला में की गई। साइकोमीट्री प्रयोगशाला में कौशल, सीखने की क्षमता, स्मृति, बुद्धिलब्धि, भावनात्मकलब्धि तथा किसी व्यक्ति का संपूर्ण व्यक्तित्व मापा गया। इन केसेस को नियमित अंतराल से देखा गया (यानी यज्ञ के बाद नियमित रूप से एक हफ्ते तक या एक महीने तक इत्यादि)।

इन प्रयोगिक शोधों की तकनीकी विस्तृत जानकारी तथा परिणाम क्रमशः संदर्भित जर्नल्स में प्रकाशित किए जाएंगे, ताकि यज्ञ के द्वारा विभिन्न वानस्पतिक औषधियों के उपचारात्मक उपयोगों के निद्रेश तथा वानस्पतिक औषधियों पर और शोध किया जा सके एवं यज्ञ के वैज्ञानिक अनुप्रयोगों को उन्नतिशील आधार दिया जा सके।

मानसिक शांति, भावनात्मक स्थिरता तथा मस्तिष्क की सृजनात्मकता आदि मनोवैज्ञानिक पक्षों के सामान्य अवलोकन के विश्लेषण हैं, अब तक लिए गए परिणाम के सामान्य प्रभाव बताते हैं कि यज्ञ करने से जीवन शांति में वृद्धि होती है तथा घातक वायरस तथा वैक्टीरिया के आक्रमण के प्रति प्रतिरोध में वृद्धि होती है। मानसिक व्याधियों पर प्रयोग एक महीने के गायत्री यज्ञ (जो कि विशेष वानस्पतिक मिश्रण से किया गया) में प्रयोग ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान में अभी-अभी 30-40 पुरुषों तथा महिलाओं पर किए गए जो कि दुश्चिंता, अवसाद, पश्चाताप तथा अनिद्रा में ग्रस्त थे। नियंत्रण समूह में प्रत्येक श्रेणी में लगभग दस लोग थे।

परिणामों का सांख्यिकीय विलक्षण (उपरोक्त व्याधियों या अक्षमताओं का विस्तार जानने के लिए मनोवैज्ञानिक परीक्षणों पर) ने प्रयोग समूह में महत्वपूर्ण सुधार दर्शाया। कुछ पीएचडी प्रोजेक्ट्स (देव संस्कृति विश्वविद्यालय शांतिकुंज, हरिद्वार में) इस संदर्भ में आगे के अध्ययन के लिए चल रहे हैं। वातावरण की शुद्धता तथा क्षय रोग पर प्रयोग देव संस्कृति विश्वविद्यालय (डीएसवीवी) में दो पीएचडी प्रोजेक्ट्स चल रहे हैं, जो निम्न शीर्षकों से हैं-
एयर क्वालिटी मॉडलिंग एंड नॉन कन्फेशनल सँल्यूशन थ्रू वैदिक साइंस फॉर इनवायरमेंट प्रॉब्लम।

सम इन्वेस्टीगेशन इनट्र द केमिकल एंड फार्मास्यूटिकल आस्पेक्ट्स ऑफ यज्ञोपैथी, स्टडीज इन पल्मोनरी ट्यूबरकुलोसिस।

दोनों प्रोजेक्ट्स पर प्रयोग कार्य ब्रह्मवर्चस संस्थान, हरिद्वार में चल रहा है, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोरड् (सदस्य-सचिव) तता आईआईटी मुंबई के जैव विज्ञान तथा जैव इंजीनियरिंग के प्रोफेसर्स इन शोध प्रोजेक्ट्स के ब्राहयसह मार्गदर्शी हैं। केंद्र अपने आने वाले रजत जयंती वर्ष में बड़े पैमाने पर योग, मनोविज्ञान तथा आध्यात्मिकता पर विमर्शात्मक शोध प्रारंभ करने की योजना बना रहा है। 

