रविवार, 5 सितंबर 2010

दिनचर्या के सूत्र


हर मानव को प्रतिदिन अपनी दिनचर्या बनाकर उसके अनुसार उसे पूर्ण करने का प्रयास करना चाहिये।

1. पिछले दिन का कोई कार्य बाकी रह गया हो तो उसे अगले दिन पूर्ण करना चाहिये।
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2. मानसिक शान्ति कायम रखनी चाहिये और संतोष धारण कर निद्रा लेनी चाहिये। आलस्य में सोना बन्द करे। जागने पर तुरंत उठकर दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर नित्य प्रभु स्मरण करके अपने जीविकोपार्जना-कार्य का शुभारम्भ करना चाहिये।
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3. स्वयं के शारीरिक, मानसिक, पारिवारिक कर्तव्यों का बोध कर उनके पालन में रही कमी का ज्ञानकर उनकी पूर्ति हेतु समय निकालने की व्यवस्था करनी चाहिये। 
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4. सामाजिक कार्य जो सहज में किया जा सकता हैं उसे करने का प्रयास करना चाहिये एवं धीरे-धीरे दायरा बढ़ाना चाहिये।
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5. पारिवारिक सम्बन्धों को निभाने हेतु समय देना चाहिये।
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6. आगन्तुकों की शंका का समाधान कर उनके सुख-शान्ति की कामना रखते हुए उनके चाहने पर सुझाव भी देना चाहिये।
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7. सोने से पूर्व दिनचर्या अनुसार कार्य पूर्ति हुई या नहीं इस पर मनन करना चाहिये तथा अधुरे कार्यों की पूर्ति हेतु सजग होकर कार्य में जुटना चहिये।
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8. समय के दुरूपयोग से बचना चाहिये। यदि समय का दुरूपयोग हुआ हो तो प्रायश्चित करना चाहिये।
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9. मृत्यु निश्चित हैं, इसका ध्यान रखते हुए प्राकृतिक एवं भौतिक साधनों का उपयोग सीमित रखने का प्रयास रखना चाहिये। ‘‘जियो और जीने दो’’ की भावना हर वक्त कायम रखनी चाहिये। 
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कल्याण से साभार
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