मंगलवार, 21 दिसंबर 2010

प्रायश्चित स्वरूप

उपासना की सबसे बड़ी अनिवार्यता हैं - नियमितता, निरंतरता। नित्य उपासना की जाती हैं, प्रभु को स्मरण किया जाता हैं। उसमें नागा नहीं की जाती। 
गांधी जी दिन भर कठोर परिश्रम के कारण बिस्तर पर आकर बैठ गये। उद्देश्य मात्र सुस्ती भगाने का था, नींद लग गई। ऐसी गहरी नींद आई कि सवेरे तड़के ही खुली। उस दिन उठने के बाद वे ग्लानि से भर गए। सुबह की उपासना तो कर ली, पर शाम की प्रार्थना उनसे जीवन में कभी छूटी नहीं थी। प्रार्थना किए बिना वे कभी सोते नहीं थे। उस दिन प्रायश्चित स्वरूप उन्होंने उपवास रखा। लोगों ने आग्रह किया-‘‘बापू ! अब तो कुछ खा लीजिये।’’ वे नहीं माने। उन्होंने कहा-‘‘ जिस प्रभु के कारण एक एक क्षण मैं जी रहा हूं, उसी परमात्मा को भुला बैठा, तो उससे बड़ा पाप और क्या हो सकता हैं ? बिना प्रायश्चित के कोई खाना खा कैसे सकता हैं ! उस दिन उपवास कर शाम की प्रार्थना की तब वे सोए। आहार अगले दिन ही लिया। ऐसा भाव हो, तो सिद्धिया सहज ही बरसती है।

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