कैसे पहुँचें 
रेलवे स्टेशन/बस स्टैण्ड से सीधे चलते हुए देवपुरा होते हुए मायापुर से नेशनल हाईवे होते हुए चण्डीघाट से भूपतवाला से दाईं तरफ देहरादून रोड़ पर शांतिकुञ्ज में यह संस्थान स्थित। यहां पर कार से पहुंचने में 15 मिनट, आटौ रिक्शा से पहुंचने में 30 मिनट, एवं पैदल पहुंचने में 45 मिनट लगते हैं। 

पता 
ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान,
गायत्री तीर्थ शांतिकुंज, 
हरिद्वार-249411
फोन नं. : +91-1334 260602, 260403, 260309, 261955
फैक्स नं. : +91-1334 260866 
ई. मेल : shantikunj@awgp.org 
वेब साइट : www.awgp.org 
पवन दीक्षित 9990191446

शांतिकुंज (गायत्री तीर्थ)

संस्थान की स्थापना 
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य एवं माता भगवती देवी शर्मा द्वारा इस आश्रम की स्थापना 1971 में की गई थी। 

संस्थान का विवरण 
गंगा की गोद, हिमालय की छाया में विनिर्मित गायत्री तीर्थ- शांतिकुंज, हरिद्वार-ऋषिकेश मार्ग पर रेलवे स्टेशन से छह किलोमीटर दूरी पर स्थित है, जो युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य (1911-1990) एवं माता भगवती देवी शर्मा (1926-1994) की प्रचंड तप साधना की ऊर्जा से अनुप्राणित है। यह जागृत तीर्थ लाखों-करोड़ों गायत्री साधकों का गुरुद्वारा है।

1971 में स्थापित शांतिकुंज एक आध्यात्मिक सैनिटोरियम के रूप में विकसित किया गया है, जहाँ शरीर, मन एवं अंतःकरण को स्वस्थ, समुन्नत बनाने के लिए अनुकूल वातावरण, मार्गदर्शन एवं शक्ति अनुदानों का लाभ उठाया जा सकता है।यहाँ गायत्री माता का भव्य देवालय, सप्तर्षियों की प्रतिमाओं की स्थापना के साथ एक भटके हुए देवता का मंदिर भी है। गायत्री साधक यहाँ के साधना प्रधान नियमित चलने वाले सत्रों में भाग लेकर नवीन प्रेरणाएँ तथा दिव्य प्राण ऊर्जा के अनुदान पाकर अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति में सहायता पाते हैं। 

सन्‌ 1926 से प्रज्ज्वलित अखंड दीप यहाँ स्थापित है, जिसके सान्निध्य में पूज्य गुरुदेव पं. श्रीराम शर्मा आचार्य ने कठोर तपस्या करके इसे विशाल गायत्री परिवार की सारी महत्वपूर्ण उपलब्धियों का मूल स्रोत बनाया। इसके सान्निध्य में 2400 करोड़ से अधिक गायत्री जप संपन्न हो चुके हैं। इसके दर्शन मात्र से दिव्य प्रेरणा एवं शक्ति संचार का लाभ सभी को मिलता है।

आश्रम की तीन विराट यज्ञशालाओं में नित्य नियमित रूप से हजारों साधक गायत्री यज्ञ संपन्न करते हैं। भारतीय संस्कृति के अंतर्गत सभी संस्कार जैसे- पुंसवन, नामकरण, अन्नप्राशन, मुंडन, शिखास्थापन, विद्यारंभ, यज्ञोपवीत, विवाह, वानप्रस्थ तथा श्राद्ध कर्म आदि यहाँ निःशुल्क संपन्न कराए जाते हैं। इनके व्यावहारिक तत्वदर्शन से प्रभावित होकर यहाँ नित्य बड़ी संख्या में संस्कारों के लिए लोग आते हैं।

शांतिकुंज के भव्य जड़ी-बूटी उद्यान में 300 से भी अधिक प्रकार की दुर्लभ-सर्वोपयोगी वनौषधियाँ लगाई गई हैं। विश्वभर के आयुर्वेद कॉलेजों के शिक्षार्थी तथा वैज्ञानिक यहाँ का वनौषधि उद्यान देखने आते हैं। विभिन्न ग्रह-नक्षत्रों के लिए भिन्न प्रकार की दिव्य औषधियों का एक ज्योतिर्विज्ञान सम्मत उद्यान यहाँ की एक विलक्षणता है। सभी आगंतुकों की शारीरिक-मानसिक जाँच-पड़ताल निष्णात चिकित्सकों द्वारा यहाँ निःशुल्क की जाती है तथा साधना के साथ-साथ वनौषधि प्रधान उपचार-परामर्श भी दिया जाता है। 

