सोमवार, 20 दिसंबर 2010

ईसा

ईसा निम्न जाति के गरीबों तथा पतित-पापियों के बीच बैठे भोजन कर रहे थे। एक विरोधी ने ईसा के शिष्य से कहा-‘‘तुम अपने गुरू को भगवान का बेटा और पवित्र आत्मा बतलाते हो। जो नीचों के साथ बैठा हैं, वह पवित्र कैसे हो सकता हैं ! हम उसका आदर क्यों करें ? ईसा ने विरोधी की बात सुन ली थी-वे विनम्र भाव से बोले-
‘‘भाई ! वैद्य की आवश्यकता रोगी को होती हैं, नीरोगी-स्वस्थ को नहीं। धार्मिक उपदेश की, प्यार की आवश्यकता इन सबको हैं। मैं धर्मात्माओं का नहीं, पापियों का हित करने आया हूं, उन्हें मेरी सबसे ज्यादा जरूरत हैं। ’’ ईसा ने जीवन भर यही किया। 

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