शनिवार, 7 अगस्त 2010

ये तो सच है के भगवान है


ये तो सच है के भगवान है है मगर फिर भी अन्जान है
धरती पे रूप माँ बाप का उस विधाता की पहचान है
ये तो सच है के ...

जन्मदाता हैं जो नाम जिनसे मिला
थामकर जिनकी उंगली है बचपन चला
ओ कांधे पर बैठके जिनके देखा जहां
ज्ञान जिनसे मिला क्या बुरा क्या भला
इतने उपकार हैं क्या कहें ये बताना न आसान है
धरती पे रूप ...

जन्म देती है जो माँ जिसे जग कहे
अपनी संतान में प्राण जिसके रहें
ओ लोरियां होंठों पर सपने बुनती नज़र
नींद जो वार दे हँस के हर दुख सहे
ममता के रूप में है प्रभू आपसे पाया वरदान है
धरती पे रूप ...

आपके ख्वाब हम आज होकर जवां
उस परम शक्ति से करते हैं प्रार्थना
ओ इनकी छाया रहे रहती दुनिया तलक
एक पल रह सकें हम न जिनके बिना
आप दोनों सलामत रहें सबके दिल में ये अरमान है
धरती पे रूप ...
आप भी जनमानस परिष्कार मंच के सदस्य बन कर युग निर्माण योजना को सफल बनायें।

2 टिप्‍पणियां:

संगीता पुरी ने कहा…

ये तो सच है के भगवान है है मगर फिर भी अन्जान है
धरती पे रूप माँ बाप का उस विधाता की पहचान है

इनसे बडा भगवान कौन हो सकता है ??

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचना है। बहुत बहुत बधाई।

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