यहाँ के विशाल भोजनालय में प्रतिदिन प्रायः पाँच हचार से अधिक आगंतुक श्रद्धालु तथा अनुमति लेकर आए शिक्षार्थी बिना मूल्य भोजन प्रसाद पाते हैं। यहाँ का पत्राचार विद्यालय भारत एवं विश्वभर में बैठे जिज्ञासुओं, प्रज्ञा परिजनों को दिनोदिन जीवन की उलझनों को सुलझाने का मार्गदर्शन देता रहता है।

अध्यात्म के गूढ़ विवेचनों की सरल व्याख्या कर उन्हें जीवन में कैसे उतारा जाए, अपने चिंतन, चरित्र एवं व्यवहार में उत्कृष्टता लाकर व्यक्तित्व को कैसे प्रभावकारी बनाया जाए, इसका सतत प्रशिक्षण यहाँ के नौ दिवसीय संजीवनी साधना सत्रों में चलता है, जो यहाँ वर्षभर संपादित होते रहते हैं।

ये सत्र 1 से 9, 11 से 19, 21 से 29 की तारीखों में प्रति माह चलते हैं।पाँच दिवसीय मौन अंतः ऊर्जा जागरण सत्र यहाँ की विशेषता है। इनमें 60 साधक प्रति सत्र उच्चस्तरीय साधना करते हैं। ये ठंडक में आश्विन से चैत्र नवरात्र तक चलते हैं।

केंद्र सरकार तथा राज्य सरकारों के विभिन्न पदाधिकारियों को यहाँ नैतिक बौद्धिक तथा व्यक्तित्व परिष्कार का शिक्षण पाँच दिवसीय सत्रों में दिया जाता है। अब तब अस्सी हजार से अधिक अधिकारीगण इन मूल्यपरक शिक्षणों से लाभ पा चुके हैं। यहाँ हिमालय की एक दिव्य विराट प्रतिमा स्थापित की गई है, जिसमें सभी तीर्थों का दिग्दर्शन साधकों को वहाँ के इतिहास की पृष्ठभूमि के साथ मल्टीमीडिया प्रोजेक्शन पर किया जाता है। प्रायः साठ फुट चौड़ी, पंद्रह फुट ऊँची प्रतिमा के समक्ष बैठकर ध्यान करने का अपना अलग ही आनंद है। समीप स्थित देवसंस्कृति दिग्दर्शन में मिशन के वर्तमान स्वरूप व भावी योजनाओं का चित्रण किया गया है।

यहाँ से 'अखंड ज्योति' एवं 'युग निर्माण योजना' नामक हिंदी मासिक तथा ‘युग शक्ति गायत्री’ गुजराती, मराठी, उड़िया, बांग्ला, तमिल, अंग्रेजी एवं तेलुगू भाषाओं में तथा ‘प्रज्ञा अभियान’ पाक्षिक हिंदी व गुजराती में प्रकाशित होती हैं। भारत और विश्व में इन सभी पत्रिकाओं के पाठकों की संख्या लगभग पच्चीस लाख है।कृषि मंत्रालय भारत सरकार द्वारा शांतिकुंज को 'आपदा निवारण सलाहकार परिषद' की सदस्यता प्रदान की गई है। भूकंप व अन्य दैवी आपदाओं में केंद्र ने जन व शक्ति से सदैव मदद की है। कारगिल संकट पर पूरे भारत से गायत्री परिवार ने सवा करोड़ रुपए की राशि राष्ट्रीय सुरक्षा कोष में दी। भुज कच्छ में प्रायः पाँच करोड़ रुपए से पुनर्वास के कार्य किए गए। 

लगभग एक हजार उच्च शिक्षित कार्यकर्ता शांतिकुंज में स्थायी रूप से सपरिवार निवास करते हैं। निर्वाह हेतु वे औसत भारतीय स्तर का भत्ता मात्र संस्था से लेते हैं।इस प्रकार शांतिकुंज एक ऐसी स्थापना है, जिसे सच्चे अर्थों में युग तीर्थ कहा जा सकता है। यहाँ आने वाला व्यक्ति कृतकृत्य होकर जाता है एवं नैसर्गिक सौंदर्य तथा आध्यात्मिक ऊर्जा से अनुप्राणित वातावरण में बार-बार आने के लिए लालायित रहता है। 

संसाधन 
लगभग हजार वर्गमीटर में निर्मित, निर्माणाधीन और प्रस्तावित भवनों का क्षेत्र है। आवास, आयुर्वेद-अनुसंधान, फार्मेसी, प्रशासनिक, स्वावलंबन, सभागार, ध्यान कक्ष आदि भवनों के स्थान सुरक्षित हैं, जो दिव्य स्वरूप प्रदान करते हैं।

कर्मचारियों हेतु आवास की पूर्ण व्यवस्था है। अतिथिगृह के साथ-साथ यज्ञशाला की व्यवस्था है। खेलकूद तथा व्यायामशाला के लिए आवश्यक सुविधाएँ विद्यमान हैं। 

कैसे पहुँचें 
रेलवे स्टेशन/बस स्टैण्ड से हर की पौड़ी पहुंचें यहाँ से बाई पास रोड़ में सूखी नदी तथा भारतमाता मन्दिर पार करके उसी मार्ग पर शांतिकुंज स्थित है। यहाँ पर कार से पँहुचने में 15 मिनट, रिक्शा से पँहुचने में 30 मिनट, एवं पैदल पँहुचने में 45 मिनट लगते है। 

पता 
गायत्री तीर्थ-शांतिकुंज,
हरिद्वार - 249401
फोन नं. : +91-1334 260602, 260309, 261485
फैक्स नं. : +91-1334 260866 

शांतिकुंज: जागरूकता का अलख


देव संस्कृति विश्वविद्यालय को गौरव प्राप्त है कि गंगा तट से विश्व के जन-जन को गायत्री अर्थात् सदबुद्धि का संदेश दिया जा रहा है। विश्वविख्यात सामाजिक-आध्यात्मिक संस्था शांतिकुंज उसकी पवित्र मातृसंस्था है। यह वह संस्था है जिसकी नींव युगऋषि पं. श्रीराम शर्मा ‘आचार्य’ एवं उनकी सहधर्मिणी माता भगवती देवी ने अपने तप और ममत्व की ईंटों से रखी थी।

अपने हृदय का दर्द स्पष्ट करते हुए युगऋषि कहते थे, ‘लोग हमें संत, सिद्ध, ज्ञानी मानते हैं। कई लोग लेखक, वक्ता, विद्वान और नेता समझते हैं, लेकिन किसने हमारा अन्त:करण खोलकर पढ़ा, समझा है? कोई उसे देख सका होता, तो उसे मानवीय व्यथा-वेदना की अनुभूतियों की करुण कराह से हाहाकार करती एक उद्विग्न आत्मा भर इन हड्डियों के ढांचे में बैठी-बिलखती दिखाई पड़ती।’

अनंत तक विस्तारित उनकी इसी संवेदना से विकसित हुआ शांतिकुंज तथा गायत्री परिवार। जिसने परिवर्तन की तड़प लिए करोड़ों लोगों से मानवता के प्रति अपने दर्द को साझा किया। इसी के आधार पर परिकल्पना की गयी सप्तक्रांतियों की, जिनकी परिधि में साधना से लेकर कुरीति उन्मूलन तक के सभी क्षेत्र आते हैं। निश्चित ही यह दायित्व चारदीवारियों से घिरी किसी एक संस्था का नहीं हो सकता और न ही यह उसकी सामर्थ्य के अंदर है, तथापि समग्र सत्य कुछ और है। गुरुवर के शब्दों में, ‘जो कोई कहीं भी कुछ भी सृजनात्मक कर रहा है, मेरी नजर में वह गायत्री परिवार का हिस्सा है, मेरा अभिन्न अंग है। निश्चित रूप में हाथ से हाथ अगर जुड़ जायें तो सृजनात्मक परिवर्तन की गंगा को धरती पर लाने से कोई रोक नहीं सकता।’

यदि व्यक्तित्व नहीं गढ़ा गया तो परिवर्तन का सारा इंतजाम बेकार हो जाएगा। साधना का अर्थ कर्मकांड नहीं, वे तो प्रतीक मात्र हैं। साधना का अर्थ है स्वयं को साधना। शांतिकुंज में पूरे वर्ष भर नौ दिवसीय संजीवनी साधना सत्र, एकमासीय युग शिल्पी सत्र, एक मासीय परिव्राजक सत्र, त्रौमासिक युग गायन संगीत प्रशिक्षण सत्र एवं पांच दिवसीय मौन साधना सत्रों में लोग अपने व्यक्तित्व को गढ़ते हैं। शांतिकुंज में नियमित यज्ञ में भाग लेने वाले हजारों लोगों को देखकर यह बोध सहज ही हो सकता है कि किस प्रकार यहां जाति, पंथ, लिंग, धर्म आदि की दीवारें टूट चुकी हैं। लगभग अस्सी वर्ष से जल रहा अखंडदीप यहां आने वाले विभिन्न प्रांतों, धर्मों एवं भाषाओं के बोलने वालों को अपनी भांति निरंतर परहित में जीने की प्रेरणा दे रहा है।

युगऋषि द्वारा रचित पुस्तकों में जीवन का कोई भी पक्ष अछूता नहीं रहा है। इन पुस्तकों को मात्र लागत मूल्य पर शांतिकुंज के कार्यकताओं द्वारा जन-जन तक पहुंचाया जाता है। व्यक्ति निर्माण से लेकर समाज निर्माण तक, धर्म से लेकर विज्ञान तक, अतीत से लेकर भविष्य तक कोई भी विषय गुरुवर की लेखनी से नहीं छूटा है। वेदों पर लिखे उनके भाष्य से अत्यंत प्रभावित होकर ही विनोबा भावे ने उन्हें ‘वेदमूर्ति’ कहा था। इस विपुल साहित्य के प्रचार के अलावा यहा पर केंद्र तथा राज्य सरकार के विभिन्न पदाधिकारियों के लिये पांच-पांच दिनों के प्रशिक्षण शिविर आयोजित किये जाते हैं। 1982 से निरंतर शांतिकुंज से कार्यकर्ताओं की टोलियां देश के कोने-कोने के लिये निकलती हैं और धर्मतंत्र से लोकशिक्षण का महती कार्य सम्पन्न करती हैं। इसके साथ विदेशों में भी विभिन्न शिविर आयोजित किये जाते हैं। राष्ट्र को जोड़ने के लिये यहां विभिन्न भाषाओं के प्रशिक्षण की व्यवस्था है।

युगऋषि के शब्दों में ‘यदि स्वास्थ्य नहीं रहा तो आध्यात्मिक उन्नति तो दूर, शारीरिक विकास भी कल्पना बनकर रह जायेगा।’ इस हेतु शांतिकुंज द्वारा आयुर्वेद को पुनर्जीवित करने के लिये घरेलू वाटिकाओं से औषधीय पौधो लगाने पर विशेष बल दिया जा रहा है। साथ ही शांतिकुंज में जहां यज्ञ, योग आदि से स्वास्थ्य लाभ देने की व्यवस्था है, वहीं यहां एक नि:शुल्क चिकित्सालय भी निरंतर सेवारत रहकर कर्मयोग का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करता है। शांतिकुंज के जड़ी-बूटी उद्यान में 300 से भी अधिक दुर्लभ वनौषधियां हैं।

हिमालय की गोद में बसा शांतिकुंज पर्यावरण के निरंतर रक्षण के लिये सतत् सक्रिय रहता है। यज्ञों में औषधीय सामग्री के हवन से जहां निरंतर वायुमंडल पवित्र होता है, वहीं शांतिकुंज के देव संस्कृति विश्वविद्यालय द्वारा देश के कोने-कोने में पौधारोपण का अभियान चलाने की प्रेरणा दी जाती है। साथ ही पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में सक्रिय देश-विदेश की विशिष्ट विभूतियों को परिवार का प्रत्यक्ष-परोक्ष सहयोग रहता है।

जिस समाज में कभी स्त्रियों को मंत्र बोलने और सुनने पर भी प्रतिबंध था, उसी समाज में नारियों को उनकी शक्ति का अहसास दिलाने के लिए शांतिकुंज द्वारा गायत्री तीर्थ में यज्ञादि कर्मों का संचालन महिलाओं से ही कराया जाता है। वस्तुत: शांतिकुंज का शुभारंभ ही 1968-69 में वंदनीया माताजी के संरक्षण में निरंतर जप में लीन कन्याओं की तप ऊर्जा के माध्यम से हुआ था। आज भी ब्रह्मवादिनी टोलियां प्रतिवर्ष देश में प्राय: पचास स्थानों पर विराट कार्यक्रम प्रस्तुत करती हैं।

राष्ट्र को सबल करने के लिये शांतिकुंज द्वारा स्वावलम्बन पर विशेष बल दिया जाता है और इसके लिये यहां मोमबत्ती निर्माण, बेकरी, साबुन निर्माण, फोटो फ्रेमिंग आदि का प्रशिक्षण भी दिया जाता है। राष्ट्र को भीतर ही भीतर से शारीरिक-मानसिक एवं आर्थिक रूप से खोखला करने वाले व्यसनों के विरुद्ध शांतिकुंज विशेष रूप से सक्रिय है। यहां नित्य अनेक लोगों द्वारा प्रतिदिन यज्ञ के समय एक बुराई छोड़ने का संकल्प लिया जाता है। इसके अतिरिक्त शांतिकुज प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सामाजिक परिवर्तन की कई सार्थक गतिविधियों से जुड़ा है। यहां के विशाल भोजनालय में प्रतिदिन देश-विदेश के कोने-कोने से आये विभिन्न जाति-धर्म-पंथ के नर-नारी साथ-साथ भोजन कर सहज आत्मीयता का बोध करते हैं। 

देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार के दूसरे दीक्षान्त समारोह में तत्कालीन राष्ट्रपति डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने कहा था, ‘मुझे यह जानकार अत्यंत प्रसन्नता हुई है कि एक दिव्य संस्कृति के विकास के लिये यह विश्वविद्यालय स्थापित किया गया है। ऐसे समय में जब हम भारत को समृद्ध, खुशहाल और शांतिपूर्ण राष्ट्र के रूप में बदलने की राह पर अग्रसर हैं, इस विश्वविद्यालय का हमारे देश में विशेष महत्व है।’ उन्होंने आगे कहा, ‘मुझे ज्ञात है कि इस विश्वविद्यालय ने स्वतंत्राता सेनानी और लगभग तीन हजार पुस्तकों के लेख पं. श्रीराम शर्मा ‘आचार्य’ के स्वप्न को साकार रूप दिया है। आचार्यश्री को भारत में ज्ञान क्रांति का प्रवर्तक कहना उपयुर्क्त होगा।’

डा. कलाम ने देव संस्कृति विश्वविद्यालय की जरूरत को रेखांकित करते हुए कहा, ‘विद्यार्थी सामाजिक परिवर्तन के लिये विज्ञान और अध्यात्म के समन्वय की दिशा में भी कार्य कर सकते हैं, जो आचार्यश्री का स्वप्न था। धर्म के बेहतरीन तत्वों को अध्यात्म में परिवर्तित करने से ही समाज को बेहतरीन रूप दिया जा सकता है। शिक्षा वास्तव में सत्य की खोज है। ज्ञान और जागरूकता के माध्यम से कभी न खत्म होने वाली एक महत्वपूर्ण यात्रा। मुझे भरोसा है कि देव संस्कृति विश्वविद्यालय भविष्य में इन लक्ष्यों को पाने में अवश्य ही सफल होगा।’

-आशुतोष कुमार सिंह

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